कोविड-19 महामारी ने हमें सिखाया की इस वायरस के डर को हराने के लिए साफ और पर्याप्त पानी कितना जरुरी है| 2021-22 के लिए जारी बजट में जल जीवन मिशन - ग्रामीण की तर्ज पर ही जल जीवन मिशन - शहरी लॉन्च किया गया है। जिसका मकसद ग्रामीण भारत की तरह ही शहरों के 2.86 करोड़ घरों में सुरक्षित पानी पहुंचाने का है| लेकिन इन सबके बीच बड़ा सवाल यह है कि 2019 में शुरू किया गया जल जीवन मिशन - ग्रामीण आखिर कहां तक पहुंचा है।
जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण भारत में लगभग 34 फीसदी घरों (655 लाख) को जल कनेक्शन प्रदान किया जा चुका है। यह पहली बार नहीं है, जब भारत में हर घर तक पानी देने का लक्ष्य रखा गया है। देश में यह 12 वां मौका है, जब जल शक्ति मिशन के माध्यम से हर घर को नल जल देने की योजना बनाई गई है। बस इस बार लक्ष्य 2024 का है। हालांकि वर्तमान मिशन के शुरू होने से पहले देश अपने वादे को पूरा करने में बुरी तरह विफल रहा है।
अक्टूबर 2019 तक देश में हर किसी के लिए शौचालय की व्यवस्था प्रधानमंत्री की एक बड़ी सफलता थी| ऐसे में इसके बाद हर घर तक साफ पानी पहुंचाना ग्रामीण भारत के लिए एक बड़ा वादा है जिसकी सख्त जरुरत भी है| ऐसे में इस मिशन के लिए आबंटन भी साल दर साल बढ़ता गया। इस साल इस मिशन के लिए 50,011 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जोकि 2020-21 के लिए जारी संशोधित बजट का लगभग साढ़े चार गुना है|
क्या इसका यह मतलब है कि ग्रामीण भारत में घरेलू पेयजल की सतत आपूर्ति नहीं हो पाई है। भारत हमेशा से "स्लिपेज" की समस्या से ग्रस्त रहा है। जिसका मतलब है कि जिन गांवों और बस्तियों तक सुरक्षित पेयजल की सुविधा पहुंच चुकी है वो विभिन्न कारणों के चलते फिर से फिसलकर नॉट-कवर्ड में आ जाते हैं| ऐसा अनेक कारणों से हो सकता है, जिसमें पानी के स्रोतों का सूख जाना और सुविधाओं का रखरखाव न करना शामिल हैं|
2012 से 2017 के बीच ग्रामीण जल आपूर्ति की स्थिति का विश्लेषण करने वाली कैग रिपोर्ट से पता चला है कि इस अवधि में 4.76 लाख बस्तियां 'पूर्ण रूप से कवर' से 'आंशिक रूप से कवर' की श्रेणी में चली गईं हैं। यदि ऐसी बस्तियों को देखें तो आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में उनकी संख्या कहीं ज्यादा है| ऐसे में देश के ग्रामीण घरों में यदि नलों की संख्या बढ़ाने के बावजूद ग्रामीण जलापूर्ति की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आएगा|
जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक 19,10,85,542 घरों तक पाइप के जरिए साफ पानी पहुंचाने की बात कही गई है| जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले पेयजल और स्वच्छता विभाग का कहना है कि करीब 16.9 फीसदी घरों तक पहले ही पाइप के जरिए पानी पहुंच रहा है| गौरतलब है कि यह विभाग ग्रामीण भारत को सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राज्यों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
2017 में सरकार ने हर घर जल कार्यक्रम शुरु किया था| जिसका उद्देश्य सभी को पाइप के जरिए साफ पानी मुहैया कराना था| हालांकि स्वच्छता विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार 1 अप्रैल, 2018 तक केवल 20 फीसदी ग्रामीण घरों को पाइप्ड जलापूर्ति से जोड़ा जा सका था। वहीं 2018-19 में 35 फीसदी ग्रामीण घरों तक पाइप के जरिए साफ पानी पहुंचाने की योजना थी| जिसमें हर घर को अतिरिक्त जल देने की बात कही गई थी| हर घर जल के तहत, मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार को 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन के हिसाब से पानी देने की बात कही थी| डाउन टू अर्थ में छपी खबर के अनुसार 50 फीसदी से भी कम परिवारों को इतना पानी मिलता है| जबकि पुरानी आपूर्ति दर जोकि 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन है वो करीब 80 फीसदी परिवारों को मिलती है|
इसमें सुधार लाने के लिए जलस्रोतों, विशेषकर भूजल के पुनर्भरण पर आधारित परियोजनाएं बनाई जानी चाहिए| इसके साथ ही भूजल सम्बन्धी नीतियों के कार्यान्वयन के लिए संस्थागत ढांचे के सुधार पर ध्यान देने चाहिए| इनमें स्थानीय लोगों विशेष रूप से महिलाओं को भी इन योजनाओं के निर्माण से लेकर कार्यान्वयन तक में शामिल करना जरुरी है|
वर्तमान बजट में क्षमता निर्माण और जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता को मान्यता दी गई है| यही वजह है की इन घटकों में तीव्र वृद्धि देखी जा सकती है। उदाहरण के लिए वित्त वर्ष 2020 -2021 के संशोधित बजट में सूचना, शिक्षा और संचार के लिए 20 करोड़ आबंटित किए गए थे, जो इस वर्ष के बजट में लगभग 3.5 गुना बढ़ गया है।
लेकिन स्वच्छ जल की उपलब्धता के लिए उसका सुरक्षित उपचार और वेस्टवाटर के पुन: उपयोग की आवश्यकता होती है| जिससे कीचड़ हमारे पेयजल स्रोतों को दूषित न करे। यही कारण है कि स्लज के सही उपचार पर भी बराबर जोर देने की आवश्यकता है। इस बार के बजट में 2019 की टॉयलेट++ योजना के लिए 9,994 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, यह निश्चित तौर पर पिछले साल के संशोधित बजट 6,000 करोड़ से ज्यादा है।
इसके लिए जमीनी स्तर पर बदलाव करने की जरुरत है| अपशिष्ट जल और अनुपचारित सीवेज उपचार के लिए बनाए गए गलत डिजाइनों में बदलाव की जरुरत है| अभी तक अपशिष्ट जल और सीवेज के उपचार के लिए कुछ जगहों पर छोटे स्तर पर योजनाएं शुरु की गई है, लेकिन अब उन्हें बड़े स्तर पर शुरु करने की जरुरत है| चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्लज के उसके स्थान पर ही उपचार किए जाने की जरुरत है, इसलिए उस पर भी ध्यान देने की जरुरत है| ऐसे में स्लज और वेस्टवाटर के सुरक्षित उपचार के लिए अनुसंधान और जागरूकता अब स्वच्छ भारत मिशन का मुख्य केंद्र बिंदु होना चाहिए।
यह ध्यान रखना होगा कि स्वच्छता के मामले में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है| जैसे ही बजट में इसके लिए प्रावधान बढ़ता है इसके प्रति आशाएं भी बढ़ जाती हैं| लेकिन केवल शौचालयों और नलों की गिनती से बदलाव नहीं आएगा| इसके लिए सस्टेनेबिलिटी प्लान पर काफी ध्यान देना होगा|