जगमेंद्र सिंह ने धान की फसल से तौबा कर ली है। बीते खरीफ सीजन में उन्होंने लगभग ़12 एकड़ खाली छोड़ दिए। यहां वे बासमती धान लगाते थे, अगर खेत खाली नहीं छोड़ते तो उन्हें लगभग 8 लाख 40 हजार रुपए का फायदा होता, जिसका उन्हें मलाल तो है, लेकिन उन्हें लगता है कि आज नहीं तो कल, धान लगाना छोड़ना ही पड़ेगा। जगमेंद्र की ही तरह सतपाल ने अपने एक एकड़ के खेत पर धान नहीं लगाई, लेकिन उन्हें नुकसान नहीं हुआ। नुकसान होता, तब भी सतपाल पानी बचाने के लिए धान की खेती से तौबा करना चाहते हैं। हालांकि जगमेंद्र और सतपाल की परिस्थितियों में जमीन-आसमान का अंतर है, लेकिन उन्हें यह बात समझ आ गई है कि धान की फसल में कमी लानी ही होगी।
जगमेंद्र हरियाणा के झज्जर जिले के गांव बिरधाना के रहने वाले हैं, जहां खरीफ में 80 फीसदी इलाके में धान की बुवाई होती है। धान लगाने का कारण यहां का भूजल स्तर है, जो 10 से 12 फुट पर है। यहां एक बड़े हिस्से में जल भराव की स्थिति है। हालात यह हैं कि मिट्टी क्षारीय हो चुकी है। कृषि विभाग के अधिकारी किसानों को बता रहे हैं कि यदि उन्होंने धान लगाना नहीं छोड़ा तो एक दिन उनके खेत बंजर हो जाएंगे। राज्य सरकार की एक योजना ने किसानों को प्रोत्साहित भी किया है। इस योजना का नाम है “मेरा पानी मेरी विरासत”। इस योजना के तहत खेत खाली छोड़ने पर किसानों को 7,000 रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाती है, बशर्ते उस खेत पर धान की फसल ली जाती रही हो।
जगमेंद्र की तरह सतपाल को भी सरकार से 7,000 रुपए प्रति एकड़ मिलने वाला है। हालांकि उन्होंने अपना खेत खाली नहीं छोड़ा, बल्कि वहां बेमौसमी गोभी लगाकर अच्छी खासी रकम हासिल की। “मेरा पानी मेरी विरासत योजना” में धान की फसल की बजाय कोई और फसल लगाने पर भी प्रोत्साहन राशि दी जाती है। सतपाल कुरुक्षेत्र के गांव मेहरा में रहते हैं। हरियाणा जल संसाधन (संरक्षण,नियमन एवं प्रबंधन) प्राधिकरण के मुताबिक, जून 2020 में यहां का भूजल स्तर 41 मीटर (134.51 फुट) पर था, जबकि इससे 10 साल पहले यहां का भूजल स्तर 29 मीटर पर था। सतपाल कहते हैं कि हर साल लगभग 7 से 8 फुट पानी नीचे चला जाता है, इसलिए उन्होंने ठाना है कि वह धीरे-धीरे धान की फसल छोड़ देंगे। इसकी शुरुआत उन्होंने इस साल से ही की है। अगले साल वह पॉप्लर के पेड़ लगाएंगे।
जगमेंद्र लगभग 15 एकड़ में खेती करते हैं। खरीफ में सभी खेतों में धान लगाते हैं, लेकिन इस साल 12.49 एकड़ को खाली छोड़ने का मन बनाया। जगमेंद्र इसकी दो वजह बताते हैं। वह कहते हैं कि हमारे खेतों का भूजल स्तर इतना ऊपर आ चुका है कि मॉनसून के दौरान भारी बारिश होने पर धान की फसल तक खराब हो जाती है। पिछले साल भी ऐसा हुआ था। इसलिए उन्होंने इस साल सरकार की योजना में आवेदन कर खेत खाली छोड़ दिए। हालांकि इस साल बासमती की कीमत लगभग 4,500 रुपए प्रति क्विंटल थी और अगर उनके खेतों में धान की पैदावार ठीक रहती तो उन्हें लगभग 8 लाख 40 हजार रुपए की बचत होती। अब उन्हें सरकार से लगभग 87,400 रुपए मिलेंगे। मुनाफा न होने का दुख तो है, लेकिन एक न एक दिन शुरुआत तो करनी होगी। जगमेंद्र अपने खाली छोड़े गए खेत की मिट्टी दिखाते हुए कहते हैं कि मिट्टी में रेई (नमक) साफ दिखने लगी है, जो कुछ साल बाद धान को भी नुकसान पहुंचाने लगेगी। अब वह इस खेत को दो तीन साल तक लगातार छोड़ेंगे, तब मिट्टी में सुधार होने की उम्मीद है। उसके बाद वह पुरानी पारंपरिक फसलें जैसे जौ, बाजरा, अरहर, चना जैसी फसलें लगाएंगे। अपने गेहूं का खेत दिखाते हुए जगमेंद्र ने कहा, “यहां मैंने पहले धान लगाई थी, उसके बाद रबी सीजन में गेहूं लगाया, लेकिन मिट्टी इतनी खराब हो चुकी है कि दो बार सीडर मशीन से गेहूं लगाने के बाद भी अंकुरण नहीं हुआ। तीसरी बार जीरो ट्रिलर मशीन से बिजाई की, अब जाकर गेहूं में अंकुरण हुआ है।”
साल 2020 के खरीफ सीजन से हरियाणा सरकार ने राज्य में गिरते भूजल स्तर को बचाने के लिए “मेरा पानी मेरी विरासत योजना” की शुरुआत की थी, जिसका मकसद धान की बजाय ऐसी फसलें लगाने के लिए प्रोत्साहित करना था, जिनको पानी की कम जरूरत होती है। इनमें मक्का, कपास, बाजरा, दालें, सब्जी व फल शामिल हैं। साल 2021 में इस योजना में खरीफ तिलहन जैसे तिल, मूंगफली, अरंडी, खरीफ प्याज, खरीफ दलहन जैसे मोठ, उड़द, सोयाबीन, ग्वार और चारा फसलों को भी शामिल किया गया। इसी साल सरकार ने “खेत खाली फिर भी खुशहाली” योजना के नाम से खाली छोड़े गए खेतों को भी इसमें शामिल कर लिया, क्योंकि धान की खेती करने से कुछ इलाकों में भूजल स्तर काफी ऊपर आ गया था।
राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार खरीफ-2021 के दौरान राज्य सरकार के ठोस प्रयासों के कारण 2020 में 25,600 हेक्टेयर 2021 में 20,752 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बजाय दूसरी फसलें लगाने का लक्ष्य हासिल किया और राज्य सरकार ने 2020 में 45 करोड़ और 2021 में 31 करोड़ रुपए का प्रोत्साहन दिया। खरीफ-2022 में वैकल्पिक फसलों के दायरे में कृषि वानिकी (पॉप्लर और यूकेलिप्टस) को शामिल किया गया। साल 2022 में धान के खेत खाली छोड़ने व फसल विविधिकरण का लक्ष्य 40,000 हेक्टेयर रखा गया था, जिसमें से 37,956 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए आवेदन किया गया। इसमें से क्षेत्रीय अधिकारियों द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 23,554 हेक्टेयर क्षेत्र को सही पाया गया।
हरियाणा में पानी का संकट लगातार बढ़ रहा है। हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण और हरियाणा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग द्वारा तैयार किए गए इंटिग्रेटेड वाटर रिसोर्स एक्शन प्लान 2023-2025 के मुताबिक, साल 2021 में हरियाणा में पानी की उपलब्धता 30,57,298 करोड़ लीटर थी, जबकि मांग 44,59,976 करोड़ लीटर। इस तरह लगभग 14 लाख करोड़ लीटर के अंतर को पाटने की जरूरत है। एक्शन प्लान में 152 लाख एकड़ में फैले कृषि क्षेत्र के लिए पानी की मांग की गणना 30,05,514 करोड़ लीटर की गई, जो वर्ष 2025 में 30,34,554 करोड़ लीटर बढ़ने का अनुमान था। हरियाणा में तेजी से गिरते भूजल स्तर को संभालने के लिए साल 2020 में हरियाणा जल संसाधन (संरक्षण,नियमन एवं प्रबंधन) प्राधिकरण का गठन किया गया। प्राधिकरण की सर्वे रिपोर्ट में पाया गया कि राज्य के 6,885 गांवों में से केवल 1,261 गांव ऐसे हैं, जहां भूजल स्तर सुरक्षित स्थिति में है। यहां का भूजल स्तर 5 से 10 मीटर पर है, जबकि 4,628 गांव ऐसे हैं, जहां भूजल स्तर घट रहा है और 996 गांव ऐसे हैं, जहां का भूजल स्तर बढ़ रहा है (देखें, पानी की कहानी,)।
जानकार इन दोनों ही परिस्थितियों के लिए धान को दोषी मान रहे हैं। झज्जर जिले के कृषि विभाग के तकनीकी अधिकारी ईश्वर जाखड़ बताते हैं कि एक किलो चावल के उत्पादन के लिए 5,000 लीटर पानी की जरूरत होती है, जिससे भूजल स्तर नीचे जाता है, लेकिन जिन इलाकों में मिट्टी ऐसे होती है कि पानी नीचे नहीं पहुंचता, वहां लगातार धान लगाने से भूजल स्तर ऊंचा होता जाता है। ऐसा झज्जर में हो रहा है।
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