बांग्लादेश में लाखों किसान अपना रहे हैं सिंचाई का अनोखा तरीका, भूजल स्तर भी नहीं होता कम

सूखे के मौसम में जल निकासी के कारण कम होते भूजल के स्तर को, बाद में मॉनसून के दौरान नदियों, झीलों और तालाबों से फिर से भर दिया जाता है।
फोटो: अनवर जाहिद, बांग्लादेश में सूखे के मौसम के दौरान बोरो धान के खेतों में भूजल से हो रही सिंचाई
फोटो: अनवर जाहिद, बांग्लादेश में सूखे के मौसम के दौरान बोरो धान के खेतों में भूजल से हो रही सिंचाई
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बांग्लादेश में लाखों किसानों द्वारा हर साल सूखे के मौसम के दौरान सामूहिक रूप से भूजल निकासी ने जमीन के अंदर विशाल प्राकृतिक जलाशयों का निर्माण किया है। जो 30 साल की अवधि में, दुनिया के सबसे बड़े बांधों को चुनौती दे रहे हैं, इस सतत रूप से की जाने वाली सिंचाई ने पहले से अकाल पड़ने वाले इस देश को एक खाद्य-सुरक्षित राष्ट्र में बदल दिया है। इस बात का दावा यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन में किया गया है।

यह अध्ययन 1988 से 2018 के बीच बांग्लादेश के बंगाल बेसिन में सूखे के मौसम के दौरान धान की सिंचाई के लिए सतही भूजल की निकासी करने वाले 160 लाख छोटे किसानों के संयुक्त प्रभाव के बारे में पता लगाता है।

अध्ययन से पता चला है कि सूखे के मौसम में जल निकासी के कारण कम होते भूजल के स्तर को, बाद में मॉनसून के दौरान नदियों, झीलों और तालाबों से  फिर से भर दिया जाता है। सतही जल निकालने से न केवल भूजल के स्तर को ठीक होने में मदद मिली, बल्कि ऐसा करने से बाढ़ को कम करने में मदद मिली

इस प्रक्रिया को जिसका वर्णन अध्ययनकर्ता "द बंगाल वाटर मशीन" के रूप में करते हैं, जहां 75 क्यूबिक किलोमीटर से अधिक मीठे पानी को 30 वर्षों तक  "जमा" किया गया था। यह मात्रा चीन के थ्री गोरजेस डैम और अमेरिका के हूवर डैम दोनों के जलाशय क्षमता के बराबर है। 

किसान इस तरह के हस्तक्षेप को बांधों और जलाशयों सहित सिंचाई के लिए मौसमी नदी प्रवाह भंडारण के पारंपरिक दृष्टिकोण के एक स्थायी विकल्प के रूप में देखते  हैं। जो कि बंगाल बेसिन जैसे घनी आबादी वाले बाढ़ के मैदानों में निर्माण के लिए चुनौतीपूर्ण हैं, जिसमें रेत, गाद और वार्षिक बाढ़ के पानी द्वारा बिछाई गई मिट्टी शामिल होती है।

यूसीएल इंस्टीट्यूट फॉर रिस्क एंड डिजास्टर रिडक्शन तथा सह-अध्ययनकर्ता डॉ. मोहम्मद शमसुद्दुहा ने कहा कि साल भर में होने वाली बारिश में अंतर और बेसिन में होने वाली वर्षा में कुल गिरावट के बावजूद, मीठे पानी को जमा करने के इस तरीके से 1990 के दशक से फसलों की सिंचाई की जा रही है।

यह नया तरीका मौसमी मीठे पानी के संग्रहण और भंडारण को बढ़ाकर  बांधों के उपयोग के बिना मॉनसूनी बाढ़ के खतरे को कम करके वर्षा में मौसमी असंतुलन को दूर करने में मदद करता है।

अध्ययनकर्ताओं का तर्क है कि इस सरल हस्तक्षेप में अन्य एशियाई बहुत बड़े डेल्टा जैसे मेकांग डेल्टा और हुआंग हे (पीला) नदी डेल्टा सहित बाढ़ के मैदानों में अधिक व्यापक रूप से दोहराने की क्षमता है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के लिए समान रूप से कमजोर हैं। यह बंगाल वाटर मशीन ग्लोबल वार्मिंग द्वारा बढ़ते जलवायु चरम सीमाओं के लिए वैश्विक खाद्य सुरक्षा और लचीलापन बढ़ाने में मदद कर सकती है।

यूसीएल भूगोल विभाग तथा सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर रिचर्ड टेलर ने कहा हमारे विश्लेषण का इस महत्वपूर्ण, कम-मान्यता प्राप्त इंजीनियरिंग चमत्कार के विस्तार और अनुकूलन के लिए गहरा प्रभाव है जो मौसमी आर्द्र उष्णकटिबंधीय के बाढ़ के मैदानों के भीतर सिंचाई वाली फसलों से उत्पादन को बनाए रखता है।

एक गर्म होती दुनिया में, सतही जल और भूजल के इस संयुक्त उपयोग के शुष्क और मॉनसून के मौसम में भूजल का फिर से भर जाना जलवायु परिवर्तन से बढ़े हुए हैं, वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए रणनीति के रूप में महत्वपूर्ण है।

निष्कर्षों  के आधार पर शोधकर्ताओं ने 1,250 निगरानी स्टेशनों के नेटवर्क से 1988 से 2018 के बीच पूरे बांग्लादेश में 465 कुओं से एक लाख, साप्ताहिक भूजल स्तर के अवलोकन का विश्लेषण किया।

प्रोफेसर टेलर ने कहा जबकि ताजा पानी की मात्रा के पिछले अनुमान काल्पनिक और मॉडलिंग परिदृश्यों पर आधारित हैं, यह आकलन के आधार पर भूजल की मात्रा को मापने वाला पहला अध्ययन है, जो इसकी महत्वपूर्ण क्षमता को दिखता है।

अध्ययनकर्ताओं ने गौर किया कि उनके निष्कर्ष देश के भूजल संसाधनों की स्थिति और प्रवृत्तियों का आकलन करने के लिए दीर्घकालिक हाइड्रोलॉजिकल निगरानी के महत्व को उजागर करते हैं, जो भविष्य में हमारे बदलते जलवायु के सामने और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा।

हालांकि शोध देश के उन क्षेत्रों में बंगाल वाटर मशीन के संचालन की सीमाओं पर भी प्रकाश डालता है जहां सूखे के मौसम के दौरान निकाले गए भूजल को पूरी तरह से भरने के लिए मॉनसून के मौसम में पानी का रिसाव कम पाया गया है। इन क्षेत्रों में, पंप भूजल संसाधनों को कम कर देता है, जिससे पीने के पानी के लिए सतही कुओं पर निर्भर परिवारों के लिए ये काफी कठिन हो जाते हैं।

इसलिए लेखक सुझाव देते हैं कि बंगाल बेसिन और अन्य एशियाई बड़े डेल्टा में लोग मौसमी मीठे पानी के अतिरिक्त भंडारण के लिए इस प्रकृति आधारित समाधान से लाभ उठा सकते हैं।

ढाका विश्वविद्यालय के सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर काजी मतीन अहमद ने कहा किसानों को अधिकतम लाभ पहुंचाने और भूजल की कमी के खतरे को कम करने के लिए बंगाल वाटर मशीन के संचालन के लिए स्थानों की उपयुक्तता का आकलन करना महत्वपूर्ण है।

जलवायु परिवर्तन के तहत इसके संचालन हेतु मॉनसून में हो रहे बदलावों में अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए इसे और अधिक व्यापक रूप से बढ़ाने से पहले उपयुक्त क्षेत्रों में छोटे स्तरों पर काम करने की आवश्यकता है।

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