अरावली की पहाड़ियों से बारिश के पानी को रोकने के लिए 17 गांवों में तैयार हो रहे नाडे

मनरेगा राजस्थान में अरावली से जुड़े पारंपरिक जल स्त्रोतों को फिर से पुनजीर्वित किया जा रहा है
भंवरी गांव में तैयार हो रहा नाडा। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
भंवरी गांव में तैयार हो रहा नाडा। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा
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मनरेगा के तहत सबसे अधिक मानव दिवस सृजन करने वाले राजस्थान में अरावली से जुड़े पारंपरिक जल स्त्रोतों को फिर से पुनजीर्वित किया जा रहा है। राजस्थान में बारिश के पानी को एकत्रित करने के लिए पारंपरिक नाडा (एक ऐसा उथला तालाब जिसमें बारिश का पानी किसी ऊंची जमीन या छोटी पहाड़ियों से बहकर एकत्रित होता है) पाली जिले के 17 गांवों में तैयार किया जा रहा है। मनरेगा के तहत ऐसे नाडे राज्य के लगभग आठ जिलों के 17 गांवों में तैयार किए जा रहे हैं। ये सभी अरावली की तराई के आसपास तैयार किए जाएंगे। इससे मवेशियों को साल भर में पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित होगी, साथ ही साथ आसपास के खेतों में नमी भी बनी रहेगी। उदाहरण के लिए पाली जिले के भंवरी गांव में ग्राम पंचायत की 2,200 बीघा जमीन पर नाडा तैयार किया जा रहा है। यह नाडा अरावली पहाड़ियों से लगभग 150 फीट की दूरी पर स्थित है। इसमें बारिश का पानी अरावली की पहाड़ियों से बहकर एकत्रित होगा। इससे गांव के 12,000 से अधिक मवेशियों को वर्षभर पेयजल तो उपलब्ध होगा ही, साथ ही इस नाडा के आसपास 3,080 बीघा जमीन को चारागाह के रूप में भी तैयार किया जा रहा है। इस चारागाह को इस प्रकार से विकसित किया जा रहा है कि भविष्य में ग्राम पंचायत के लिए यह आय का स्त्रोत भी बने।

इस संबंध में गांव के सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण कुमार ने बताया कि यह सब मनरेगा के तहत किया गया है। उन्होंने बताया कि अप्रैल के आखिरी सप्ताह में काम शुरू हुआ था और इस प्रकार के पांच और नाडा अरावली पहाड़ियों के किनारे बनाए जाएंगे। अभी तो इस नाडा को पिछले तीन माह के दौरान तीन फीट तक गहरा किया गया है। इसे कुल 20 फीट तक गहरा करना है ताकि पानी एक साल से अधिक समय तक इसमें रहे। भंवरी ग्राम पंचायत कार्यालय में ग्राम पंचायत सहायक ओमप्रकाश गर्ग बताते हैं कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ तो हमने ग्राम पंचायत की सरपंच व सभी ग्रामीणों के साथ बातचीत कर इस नतीजे पर पहुंचे कि गांव में मवेशियों के लिए पानी और चारागाह की सबसे अधिक जरूरत है। इसी को ध्यान में रखकर ग्राम पंचायत ने अपनी जमीन पर ही एक बड़ा नाडा तैयार करने की योजना तैयार की और 20 जुलाई, 2020 तक इस नाडा की पाल यानी मेड़ तैयार हो गई है। इन मेड़ों को मजबूती देने के लिए इन पर खेजड़ी और नीम का पौधा लगाने की तैयारी की जा रही है।   

भंवरी गांव में अप्रैल से 21 जुलाई, 2020 तक 456 लोगों ने काम किया और इनमें से 225 लोग प्रवासी श्रमिक थे। भंवरी गांव के अलावा मनिहारी गांव में 15 एकड़ जमीन पर जंगली बबूल को साफ कर नाडा तैयार किया जा रहा है। इसके आसपास के 8 एकड़ जमीन को गांवों के मवेशियों के लिए चारागाह तैयार करने की योजना है। यह नाडा मुख्य सड़क से लगभग तीन किलोमीटर अंदर है। ऐसे में यहां तक आने जाने के लिए भविष्य में ग्रेवल सड़क के निर्माण के लिए ग्राम पंचायत ने मनरेगा के तहत कार्य के लिए जिला परिषद को आवेदन किया है। भंवरी गांव और मनिहारी गांव के साथ कुल 17 गांवों में इस प्रकार से अरावली की पहाड़ियों के किनारे-किनारे नाडा तैयार किए जा रहे हैं। पूर्व में इस प्रकार के नाडा गांव के आसपास ही ऐसी ढलान वाली जमीनों के आसपास तैयार किए जाते थे ताकि बारिश का पानी बहकर नाडा में ही एकत्रित हो।

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