भारत के कई जल निकायों को मिल रहा है पुनर्जीवन : सुनीता नारायण

पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने कहा आज के जलवायु परिवर्तन के समय में हमारे पास अवसर है कि हम भारत में पानी की कहानी को बदल सकते हैं
इंडियन हैबिटेट सेंटर में सीएसई की पुस्तक का विमोचन, फोटो : विकास चौधरी
इंडियन हैबिटेट सेंटर में सीएसई की पुस्तक का विमोचन, फोटो : विकास चौधरी
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भारत के जल निकायों में तेजी से बदलाव आ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में जो जल निकाय बुरी तरह प्रदूषित हो गए थे और जिन पर अतिक्रमण हो गया था या जो सूख गए थे, उनमें से अब कई पुनर्जीवित हो रहे हैं। इसका श्रेय सरकारी योजनाओं के साथ-साथ निजी और सामुदायों द्वारा की जा रही पहल को जाता है। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक नए राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में सामने आई है। इन सर्वेक्षणों के निष्कर्षों को “बैक फ्रॉम द ब्रिंक: रिजुवेनेटिंग इंडियाज लेक, पॉन्ड्स एंड टैंक्स-ए कम्पेंडियम ऑफ सक्सेस स्टोरीज” नामक पुस्तक में समाहित किया गया है। इसका आज एक कार्यक्रम में विमोचन किया गया।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “हमें जल निकायों, हमारी झीलों, टैंकों और पोखरों की कला को फिर से सीखने की जरूरत है। यह हमारे लिए एक अवसर है कि हम भारत में पानी की कहानी को बदल सकते हैं, खासकर आज के जलवायु परिवर्तन के समय में। सीएसई की यह पुस्तक हमें यही बताती है। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हमें स्थानीय जल प्रणालियों में निवेश करने के लिए अपने काम को बढ़ाने की जरूरत है ताकि बारिश की हर बूंद को इकट्ठा किया जा सके ताकि हम सूखे के खिलाफ स्थानीय लचीलापन बना सकें। हमारे शहरों में, हमें अपनी झीलों और तालाबों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है, हमें अपने जंगलों और हरे भरे स्थानों की रक्षा करने की जरूरत है क्योंकि इसी तरह से जल पुनर्भरण बढ़ेगा।” नारायण ने कहा, “जल संकट के इस समय में यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि न केवल अपशिष्ट जल  का उपचार किया जाए, बल्कि इसे पुनर्चक्रित और पुनः उपयोग किया जाए। यहीं पर वे जल निकाय हैं जिन्हें हम अपने शहरों में संरक्षित करते हैं, वही तालाब और टैंक जिनका उपयोग हम वर्षा जल को मोड़ने और इकट्ठा करने के लिए करते हैं, उनका उपयोग उपचारित सीवेज को चैनलाइज करने और बदले में भूजल को रिचार्ज करने के लिए किया जा सकता है।”

सीएसई सर्वेक्षण लगभग एक वर्ष की अवधि में पूरा किया गया है। सीएसई टीम ने भारत के चार अलग-अलग पारिस्थितिक क्षेत्रों में 22 राज्य-स्तरीय कार्यक्रमों और पांच केंद्रीय योजनाओं के तहत बनाए गए और बहाल किए गए 250 जल निकायों की समीक्षा की। सिंधु-गंगा के मैदान, रेगिस्तान, तटीय मैदान और दक्कन का पठार। जिन योजनाओं और कार्यक्रमों को कवर किया गया है, उनमें मिशन अमृत सरोवर, अमृत 2.0, दिल्ली में झीलों का शहर परियोजना और तमिलनाडु की अनाइथु ग्राम अन्ना मरुमलार्ची थिट्टम (एजीएएमटी) योजना शामिल हैं। समीक्षा की गई 250 जल निकायों में से लगभग 140 सबसे अच्छे थे।

सीएसई के वाटर यूनिट के कार्यक्रम निदेशक दीपिंदर एस कपूर ने कहा, “पिछले साल प्रकाशित जल संसाधनों की देश की पहली जनगणना के अनुसार भारत में 24,24,540 जल निकाय हैं। इनमें से 97 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। ये जल निकाय, उनके जलग्रहण क्षेत्र और उनके फीडर चैनल महत्वपूर्ण भूजल पुनर्भरण क्षेत्रों के रूप में कार्य करते हैं, बाढ़ को नियंत्रित करते हैं और अद्वितीय जैव विविधता का घर हैं।”

सीएसई में जल कार्यक्रम की वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक और बैक फ्रॉम द ब्रिंक की प्रमुख लेखिका सुष्मिता सेनगुप्ता ने कहा, “हमने पाया है कि राजनीतिक और नौकरशाही-प्रशासनिक इच्छाशक्ति, सामुदायिक भागीदारी के साथ, जल निकायों के सफल पुनरुद्धार में सहायक रही है। कुछ बेहतरीन बहाली कार्य वहीं हुए हैं जहां जिला कलेक्टरों या स्थानीय राजनीतिक नेताओं ने विशेष रुचि ली है।” उन्होंने कहा, “कार्यक्रमों और योजनाओं में, मिशन अमृत सरोवर ने निश्चित रूप से स्थिति को बदल दिया है, जबकि राज्य स्तरीय परियोजनाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। गिरावट को रोकने के लिए एक शुरुआत की गई है, लेकिन गति को बनाए रखने की आवश्यकता है। सीएसई सर्वेक्षण और हमारे प्रकाशन ने ऐसा करने के लिए कुछ सिफारिशें भी प्रस्तावित की हैं। कपूर कहते हैं, “अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन 2.0 में जल निकायों के कायाकल्प के साथ-साथ अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग का प्रावधान है। इस मिशन के तहत निधियों का उपयोग सभी राज्यों द्वारा जल निकायों को बहाल करने के लिए प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।” 

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