राशन तो मिल गया, लेकिन पीने को पानी नहीं है

झारखंड की राजधानी रांची से 40 किमी दूर पर बसे आदिवासी टोले के लोग नदी का गंदा पानी छान कर पीने को मजबूर हैं
झारखंड की राजधानी रांची से 40 किमी दूर डरिया डेरा टोला के आदिवासी इस तरह पानी का इंतजाम करते हैं। फोटो मो. असगर खान
झारखंड की राजधानी रांची से 40 किमी दूर डरिया डेरा टोला के आदिवासी इस तरह पानी का इंतजाम करते हैं। फोटो मो. असगर खान
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मो. असगर खान

फूस की झोपड़ी के नीचे हल को कुल्हाड़ी से मरम्मत कर रहे है 55 साल के सुंदर मुंडा की ये चिंता कई पीढ़ियों से चली आ रही है। चिंता का नाम जल है। रांची से 40 किलोमीटर दूर पतरातू को जाने वाली सड़क के किनारे और रामगढ़ जिला के सीमा से सटा हुआ आदिवासियों का धनकचरा टोला पेयजल जैसे मौलिक अधिकार से वंचित है।

राड़हा पंचायत के इस टोले में 10 घर के करीबन 55 लोग हैं, जो पास की नदी का पानी पीकर जिंदगी जी रहे हैं। उन्हीं में शामिल सुंदर मुंडा कहते हैं, “कई पीढ़ी से नदी का पानी पी कर जिंदगी गुजर कर रहे है। मजदूरी से राशन चलता था, लेकिन अब वो भी बंद है।”

सुंदर मुंडा के परिवार में उनके बूढ़े मां, बाप के अलावा दो बच्चे भी हैं। कहते हैं कि इस बार सरकारी राशन टाइम पर मिल गया है, जिससे खाने की परेशानी तो थोड़ी कम हो गई है, लेकिन पानी समस्या पहले की ही तरह है।

संदुर मुंडा से बात करता देख टोले की फुलमनी देवी (33) मुन्नी देवी (67 वर्ष), सन्नी देवी (40) पास आकर कहने लगती हैं, “पानी की बहुत समस्या है। हम लोग नदी का गंदा पानी कपड़े से छानकर पीते हैं। गर्मी में नदी का पानी जब सूख जाता है तो दो किलोमीटर दूर जाकर पानी लाते हैं। चापाकल, कुआं के लिए लिखकर कई बार लोग (मुखिया व अन्य जनप्रतिनिधि) ले गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ।”

फुलमनी देवी कहती हैं कि 2002 में ही उनके पति की मौत (सांप काटने से) हो गई। एक बेटा है, जो उनके साथ मजदूरी का काम किया करता है। टोले वालों के मुताबिक उन्हें न स्वास्थ्य की सुविधा है और न शिक्षा की, लेकिन सबसे बड़ी परेशानी पानी की बताते हैं, हालांकि टोले में बिजली है, लेकिन सड़क नहीं है।

इसी टोले से एक किलोमीटर की दूरी पर एक और दस घर का आदिवासी टोला है। डरिया डेरा टोला जो सुकुरहुटु पंचायत में आता है। यहां भी करीबन 60-70 आदिवासी लोग हैं, जो धनकचरा टोले जैसी ही समस्या झेल रहे हैं। टोले के लोग कहते हैं कि वे भी कई पीढ़ियों से नदी का पानी पीने को मजबूर हैं। बातचीत में सधनी मुंडा (65) कहने लगती हैं, “छौवा, पोता का ब्याह कर दिए हैं। अब उसका लड़का लोग बड़ा हो गया। बहुत समय बीत गया तबसे नदी का गंदा पानी पी रहे हैं। मुखिया लोग वोट मांगने सिर्फ आते हैं, पानी देने के लिए नहीं।”

टोले के सुरेश उरांव (35) बताते हैं, “टोले के लोग जिस नदी का पानी पीते हैं, उसे भी काफी दूर लाना पड़ता है। पानी और सड़क की काफी समस्या है। लॉकडाउन में हम लोगों की परेशानी और बढ़ गई है। यहां सब लोग दिहाड़ी मजदूरी करके पेट पालते थे, लेकिन इधर तो वो भी खत्म हो गया। कई घर के पास तो राशन कार्ड भी नहीं है। बिजली थी, तो भी दो महीने से ट्रांसफार्मर खराब है। अंधेरे में ही रहना पड़ रहा है।”

टोले से कुछ ही दूर पर पतरातू डैम है जहां लाखों लीटर जल का भंडार है, जबकि आठ किलोमीटर की दूरी पर जिंदल स्टील प्लांट है जहां के लोगों तक हर सुविधा है, लेकिन धनकचरा और डरिया डेरा टोले के आदिवासियों को पीने के लिए साफ पानी तक नसीब नहीं है। राज्य के लिए इस तरह की खबरें अन्य जिलों से भी आती रही हैं। झारखंड का यह हाल तब है, जब लॉकडाउन में सरकार के पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री मिथिलेश कुमार ठाकुर किसी भी परिस्थितियों में राज्य की जनता को पेयजल की दिक्कत नहीं होने देने की बात लगातार कह रहे हैं।

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