भारत में आज भी 23 फीसदी ग्रामीण आबादी को पीने का साफ पानी नहीं मिल रहा है। यदि इसे जनसंख्या के लिहाज से देखें तो यह आंकड़ा 21 करोड़ है। यदि सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो उसके हिसाब से देश में करीब 71 करोड़ ग्रामीणों को प्रति दिन 40 लीटर पानी मिल रहा है। 18 करोड़ को प्रति दिन 40 लीटर से कम पानी मिल रहा है। जबकि 3 करोड़ ग्रामीणों के लिए जो पानी उपलब्ध है, उसकी गुणवत्ता खराब है। यह जानकारी जल शक्ति मंत्रालय के राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया द्वारा एक प्रश्न (संख्या 2488) के जवाब में लोकसभा में दिए उत्तर से पता चली है।
यदि राज्य स्तर पर देखें तो बिहार की स्थिति सबसे खराब है। जहां करीब 3 करोड़ 77 लाख लोगों को पीने का 40 लीटर से भी कम पानी उपलब्ध है। जबकि वहां 33 लाख से ज्यादा लोग गन्दा पानी पीने को मजबूर हैं। जबकि केरल में 3 करोड़ 29 लाख ग्रामीण पानी की कमी की समस्या से त्रस्त हैं। वहां 7 लाख 37 हजार को गन्दा पानी पीना पड़ रहा है। वहीं पश्चिम बंगाल में 1 करोड़ 98 लाख लोगों को निर्धारित 40 लीटर से कम पानी मिल रहा है| जबकि राजस्थान में यह आंकड़ा 1 करोड़ 72 लाख और महाराष्ट्र में 1 करोड़ 44 लाख, और आंध्र प्रदेश में 1 करोड़ 18 लाख के करीब है। यदि पानी की गुणवत्ता की बात करें तो देश में सबसे खराब स्थिति पश्चिम बंगाल की है, जहां 94 लाख से ज्यादा लोग गन्दा पानी पीने को मजबूर हैं। दूसरे नंबर पर राजस्थान आता है जहां यह आंकड़ा 51 लाख है। जबकि पंजाब में 38 लाख, बिहार में 33 लाख और असम में 31 लाख से ज्यादा लोग इस समस्या से त्रस्त हैं। वहीं देश में सबसे अच्छी स्थिति गुजरात और मध्य प्रदेश में हैं जहां हर किसी को 40 लीटर से ज्यादा पानी उपलब्ध है। जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार गुजरात, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, नागालैंड मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम, पुडुचेरी, लद्दाख, अंडमान एंड निकोबार और गोवा में हर किसी को साफ पानी मिल रहा है।
क्या हासिल हो पाएगा 2024 तक 'हर घर नल से जल' का लक्ष्य
पानी की इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों के साथ मिलकर अगस्त 2019 में ‘जल जीवन मिशन’ की शुरुआत की थी। जिसका लक्ष्य 2024 तक हर घर तक साफ पीने का पानी मुहैया कराने का है। इस योजना के अंतर्गत हर व्यक्ति को 55 लीटर साफ पीने का पानी उपलब्ध कराने की बात कही गयी है। जिसके लिए अगले पांच सालों में करीब 3.6 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे। जिसका 50 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जायेगा जबकि बाकि 50 फीसदी राज्य सरकारों को खर्च करना होगा। पर यदि पिछले तीन सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो 1 अप्रेल 2017 में करीब 76.78 फीसदी ग्रामीणों को पीने का 40 लीटर या उससे ज्यादा पानी उपलब्ध था। यह आंकड़ा अप्रेल 2018 में बढ़कर 78.86 पर और अप्रैल 2020 में करीब 2 अंक बढ़कर 80.92 पर पहुंचा था। और यदि इस विकास दर को प्रति वर्ष 2 फीसदी माना जाये तो इस हिसाब से अभी भी साफ और निर्धारित मात्रा से वंचित 18 फीसदी ग्रामीण आबादी के लिए जरुरी जल व्यवस्था करने में 9 साल और लगेंगे । इस लिहाज से 2024 तक 'हर घर नल से जल' का लक्ष्य हासिल करना एक सरकार के लिए एक टेढ़ी खीर है।