लोकसभा चुनाव 2024: बिहार में चुनावी शोर से गायब हैं तालाब, लोगों ने खुद निकाला जल-जन घोषणा पत्र

जल-जन घोषणा पत्र में बिहार में पानी से जुड़ी दो आपदाएं बाढ़ और सूखा की वजहों पर प्रकाश डालते हुए उनके समाधान की अपील की गई है
बिहार के दरभंंगा स्थित गंगा सागर तालाब से बहुत से लोगों की आजीविका चल रही है। फोटो: सीटू तिवारी
बिहार के दरभंंगा स्थित गंगा सागर तालाब से बहुत से लोगों की आजीविका चल रही है। फोटो: सीटू तिवारी
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सुबह के 9 बजे है और दरभंगा के मछली बाजार में ललिता कुमारी बैठी सुस्ता रही है। उनके बगल में रखे तसले में सिंघी मछली पानी में मचल रही है और दूसरी तरफ मरी हुई कतला मछली रखी है जो बंगाल से आई है। मछली बाजार के बाहर से कभी-कभी चुनाव प्रचार गाड़ी गुजर जाती है और साथ में वायदों का शोर भी।

ललिता इस शोर को सुनकर तंज के स्वर में कहती है, “ मछली कम होती जा रही है। तालाब खत्म हो रहे है, लेकिन कोई पार्टी वाला कुछ नहीं बोलता। पानी नहीं रहेगा तो ना मछली रहेगी और ना ही आदमी। पानी है तो सब जिंदा है।”

ललिता की ये चिंता, उनकी अकेली चिंता नहीं है। जिनकी आजीविका पानी से जुड़ी हुई है और जो पानी का महत्व समझते है, वो सभी बिहार राज्य में लगातार खत्म होते जलस्रोतों का मुद्दा उठा रहे है।

दरभंगा जहां चौथे चरण यानी 13 मई को चुनाव होने है, वहां नागरिकों ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जल-जन घोषणा पत्र जारी किया है। इस जल–जन घोषणा पत्र में सभी राजनैतिक दलों से अपने मैनिफेस्टो में जल और जलाशय के संरक्षण का मुद्दा शामिल करने का अनुरोध किया गया है।

दरभंगा की संस्था तालाब बचाओ अभियान और भारत-नेपाल कमला मैत्री मंच ने मिलकर जल–जन घोषणा पत्र बनाया है। इस घोषणा पत्र में बिहार में पानी से जुड़ी दो आपदाएं बाढ़ और सूखा दोनों की वजहों पर प्रकाश डालते हुए उनका समाधान करने की अपील की गयी है।

घोषणा पत्र में एक तरफ यह लिखा गया है कि आजादी के बाद से बाढ़ पर नियंत्रण के लिए बनाए गए तटबंध बाढ़ के संकट को और बढ़ाने वाले साबित हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ राज्य के कई जिले सूखा, जल जमाव, पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड की अधिकता की समस्या झेल रहे हैं।

इस घोषणा पत्र में 14 बिंदुओं पर समस्या और समाधान दोनों पेश किए गए है और इन्हें राजनीतिक दलों से अपने घोषणा पत्र में शामिल करने की अपील की है।

घोषणा पत्र के प्रमुख बिंदु

नदियों, झीलों, जंगल व वन्य जीवों का संरक्षण सुनिश्चित हो, जल सुरक्षा अधिनियम और जल नीति बने, जल संरचनाओं को अतिक्रमण औऱ प्रदूषण से बचाने के लिए उनका सीमांकन हो, जल संरचनाओं से जुड़ी किसी भी योजना में स्थानीय लोगों की राय ली जाये।

नदियों की भू सांस्कृतिक विविधता का सम्मान हो, नदी जोड़ो नीति को लागू करने से पहले उस क्षेत्र की मृतप्राय नदी, चौर और झीलों को पुनर्जीवित किया जाए, नदियों में अवैध और अविवेकपूर्ण खनन पर रोक लगे, नदियों के किनारे हरित पट्टी बने।

सड़क और रेल मार्ग के निर्माण के वक्त पानी के प्रवाह का ध्यान रखा जाए, तालाबों में मच्छरदानी जाल या जहर का इस्तेमाल प्रतिबंधित हो, बिहार में 65-70 साल पुरानी बांध परियोजनाओं के ऑडिट के लिए कंसोर्टियम बने, सभी राजस्व गांवों के सार्वजनिक जलाशयों का विवरण तैयार हो।

बिहार जैसे राज्य के लिए यह जल-जन घोषणा पत्र काफी महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है। दरभंगा स्थित संस्था तालाब बचाओ अभियान के संयोजक नारायण जी चौधरी कहते है, “ बिहार सरकार के पास वॉटरबॉडी के कंजर्वेशन को लेकर कोई ठोस नीति और व्यवस्था ही नहीं है। यहां तालाबों के शहर दरभंगा में तालाब पर अतिक्रमण होते है और शिकायत करने पर हत्याएं होती है, लेकिन प्रशासन और नेता दोनों सोए रहते है।”

भौगोलिक तौर पर देखें तो बिहार के उत्तरी हिस्से में हिमालय से उतरने वाली 200 से अधिक जल धाराएं बेहतर प्रबंधन के अभाव में हर साल बाढ़ की स्थिति पैदा करती है, तो वहीं दक्षिणी बिहार में नदियां फरवरी-मार्च में ही सूखने लगती हैं और गया के इलाके में सूखे के हालात पैदा हो जाते हैं।

बीते कुछ साल से उत्तर बिहार के इलाकों में गर्मी के दिनों में पानी के टैंकर घूमने लगे है। जैसा कि दरभंगा के स्थानीय पत्रकार शशि मोहन कहते है, “ हम लोगों ने अपने जीवन में कभी उम्मीद नहीं की थी कि पानी के लिए टैंकर मोहल्ले में आएगा। लेकिन दरभंगा मधुबनी जहां एक वक्त में बहुत सारे पोखर थे, वहां गर्मियों में पानी की किल्लत हो जाती है।”

बीते वक्त में जल संसाधन के मामले में उत्तर बिहार की संपन्नता की कहानी यहां बहने वाली 200 से ज्यादा छोटी – बड़ी नदियां,एक लाख से अधिक तालाब और 21 हजार छोटे-बड़े चौरों (दलदली क्षेत्रों) की मौजूदगी कहती थी। लेकिन अब ये सब मनुष्य की जरूरतों के लिए अतिक्रमण का शिकार है।

प्रो. विद्दा नाथ झा जो जल जन घोषणा पत्र कमिटी से जुड़े है वो याद करते है, “ 25 साल से ये जल संकट हमारा दरवाजा खटखटा रहा है, लेकिन हम आंख मूंदे बैठे है। क्या हम यहां बैंगलोर वाली स्थिति बनने का इंतजार कर रहे है। मैं दरभंगा वालों से गुजारिश करूंगा कि अपने यहां आने वाले हर चुनावी उम्मीदवार से तालाब और नदी संरक्षण की योजना के बारे में पूछे।”

जल का ये संकट कितना गंभीर है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही में बिहार राज्य मत्स्यजीवी सहकारी संघ ने इस साल राज्य में 90 फीसदी तालाब सूख जाने की वजह से मछली और मखाने के उत्पादन में भारी कमी की आशंका जताई है।

संघ के प्रबंध निदेशक ऋषिकेश कश्यप के मुताबिक, “अप्रैल महीने में तापमान अधिक रहने और बारिश न होने की वजह से बिहार के  तालाबों से जुड़े मछुआरों की आजीविका पर सबसे बड़ा संकट उत्पन्न हो रहा है। ऐसे में सरकार को 72,000 तालाबों में मुफ्त बोरिंग करवानी चाहिए।”

दरअसल राज्य की नदियों, तालाबों और दूसरे जल निकायों की तबाही की वजह से कभी मछली उत्पादन में सिरमौर रहे उत्तर बिहार में अब आंध्र प्रदेश और बंगाल की मछलियां बिकती है। जिसके चलते मछुआरे बेरोजगार होकर दूसरे कमतर पेशा अपनाने को विवश हैं।

ऐसे वक्त में जब बिहार में रोजगार का सवाल चुनावों का एक अहम मुद्दा है, तब मछुआरों का मजदूर बनते जाने का सवाल चुनाव से गायब है। ये भी दिलचस्प है कि इस चुनाव में निषादों की रहनुमाई करने वाली पार्टी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) मैदान में है।

एनडीए की तरफ से भी राज्य के नौ फीसदी निषादों के वोट को अपने पक्ष में करने की कोशिश की जा रही है। मगर दोनों तरफ से चलाये जा रहे चुनाव प्रचार अभियानों में न जल निकायों की सुरक्षा को लेकर कोई बात की जा रही है, न निषादों की आजीविका का मसला उठाया जा रहा है।

अजीत कुमार मिश्र जिन पर ये घोषणा पत्र सभी राजनीतिक दलों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी थी, वो बताते है, “ हम लोगों ने पटना और दरभंगा में सभी राजनीतिक दलों में अपना जल जन घोषणा पत्र पहुंचाया, लेकिन कोई खास रिस्पांस नहीं मिला। जेडीयू कार्यालय में कहा गया कि हमारी सरकार ने जल जीवन हरियाली कार्यक्रम शुरू किया है जिससे नदियां बच जाएगी। लेकिन ये दावे धरातल पर सच नहीं दिखते।”

पटना हाईकोर्ट के आदेश पर बिहार सरकार ने जरूर जल, जीवन हरियाली की शुरुआत की है। मगर इस मिशन के जरिये भी अब तक तालाबों को अतिक्रमण मुक्त नहीं कराया जा सकता है। मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बिहार में इस वक्त 1,15,022 तालाब हैं। इनमें से 46566 सार्वजनिक तालाब हैं और इन सार्वजनिक तालाबों में से 9810 अतिक्रमण का शिकार हैं। 

एक हकीकत ये भी है कि बिहार के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इस चुनाव में अपना घोषणापत्र जारी नहीं किया है। जदयू, लोजपा(रा), हम, रालोजद, वीआईपी जैसी पार्टियां ने कोई स्वतंत्र घोषणा पत्र ही जारी नहीं किया है। राष्ट्रीय जनता दल ने जरूर अपना अलग घोषणा पत्र जारी किया है। लेकिन 24 जनवचन नाम के इस परिवर्तन पत्र में भी जल निकायों के संरक्षण और संवरंधन को लेकर कोई बातचीत नहीं है।

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