मध्य प्रदेश के सीधी जिले में नाले का रूप अख्तियार कर चुकी सूखा नदी को पुनर्जीवित करने की मुहिम छिड़ गई है। यह पूरी कवायद जिला अधिकारी ने शुरू की और अब इसे सीधी के लोगों का अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है। सीधी शहर से गुजर रही नदी के करीब 2 किलोमीटर लंबे हिस्से को अतिक्रमण से मुक्त कर दिया गया है। इस हिस्से में नदी के किनारे चौड़े कर दिए गए और उसमें जमा गाद को निकाल दिया गया है।
सीधी निवासी युवा रंगकर्मी एवं इंद्रावती नाट्स समिति के सह संयोजक नीरज कुंदेर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सूखा नदी सीधी की जीवनरेखा है। अपने बचपन को याद करते हुए नीरज बताते हैं, “छोटे में हम पिताजी के साथ इस नदी में नहाने जाते थे। लेकिन अब नदी की हालत देखकर दुख होता है। नदी प्रदूषण और अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई है। मांस मंडी और शहर का कचरा नदी को प्रदूषित कर रहा है। शहर की नालियां उसमें जहर घोल रही हैं।” वह बताते हैं कि नदी की सफाई का ख्याल कई बार उनके जेहन में आया, लेकिन जिला अधिकारी की पहल के बाद उन्हें और उन जैसे सैकड़ों लोगों को बल मिला।
जिला अधिकारी अभिषेक सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया, “लोग लंबे समय से नदी के संरक्षण की मांग कर रहे थे। उनकी मांग को देखते हुए 15 दिन पहले प्रशासन ने नाले में तब्दील हो चुकी नदी को अतिक्रमण से मुक्त करने की पहल की।”
इसी पहल के तहत नदी के दोनों तरफ 20 फुट सड़क बनाई जा रही है। नदी के दोनों तरफ पौधरोपण, गार्डन, चलने के लिए फुटपाथ आदि विकसित करने की योजना है ताकि भविष्य में अतिक्रमण न हो सके। इस काम में जिन गरीबों का घर उजड़ेगा, उनका पुनर्वास किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि सूखा नदी करीब 17-18 किलीमीटर लंबी है और इसका पांच किलोमीटर का हिस्सा सीधी शहर में आता है।
सूखा नदी नाम क्यों पड़ा
सूखा नदी जिस गांव से निकलती है उसका नाम है चुनहा, अर्थात चूना वाला गांव। उस गांव की मिट्टी में चूना मिला हुआ है। नदी का उद्गम स्थल छोहड़ा छूही-चूना के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि किसी बच्चे को सूखा रोग होने पर यदि उसे नदी के जल में नहला दिया जाए तो वह रोग मुक्त हो जाता है। यही वजह है कि नदी को सूखा नदी के नाम से जाना जाता है। नीरज बताते हैं, “कैल्शियम की कमी से सूखा रोग होता है और चूने में कैल्शियम होता है। इस नदी के पानी में कैल्शियम की भरपूर मात्रा है। लेकिन विकास की बदनीयती से इसका अस्तित्व मिट सा गया है। नीरज कहते हैं कि देश और बुंदेलखंड की करीब सभी नदियों की यही सूरत है। सूखा नदी जगह-जगह अपने स्वरूप, परिधि, कैचमेंट एरिया से बेदखल होकर अवैध कब्जों की गिरफ्त में थी। लेकिन अब हमें लगता है कि यह अपने मूल स्वरूप में जल्द लौट आएगी।
रोज सैकड़ों लोग करते हैं श्रमदान
नदी बचाने की इस मुहिम में सीधी के सैकड़ों लोग श्रमदान के माध्यम से अपना योगदान दे रहे हैं। जिला अधिकारी अभिषेक सिंह बताते हैं, “हमने नदी को पुनर्जीवित करने के लिए किसी से धन नहीं लिया। केवल जनसहयोग मांगा। हमने लोगों से कहा कि मौके पर आइए और जितना संभव हो सके, उतना काम करिए।” वह बताते हैं कि जन सहयोग मिले तो किसी भी काम में धन की समस्या आड़े नहीं आती। नदी का करीब 25 प्रतिशत काम अब तक किया जा चुका है। यदि इतना काम सरकारी धन से होता तो करोड़ों रुपए खर्च हो जाते। वह बताते हैं कि यह काम पूरी तरह से लोगों की स्वैच्छा पर निर्भर है और इसमें लोग बढ़ चढ़कर भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। करीब 100-200 लोग रोज श्रमदान करने पहुंच रहे हैं। सीधी के ठेकेदार, दुकानदार और युवा नदी को पुनर्जीवित करने के इस यश्र में योगदान देने में पीछे नहीं हट रहे हैं। करीब 10-12 जेसीबी और 2 पोकलैंड मशीनों की व्यवस्था स्थानीय लोगों ने खुद ही की है। संभाग के आयुक्त से लेकर शहर के एसपी, स्थानीय विधायक और सांसद तक का समर्थन मिल रहा है।
आगे की योजना
जिला अधिकारी ने बताया कि शहर में काम पूरा होने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में ध्यान दिया जाएगा। वहां अतिक्रमण जैसी समस्या न होने पर विशेष दिक्कत नहीं आएगी। उनका कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में नदी की खुदाई और उसे चौड़ा करने के काम में मनरेगा फंड का इस्तेमाल किया जाएगा। अभिषेक सिंह बताते हैं कि सीधी के गंदे पानी को ट्रीट करने के लिए नगरपालिका की मदद से वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाएगा। इससे नदी में गंदा पानी जाना रुक जाएगा। उन्हें उम्मीद है कि इसी साल मॉनसून में सूखा नदी जीवित हो उठेगी।
(आशीष सागर के इनपुट के साथ)