हर 20 से 50 सवालों के जवाब ढूंढने में आधा लीटर पानी ‘पी’ जाता है चैट जीपीटी!

दुनिया में तेजी से लोकप्रिय होते एआई आधारित प्रोग्राम पर्यावरण पर भी गहरा असर डाल रहे हैं, जिनपर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है
डेटा सर्वर; फोटो: आईस्टॉक
डेटा सर्वर; फोटो: आईस्टॉक
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आप सभी ने चैट जीपीटी का नाम सुना होगा। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित प्रोग्राम बड़ी तेजी से दुनिया भर में लोकप्रिय बन गया है। यह सही है कि इस तरह के प्रोग्रामों ने काफी हद तक हमारा जीवन आसान किया है, लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस तरह के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित प्रोग्राम पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी काफी महंगे हैं, जो उसपर व्यापक प्रभाव डाल रहे हैं।

उदाहरण के लिए चैट जीपीटी की बात करें तो यह प्रोग्राम 20 से 50 सवालों के जवाब ढूंढने में करीब आधा लीटर पानी खर्च कर देता है। ऐसे में यह जल स्रोतों पर कितना ज्यादा दबाव डाल रहा है उसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं।

चैट जीपीटी एक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) आधारित बॉट है, जिसकी फुल फॉर्म चैट जेनरेटिव प्रिंटेड ट्रांसफार्मर है। चैट जीपीटी गूगल की तरह ही एक सर्च इंजन है, जो पूर्णतः एआई पर निर्भर करता है। मतलब, यदि आपकी कोई भी जिज्ञासा है तो बस टाइप कीजिए यह तुरंत आपके पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिख कर आपके सामने प्रस्तुत कर देगा।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पहली बार आर्टिफिशल इंटेलिजेंस की मदद से चलने वाले इन प्रोग्रामों द्वारा की जा रही पानी की खपत का अध्ययन किया है।

यह प्रोग्राम प्रश्नों के जवाब ढूंढने के लिए बेहद बड़े आकार के डेटा प्रोसेसिंग सेंटर और उनमें रखे विशालकाय सर्वरों पर निर्भर करते हैं। जो सूचनाओं का आदान प्रदान और विश्लेषण करने के लिए  क्लाउड कम्प्यूटेशंस पर भरोसा करते हैं।

यदि केवल अमेरिका में मौजूद गूगल के डेटा केंद्रों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो इन्होने 2021 में अपने सर्वरों को ठंडा रखने के लिए करीब 1,270 करोड़ लीटर ताजे पानी की खपत की थी। आज जब दुनिया भर के लिए पानी दुर्लभ होता जा रहा है। सूखा और जलवायु परिवर्तन इससे जुड़ी समस्याओं को और विकराल बना रहे हैं। ऊपर से यह प्रोग्राम बड़े पैमाने पर इन जल स्रोतों पर दबाव् डाल रहे हैं, जोकि चिंता का विषय है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और  इलेक्ट्रिकल और कंप्यूटर इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर शोलेई रेन ने बताया कि यह डेटा प्रोसेसिंग सेंटर दो तरह से बड़े पैमाने पर पानी की खपत करते हैं। सबसे पहला यह सेंटर बड़े पैमाने पर बिजली संयंत्रों से बिजली लेते हैं जो अपने आप को ठंडा रखने के लिए कूलिंग टावरों का उपयोग करते हैं। इसके लिए वो बड़े पैमाने पर पानी की खपत करते हैं।

दूसरा इन डेटा केंद्रों में हजारों सर्वरों को ठंडा रखने के लिए कूलिंग सिस्टम की जरूरत होती है। यह कूलिंग टावर ठंडा करने के लिए भारी मात्रा में पानी का उपयोग करते हैं। इस बारे में रेन का कहना है कि इन कूलिंग टावरों में पानी का उपयोग किया जाता है जो भाप बनकर इन सेंटरों से निकली गर्मी को वातावरण से हटा देता है। 

उनके मुताबिक एआई के लिए बड़े पैमाने पर पानी की खपत को इसलिए भी ध्यान में रखा जाना और नियंत्रित करना जरूरी है क्योंकिं आने वाले समय में डेटा प्रोसेसिंग की मांग तेजी से बढ़ रही है, जो कहीं ज्यादा पानी का उपभोग करेगी।

इसका उदाहरण देते हुई रिसर्च में कहा है कि अमेरिका में माइक्रोसॉफ्ट के अत्याधुनिक डेटा केंद्रों में जीपीटी-3 एआई प्रोग्राम के लिए करीब दो सप्ताह में सात लाख लीटर पानी की खपत की गई जो करीब 370 बीएमडब्ल्यू कारों के निर्माण में होने वाली पानी की खपत के बराबर है। वहीं यदि एशिया में इन डेटा केन्दों को देखें जो अमेरिका की तुलना में कम दक्ष हैं वहां इसके लिए पानी की खपत तीन गुणा बढ़ जाएगी।

दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है पानी की मांग, जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा है संकट

ऐसे में वैज्ञानिकों के मुताबिक यह जरूरी है कि एआई मॉडल अपनी सामाजिक जिम्मदारी को समझने और अपने स्वयं के वाटर फुटप्रिंट को कम करने के लिए प्रयास करें, जिससे बढ़ते जल संकट की समस्या का सामना करने में यह मॉडल एक उदाहरण प्रस्तुत करें।

ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह जरूरी है कि एआई मॉडल अपनी सामाजिक जिम्मदारी को समझें और अपने स्वयं के वाटर फुटप्रिंट को कम करने के लिए प्रयास करें, जिससे बढ़ते जल संकट की समस्या का सामना करने में वो एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकें।

वैज्ञानिकों के मुताबिक यह मुमकिन है, सौभाग्य से एआई को ट्रेनिंग देने के लिए अपने हिसाब से समय का चुनाव किया जा सकता है। इस मामले में यह वेब सर्च या यूट्यूब जैसे प्रोग्राम से अलग होते हैं, जिन्हें तत्काल प्रोसेस करने की जरूरत होती है।

वहीं इन एआई प्रोग्राम को दिन के किसी भी हिस्से में प्रशिक्षित किया जा सकता है। ऐसे में दिन के जिस समय तापमान कम होता है तो उस समय इन्हें प्रशिक्षित करने का काम किया जा सकता है जो पानी की बर्बादी से बचने का एक सरल और प्रभावी समाधान है। इन घंटों के दौरान पानी के वाष्पीकरण की दर कम होती है।

इस बारे में शोधकर्ता रेन का कहना है कि एआई ट्रेनिंग एक बहुत बड़े बगीचे की तरह है जिसे ठंडा रखने के लिए बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है। उनके अनुसार हम दोपहर में अपने बगीचों में दोपहर में पानी नहीं डालते। ऐसे में हमें दोपहर के समय एआई ट्रेनिंग से बचना चाहिए।

जल संकट आज एक गंभीर समस्या बन चुका है ऐसे में तेजी से बढ़ते एआई के उपयोग और उनके द्वारा की जा रही पानी की खपत को भी ध्यान में रखना जरूरी है।  सूखा, बढ़ता तापमान और जलवायु परिवर्तन पहले ही जल संकट को बढ़ा रहे हैं। ऐसे में हमें वो हर संभव प्रयास करने चाहिए जिनकी मदद से इसकी बढ़ती मांग को सीमित किया जा सके।

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