पूर्वी राजस्थान के सूखाग्रस्त जिलों में पेयजल और सिंचाई होगी संभव!

राजस्थान के कई जिलों में जहां पेयजल की कमी है, वहां पीने के पानी की आपूर्ति करने के अलावा, यह मेगा परियोजना अतिरिक्त 2 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई का पानी भी उपलब्ध कराएगी।
पूर्वी राजस्थान के सूखाग्रस्त जिलों में पेयजल और सिंचाई होगी संभव!
Published on

मानसून की एक-एक बूंद को संचय करने में राजस्थानियों को महारथ हासिल है। इस मामले में उनका कोई मुकाबला नहीं। यही कारण है कि बारिश की हर बूंद को सहेजने की इस प्रवृत्ति ने उन्हें प्रकृति ने कभी प्यासा नहीं रखा। इसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए राज्य और केंद्र सरकार ने पूर्वी राजस्थान के सूखे इलाकों में पानी पहुंचाने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) जैसी एक महत्वाकांक्षी परियोजना की कल्पना की। लेकिन इसमें तमाम प्रकार की राजनीतिक खींचतान ने इसे एक लंबे समय तक अटका दिया। लेकिन अब पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों (झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, अजमेर, दौसा, करौली, अलवर, भरतपुर और धौलपुर) में पेय और सिंचाई के लिए पानी पहुंचने का रास्ता साफ हो गया है। यह मामला पिछले एक दशक से अटका हुआ था। लेकिन अब केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की राजस्थान और मध्य प्रदेश के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में इस बात पर सहमति बनी है कि दोनों राज्य अब नई संशोधिम डीपीआर तैयार करेंगे। और जनवरी के आखिरी में एमओयू पर हस्ताक्षर होने की संभावना है। इससे राजस्थान के 13 जिलों को पेयजल, सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सकेगा। वहीं, प्रोजेक्ट लागत का 90 प्रतिशत पैसा भी केन्द्र सरकार वहन करेगी। अभी तक दोनों राज्यों के बीच जल बंटवारे को लेकर लंबे समय तक विवाद चल रहा था।   

ध्यान रहे पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) एक महत्वाकांक्षी परियोजना है जिसका उद्देश्य बरसात के मौसम के दौरान उपलब्ध अतिरिक्त पानी का संचयन करना और इसका उपयोग उन क्षेत्रों में पीने, सिंचाई के लिए करना है जहां पानी की कमी है। ईआरसीपी का उद्देश्य विशेष रूप से दक्षिणी राजस्थान में नदियों में मौजूद अतिरिक्त पानी का संचयन करना और उस पानी का उपयोग दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में पीने, सिंचाई उद्देश्यों के लिए करना है जहां पानी की कमी है। राजस्थान के कई जिलों में जहां पेयजल की कमी है, वहां पीने के पानी की आपूर्ति करने के अलावा, यह मेगा परियोजना अतिरिक्त 2 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई का पानी भी उपलब्ध कराएगी। इस परियोजना से दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारे को भी पानी की आपूर्ति हो सकेगी और क्षेत्र में बाढ़ और सूखे की स्थिति पर नियंत्रण संभव हो सकेगा। पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के तहत चंबल और उसकी सहायक नदियों जैसे कुन्नू, पार्वती और कालीसिंध और अन्य नदियों में पानी का संचयन किया जाएगा। ध्यान रहे कि ईआरसीपी की अनुमानित लागत लगभग 40,000 करोड़ रुपय आंकी गई है, जिसे राज्य सरकार द्वारा वहन करना संभव नहीं था इसलिए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा चाहते थे।

सालों से पूर्वी राजस्थान के जिले घरेलू और सिंचाई दोनों उद्देश्यों के लिए पानी की कमी से जूझ रहे हैं। चंबल बेसिन से अधिशेष मानसून पानी को मोड़ने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ईआरसीपी) तैयार की गई थी। यह योजना इतनी महत्वपूर्ण है कि हाल में ही संपन्न हुए विधान सभा चुनाव में सबसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था। कारण कि इन जिलों में आज भी वैकलपिक दिनो में केवल पांच से 10 मिनट तक के लिए पानी आता है और वह भी रात के पहर में। गर्मी हो या सर्दी हर मौसम में पानी की आवक इसी प्रकार से बनी रहती है। यह एक भयावह स्थिति है। स्थानीय लोगों को पूरी तरह से टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

इन जिलों में पीने के पानी की समस्या मुख्यत: शहरी इलाकों में अधिक होती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में भूजल स्तर में गिरावट के कारण किसानों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल  पा रहा है। इस परियोजना के पूरा होने पर पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में दो लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधाएं बढ़ने की उम्मीद है।

केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में बताया था कि ईआरसीपी की एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) राज्य सरकार ने नवंबर 2017 में केंद्रीय जल आयोग को सौंपी थी। हालांकि, परियोजना का मूल्यांकन आगे नहीं बढ़ सका क्योंकि परियोजना को 75 प्रतिशत निर्भरता के स्थापित मानदंड के मुकाबले 50 प्रतिशत भरोसेमंद उपज पर योजना बनाई गई। इससे ईआरसीपी राष्ट्रीय परियोजना योजना के तहत शामिल करने के लिए निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करती। हालांकि, नदियों को जोड़ने की विशेष समिति ने दिसंबर 2022 में राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के एक हिस्से के रूप में ईआरसीपी के साथ एकीकृत संशोधित पारबती-कालीसिंध-चंबल (पीकेसी) लिंक परियोजना पर विचार करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in