दिल्ली में अंधाधुंध शहरीकरण की वजह से घट गए जलस्रोत

अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं, जिससे पानी की रिचार्ज क्षमता कम होती जा रही है
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, वरुण शिव कपूर, नई दिल्ली
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शोध संगठन वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट इंडिया (डब्ल्यूआरआई) के एक अध्ययन में पाया गया है कि शहरीकरण और शहर के निर्माण क्षेत्र में वृद्धि के कारण दिल्ली ने अपने कई जल स्रोत खो दिए हैं।

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) की "अर्बन ब्लू-ग्रीन कनन्ड्रम: भारत में प्राकृतिक बुनियादी ढांचे पर शहरीकरण के प्रभावों को लेकर 10 शहरों का अध्ययन" नामक एक अध्ययन में पाया है कि दिल्ली के जल स्रोतों का आवरण में बड़े पैमाने पर निर्माण में वृद्धि के कारण ये सिकुड़ गए हैं। जल स्रोतों में कमी 2000 में 1,216 वर्ग किमी से बढ़कर 2015 में 1,961 वर्ग किमी हो गई।

अध्ययन के मुताबिक, राजधानी में जल स्रोत या नीला आवरण 2000 से 2015 के बीच 15 साल की अवधि में काफी घट गया है। अध्ययन में किए गए उपग्रह विश्लेषण से पता चला है कि शहर के केंद्र से 0 से 20 किमी के दायरे में जल स्रोत 14 फीसदी और 20 से 50 किमी के दायरे में 23 फीसदी तक सिकुड़ गए हैं।

अध्ययन से पता चलता है कि जल स्रोत, 2000 में 36 वर्ग किमी से घटकर 2015 में 0 से 20 किमी के दायरे में 22 वर्ग किमी हो गया, जबकि 20 से 50 किमी के दायरे में, यह 2000 में 67 वर्ग किमी से घटकर 2015 में 44 वर्ग किमी हो गया।  जबकि 0 से 20 किमी का दायरा दिल्ली के भीतर 1,256 वर्ग किमी को कवर करता है, कुल 6,596 वर्ग किमी 20 से 50 किमी के दायरे में आता है।

2000 से 2015 के बीच शहरीकरण और जल स्रोतों तथा हरित इलाकों के आधारभूत संरचना जिसे ब्लू-ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर कहा जाता है, इसमें बदलाव की निगरानी के लिए रिमोट सेंसिंग आंकड़े और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया गया। इस अध्ययन में 10 शहरों, जिनमें अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, मुंबई, पुणे और सूरत को शामिल किया गया। अध्ययन शहर के केंद्र से 0 से 20 किमी और शहर के केंद्र से 20 से 50 किमी के दो स्थानीय अंतराल में किया गया।

अध्ययन में यह भी पाया गया कि निर्मित क्षेत्र में इस वृद्धि ने इस अवधि के दौरान दिल्ली की भूजल पुनर्भरण क्षमता को भी कम कर दिया है, हर दिन के 16.9 करोड़ लीटर (एमएलडी) भूजल पुनर्भरण विकास का नुकसान हो गया है। हालांकि, इसी अवधि में जनसंख्या में 8,817,771 की वृद्धि हुई, जिससे दिल्ली की पानी की मांग में 882 एमएलडी की वृद्धि हुई।

अध्ययनकर्ता तथा डब्ल्यूआरआई इंडिया के सहाना गोस्वामी ने बताया कि इस 169 एमएलडी में  से लगभग 125 एमएलडी का नुकसान उन क्षेत्रों में हो गया था जहां सबसे ज्यादा पुनर्भरण की क्षमता थी, उन्होंने आगे कहा कि कुछ कदम भी यह सुनिश्चित कर सकते थे यह पुनर्भरण की प्रक्रिया जारी रहती।

दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्रों जैसे शहरी इलाके प्रमुख आर्थिक केंद्र बने हुए हैं। अध्ययन से पता चलता है कि सतही जल स्रोतों और संभावित भूजल के क्षेत्रों जैसे प्राकृतिक बुनियादी ढांचे का नुकसान शहरी विकास के मौजूदा रूपों से निकटता से जुड़ा हुआ है और यह हमारे शहरों की जल संबंधी कमजोरियों को बहुत बढ़ाता है।

उन्होंने कहा कि हमारे प्राकृतिक बुनियादी ढांचे को संरक्षित और बहाल करना और शहरों में प्रकृति-आधारित समाधानों और नीले-हरे बुनियादी ढांचे को मुख्यधारा में लाना शहरी क्षेत्रों की लचीलापन बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले चरम मौसम की घटनाओं के खिलाफ सहायता प्रदान करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

हाइड्रोजियोलॉजी या जल विज्ञान शहरी योजना का एक अभिन्न अंग बनना चाहिए। अध्ययन में कहा गया है कि कुछ उदाहरण अब शहरी भारत जैसे दिल्ली और मुंबई में सामने आए हैं, जहां विकास प्राधिकरणों ने स्पष्ट रूप से शहर और क्षेत्रीय विकास योजनाओं, दिल्ली विकास प्राधिकरण 2021, मुंबई मेट्रोपॉलिटन प्लानिंग कमेटी 2021 में प्राकृतिक या नीले-हरे बुनियादी ढांचे को शामिल किया है।

डब्ल्यूआरआई में शहरी जल के निदेशक सम्राट बसाक ने कहा, भारत में शहरीकरण जारी है, हम इस चौराहे पर खड़े  हैं, क्या हमें मौजूदा पैटर्न के आधार पर विकास करना जारी रखना चाहिए? क्या हम जलवायु परिवर्तन के अतिरिक्त बोझ के साथ दशकों तक विभिन्न गलत प्रवृत्तियों के साथ चल सकते हैं। क्या हम तेजी से इको-सिटीज के नए रास्ते पर जाते हैं जहां अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी को समान रूप से महत्व दिया जाता है।

अध्ययन से पता चलता है कि जल स्रोतों में पानी की मात्रा में कमी या जल स्रोतों में अतिक्रमण के कारण जल स्रोतों के आवरण में कमी देखी गई। इन जैव-भौतिक दखल अंदाजी से शहरी निवासियों और इलाकों पर सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पड़ेगा, जैसे कि पानी की बढ़ती कमी, शहरी बाढ़ के कारण जीवन और संपत्ति का नुकसान, स्वास्थ्य के लिए गर्मी से होने वाले तनाव और खतरे और कम उत्पादकता, दूर के स्रोतों से पानी की आपूर्ति की वजह से शहरी पानी की लागत में वृद्धि आदि इसमें शामिल है।

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