बुंदेलखंड गंभीर जल संकट के लिए जाना जाता है। इसका सबसे अधिक असर हाशिये पर खड़े समाज पर पड़ रहा है। खासकर महिलाओं को पानी की बूंद-बूंद का इंतजाम करने के लिए अपने सब कुछ का दांव पर लगाना पड़ रहा है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो स्थायी समाधान के लिए बड़ी से बड़ी चुनौती से लड़ रहे हैं।
हमारी यह कहानी उन महिलाओं की है, जिन्होंने एक पहाड़ काटकर पानी गांव तक पहुंचाने की पहल की जिसके परिणामस्वरूप यहाँ के भौगोलिक व सामाजिक परिदृश्य में अकल्पनीय बदलाव आ रहे हैं।
किरण मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के एक छोटे से गांव अगरौठा में रहती हैं। यह जिला उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की सीमा पर बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थित है।
किरण कहती हैं, "मुझे पानी के लिए रोजाना 2 से 2.5 किमी पैदल चलना पड़ता था। ऊंची जाति के लोगों ने हमें उनके टैंकर से पानी नहीं लेने देते हैं।”
दरअसल किरण एक जल सहेली हैं। उनकी तरह पूरे बुंदेलखंड में लगभग 1,000 जल सहेलियां सक्रिय हैं। प्राथमिक तौर पर ये जल संरक्षण व पर्यावरण के मुद्दों पर काम करती हैं। इन जल सहेलियों को ‘परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने प्रशिक्षित किया है।
बुंदेलखंड में जल सहेलियां सूख चुके जल स्रोतों के पुनरुद्धार के लिए काम कर रही हैं. इसके लिए पानी पंचायत (जल पंचायत) का आयोजन किया जाता है।
2019 में अगरौठा में हुई एक पानी पंचायत का निष्कर्ष ये निकला कि वर्षा जल संरक्षण से ही पानी की समस्या सुझाई जा सकती है। गांव में एक ही तालाब है, जो अधिकांश समय सूखा रहता था।
अगरौठा बक्सवाहा के जंगली पहाड़ों के किनारे बसा हुआ है। इन पहाड़ियों पर गिरने वाला और जंगल से बहकर आने वाला बारिश का पानी पहले तालाब के पीछे दो पहाड़ियों के बीच से बहकर निकल जाता था। जल सहेलियों ने एक पहाड़ी काटकर इस वर्षा जल तो तालाब तक पहुंचाने का रास्ता बनाया। वही खुदाई के दौरान निकली मिट्टी से बांध बनाकर पानी का रास्ता रोक दिया जिससे पानी की धारा मुड़कर तालाब तक पहुंचने लगी।
किरन डाउन टू अर्थ से कहती हैं कि हमें जब उन्होंने पहाड़ खोदकर पानी लाने की योजना गांव में बताई तो पूरे गांव खासकर पुरुषों द्वारा हमारा मजाक उड़ाया गया। यहां तक तक हमें परिवार से भी सहयोग नहीं मिला।
अगरौठा की यह घटना महिला सशक्तिकरण की मिसाल बनी। इसका परिणाम ये हुआ कि बुंदेलखंड के अन्य जिलों में भी पानी पंचायत का आयोजन किया जाने लगा। छतरपुर के भोयरा गांव की जल सहेली गंगा राजपूत को जल संरक्षण हेतु किए गए सराहनीय प्रयासों व कार्यों के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के द्वारा स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया गया।
जल सहेलियों के माध्यम से गांवों में किचन गार्डन की परंपरा को स्थान, जल निकासी की समस्या सुझाने के लिए सोखते का निर्माण, बछेड़ी नदी, खूड़र नदी समेत कई नदियों पर स्टॉप डैम व बोरी बंधन का काम व सैकड़ों गांवों में जल श्रोतों का पुनरुद्धार किया गया। अबतक बुंदेलखंड में 2256 हेक्टेयर भूमि को 10.121 बिलियन लीटर पानी उपलब्ध कराने का काम जल सहेलियों ने किया है।
इस जल संरक्षण का फायदा सभी जाति-वर्गों को मिला। परिणामस्वरूप महिलाओं के साथ होने वाले जातीय भेद भाव में भी कमी आयी और कई मामलों में जल सहेलियों को इतना समर्थन मिला कि वे ग्राम प्रधान व जिला परिषद सदस्य के रूप में भी चुनी गई।