आज दुनिया भर में 320 करोड़ लोग पानी की कमी वाली जगहों पर रहते है, जहां अधिकतर खेती की जाती है। जिनमें से 120 करोड़ लोग (44 फीसदी) ग्रामीण इलाकों के उन स्थानों पर रहते हैं, जहां पानी की भारी कमी है और खेती करना चुनौतीपूर्ण है। इनमें से लगभग 46 करोड़ पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में रहते हैं। यदि तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो इनकी संख्या में लगातार वृद्धि होगी जिससे और अधिक लोग प्रभावित होंगे।
जनसंख्या वृद्धि और सामाजिक-आर्थिक विकास के कारण पानी की मांग बढ़ रही है, जिसके कारण पानी की कमी लगातार बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभाव, जैसे अनिश्चित वर्षा और पानी की कमी इन कारकों को और बढ़ा देते हैं। नतीजतन पिछले दो दशकों में प्रति व्यक्ति उपलब्ध ताजे पानी के स्रोतों में 20 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है। दुनिया भर में पानी का सबसे अधिक उपयोग कृषि क्षेत्र में होता है।
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्ट 'द स्टेट ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर (एसओएफए) 2020' में कहा गया है कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने के लिए बेहतर जल प्रबंधन होना बहुत आवश्यक है। साथ ही इससे सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करना आसान होगा।
एक अध्ययन के अनुसार ब्राजील, चीन और भारत में पशुओं को अधिक पाला जाता है, साथ ही उनके आहार और अनाज उत्पाद करने से प्रति व्यक्ति हर दिन 1000 लीटर से अधिक पानी की खपत में वृद्धि हुई है।
जिन क्षेत्रों में वर्षा जल से सिंचाई होती है, वहां जल संचयन और संरक्षण में सुधार कर आधुनिकीकरण किया जाना चाहिए। इन्हें सबसे अच्छी कृषि-आधारित प्रथाओं के साथ जोड़ा जाना चाहिए, जैसे कि सूखे में पैदावार देने वाली (ड्राउट टोलेरंट) फसल की किस्मों को अपनाना, बेहतर जल प्रबंधन साधन - जिसमें पानी के अधिकार और हिस्सा (कोटा) जैसे प्रभावी जल मूल्य निर्धारण और आवंटन साधन शामिल हैं। पानी की एक समान और लगातार पहुंच सुनिश्चित करना। हालांकि जल की मात्रा की गणना, लेखा किसी भी प्रभावी प्रबंधन रणनीति के लिए पहला कदम होना चाहिए।
रिपोर्ट ने शून्य भूख लक्ष्य (जीरो हंगर टारगेट) सहित अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहमत एसडीजी में किए गए वादों को पूरा करने पर जोर दिया है। कृषि में उपयोग होने वाले ताजे पानी और वर्षा जल के अधिक उत्पादक और टिकाऊ उपयोग को सुनिश्चित करना, क्योंकि यह दुनियाभर में जल निकासी के 70 प्रतिशत से अधिक के लिए जिम्मेदार है।
एसओएफए 2020 रिपोर्ट ने पानी के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। नए संस्करण ने वर्षा आधारित कृषि में पानी से संबंधित चुनौतियों को कवर करने के लिए अपना दायरा बढ़ाया है, जो खेती के तहत 80 प्रतिशत से अधिक भूमि और दुनिया भर में फसल उत्पादन का 60 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है।
रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के लगभग 11 फीसदी वर्षा जल पर निर्भर रहने वाली फसले अथवा 12.8 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र लगातार सूखे का सामना करते हैं। जिसमें से लगभग 14 फीसदी चरागाह (65.6 करोड़ हेक्टेयर) है। इस बीच कृषि भूमि के 60 फीसदी (17.1 करोड़ हेक्टेयर) पर सिंचाई के लिए पानी पर अधिक जोर दिया जाता है। 11 देश पूरे उत्तरी अफ्रीका और एशिया में, दोनों चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिससे पानी की मात्रा की गणना, स्पष्ट आवंटन, आधुनिक तकनीको को अपनाने और कम पानी वाली फसलों को तत्काल अपनाना आवश्यक है।
पानी का गणित तथा समाधान
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि जल प्रबंधन की योजना बनाते समय समस्याओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। गांव में रहने वाले गरीब, सिंचाई से काफी लाभ उठा सकते हैं। 2010 से 2050 के बीच अधिकांश सिंचित क्षेत्रों के बढ़ने का अनुमान है। दुनिया और उप-सहारा अफ्रीका में यह दोगुने से अधिक होने की संभावना है जिससे करोड़ों ग्रामीण लोगों को फायदा पहुंचेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मामलों में, बड़ी परियोजनाओं की तुलना में छोटी और किसान के नेतृत्व वाली सिंचाई प्रणाली अधिक कुशल हो सकती है। यह उप-सहारा अफ्रीका के लिए एक आशाजनक तरीका है, जहां सतह और भूमिगत जल संसाधन तुलनात्मक रूप से कम विकसित हैं और केवल 3 प्रतिशत कृषि भूमि पर सिंचाई की जाती है। जहां छोटे पैमाने पर सिंचाई का विस्तार करना लाभदायक हो सकता है जो लाखों ग्रामीण लोगों को फायदा पहुंचा सकता है।
एशिया में बड़े पैमाने पर राज्य-वित्त पोषित सतह सिंचाई (सरफेस इरीगेशन) में गिरावट ने किसानों को भूजल के सीधे दोहन के लिए प्रेरित किया है, जिससे जल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है। इन मुद्दों के बारे में बात करते हुए पुरानी सिंचाई योजनाओं को आधुनिक बनाने के साथ-साथ प्रभावी नीतियों में निवेश की आवश्यकता होगी।
कृषि में पानी के उपयोग की स्थिरता में सुधार से पर्यावरणीय आवश्यकताओं को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों को बनाए रखना है, जिन्हें अक्सर अनदेखा किया जाता है। यह अनुमान लगाया गया है कि वर्तमान में दुनिया भर में सिंचाई में होने वाले जल का उपयोग का 41 प्रतिशत पर्यावरणीय प्रवाह आवश्यकताओं की कीमत पर होता है। भूजल निकासी को कम करना और जल उपयोग दक्षता में सुधार करना आवश्यक है।
भारत में खेती में पानी के उपयोग में सुधार
भारत में कृषि क्षेत्र में पानी के उपयोग को तकनीकी आधार पर कम करने पर जोर दिया जा रहा है जिसमें कोयम्बटूर सिटी में 2012 और 2013 में फील्ड ट्रायल में ड्रिप इरिगेशन से अनाज की पैदावार में लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई, पानी की बचत दोगुनी हो गई और पारंपरिक चावल उत्पादन की अपेक्षा 27 प्रतिशत पानी का उपयोग कम किया गया। हरियाणा के सिरसा जिले में एक अन्य क्षेत्र के अध्ययन ने भी ड्रिप इरिगेशन को प्रभावी पाया, यहा पहले कपास के उत्पादन में फरो पद्धति से सिंचाई की जाती थी, जिसके कारण अधिक लागत लगती थी। ड्रिप इरिगेशन ने खेती की लागत को 25 प्रतिशत तक कम कर दिया और 33 फीसदी पानी और बिजली की बचत हुई। इसने निराई और मृदा अपरदन की समस्याओं को भी कम किया।