जल बिन प्यासे शहर, भाग चार: “डे जीरो” के करीब पहुंचा जयपुर

निवासियों में अब भी जल संरक्षण के अहम तरीकों के बारे में जागरुकता की कमी है - रोहित गोयल
जयपुर का जल महल। फाइल फोटो: भरत लाल सेठ
जयपुर का जल महल। फाइल फोटो: भरत लाल सेठ
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हाल के वर्षों में, रिपोर्टों ने विभिन्न शहरी केंद्रों के लिए जलसंकट और संभावित “डे जीरो” संकट को उजागर किया है। ‘डे जीरो’ शब्द पहली बार अप्रैल 2018 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में पानी के संकट के दौरान चर्चा में आया। यह उस महत्वपूर्ण बिंदु का प्रतिनिधित्व करता है जब किसी शहर या क्षेत्र का जल भंडार खतरनाक स्तर तक गिर जाता है। यह स्थायी जल प्रबंधन और संरक्षण प्रयासों की आवश्यकता की एक स्पष्ट चेतावनी है। भारत भी पानी की चुनौतियों का सामना कर रहा है। बेंगलुरु में चल रहे संकट का अभी तक कोई स्पष्ट समाधान नहीं निकला है।

दुनिया के सबसे अधिक वर्षा वाले प्रमुख शहरों में से एक चेन्नई को भी हाल के वर्षों में जलसंकट से जूझना पड़ा। जयपुर भी उसी दिशा में जा रहा, जनवरी 2024 की न्यूज रिपोर्टों में शहर में स्थानीय पानी की कमी को दिखाया गया है। शहरी क्षेत्रों में पानी के संकट में कई कारक योगदान करते हैं, जैसे शहरों का अभूतपूर्व विकास, जो अक्सर बुनियादी ढांचे के विकास से आगे निकल जाता है। अपर्याप्त शहरी नियोजन भी पानी की कमी को बढ़ा देता है, खासकर जब कार्यान्वयन में कमी होती है। तीसरा, अकुशल वितरण नेटवर्क और पुरानी जल आपूर्ति प्रणालियां उच्च नुकसान और संसाधनों पर दबाव डालती हैं।

इसके साथ ही, शहरी क्षेत्रों में सतही जल झीलें, नदियां और भूजल उपेक्षा और प्रदूषण का सामना करते हैं। आखिरकार, जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों के साथ, सूखे की लंबी अवधि से शहरों में मौजूदा पानी की कमी और बढ़ सकती है। कभी अपने नवाचार से वर्षा जल संग्रहण और जलापूर्ति प्रणाली के लिए प्रसिद्ध जयपुर अब ‘डे जीरो’ के खतरे का सामना कर रहा है, यानी वह दिन जब शहर में पानी की आपूर्ति पूरी तरह से रुक सकती है।  घरेलू और औद्योगिक गंदे पानी की मात्रा लगातार बढ़ रही है, और इसे साफ करने के प्रयास इनसे कम पड़ रहे हैं।

वर्षा जल संचयन की व्यवस्था तो है, लेकिन रख-रखाव में कमी के कारण वह पूरी तरह से कारगर नहीं है। जयपुर में उपयोगकर्ताओं तक पहुंचने से पहले ही पानी की बर्बादी (नॉन-रेवेन्यू वॉटर यानी एनआरडब्लू) अन्य भारतीय और अंतरराष्ट्रीय शहरों के मुकाबले कहीं ज्यादा है। मानसरोवर इलाके में चलाई गई एक सफल परियोजना ने पानी की बर्बादी को काफी कम कर दिया था, लेकिन पूरे शहर में इस मॉडल को लागू नहीं किया गया है। आम लोगों को अभी भी पानी बचाने के तरीकों और जल संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी है। जागरूकता बढ़ाकर, पानी बचाने के टिकाऊ उपाय अपनाकर और मौजूदा बुनियादी ढांचे में सुधार करके जयपुर इस संकट को टाल सकता है और उसे टालना भी चाहिए।

(रोहित गोयल, जयपुर के मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं)

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