भारत में 75 रामसर स्थल, लेकिन बिहार में केवल एक, वो भी संरक्षित नहीं

बिहार के एकमात्र रामसर साइट की हालत यह है कि कभी भी झील सूख सकती है और वहां खेती शुरू की जा सकती है
नाव के पास खड़े 35 वर्षीय उपेंद्र सदा पर्यटकों को नाव की सवारी करवाते हैं। फोटो: राहुल कुमार गौरव
नाव के पास खड़े 35 वर्षीय उपेंद्र सदा पर्यटकों को नाव की सवारी करवाते हैं। फोटो: राहुल कुमार गौरव
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देश में अब तक 75 रामसर स्थलों की घोषणा हो चुकी है, लेकिन इनमें बिहार से एक ही है। जबकि यहां आर्द्रभूमि (वेटलैंड) अच्छी खासी संख्या में हैं।

इसरो द्वारा 2006-07 में किए गए रिमोट सेंसिंग डाटा आधारित सर्वेक्षण के मुताबिक बिहार में 4,03,209 हेक्टेयर का क्षेत्र वेटलैंड के अंतर्गत चिह्नित किया गया जो बिहार के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 4.4 प्रतिशत है।

सर्वेक्षण में 4,416 वेटलैंड चिह्नित किए गए और 2.5 हेक्टेयर से कम वाले 17,582 वेटलैंड को चिह्नित किया गया है, लेकिन इसमें से केवल एक रामसर स्थल बेगुसराय का कावर झील ही है, जिसे  अगस्त 2020 में रामसर साइट घोषित किया गया था।

बिहार वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के बिहार स्टेट वेटलैंड ऑथिरिटी द्वारा डेढ़ साल के भीतर वेटलैंड्स से संबंधित दो बड़ी बैठक हुई। जनवरी 2022 में हुई बैठक में पांच वेटलैंड्स को रामसर साइट का दर्जा देने के लिए दावा करने का प्रस्ताव पारित किया गया।

इसमें कुशेश्वरस्थान (दरभंग), बरैला (वैशाली), गोगा बिल (कटिहार), नागी डैम (जमुई) और नकटी डैम (जमुई) को चिह्नित किया गया। डेढ़ साल के बाद जुलाई 2023 को हुई बैठक में फिर से चार वेटलैंड को रामसर साइट घोषित करने के संकल्प के साथ चिन्हित किया गया।

इनमें सिर्फ एक पुराने गोगाबिल (कटिहार) और तीन नए नाम उदयपुर झील (पश्चिम चंपारण), विक्रमशीला डॉलफिन अभ्यारण्य (भागलपुर), और गोकुल जलाशय (बक्सर) को जोड़ा गया। वहीं केंद्र सरकार की वेबसाइट के डैशबोर्ड पर दी गई जानकारी में बिहार के 20 वेटलैंड की जानकारी दिखती है। संख्या के हिसाब से देखें तो बिहार आठवें स्थान पर है। 

बिहार में वेटलैंड पर काम कर रहे भागलपुर के पर्यावरणविद ज्ञान चंद्र ज्ञानी बताते हैं कि बिहार में प्रवासी पक्षियों का शिकार, किसानों का वेटलैंड क्षेत्र के आसपास कृषि, वेटलैंड प्रबंधन के लिए सरकारी नीतियां और वेटलैंड का संरक्षण प्रमुख अवरोध हैं। अनियमित वर्षा हो जल प्रबंधन का मामला हो या बाढ़ के दौरान बड़े पैमाने पर क्षति सरकार वेटलैंड के महत्व को समझ रहीं हैं तभी तो उन्हें बचाने के लिए आदेश निकाल रही हैं। हालांकि जमीन पर कोई असर नहीं दिख रहा है। सरकार समय रहते प्रयास नहीं किया तो शहरीकरण और जमीन अधिग्रहण वेटलैंड को तबाह कर देगा।"

एकमात्र रामसर साइट को संरक्षण की जरूरत 

बिहार के बेगूसराय शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित एकमात्र रामसर साइट और एशिया का सबसे बड़ा गोखुर झील (कावर ताल) के निकट 70 वर्षीय लालो सहनी मछली मारने के लिए 'अरसी' बना रहे थें, वो लगभग 20 साल से ही इस झील में मछली मार रहे हैं।

वो बताते हैं कि,"इस साल भी कम बारिश होने की वजह से पानी बहुत कम है। झील से लगा हुए 16 गांव का लगभग 20,000 निषाद समुदाय इसी झील से मछली पालन पर निर्भर है। एक तो तेजी से जनसंख्या बढ़ रहा हैं दूसरा अब पहले की भांति झील में पानी नहीं है। स्थिति इतनी खराब हैं कि पूरे दिन में हम और मेरा दोनों बेटा मिलकर भी 300 से 500 के बीच कमा नहीं पाते है। घर में सातों सदस्य का जीविका इसी पर निर्भर है। नया जनरेशन तो दिल्ली और पंजाब के भरोसे अपनी जिंदगी जी रहा है।"

35 वर्षीय उपेंद्र सदा पर्यटकों को नाव की सवारी करवाते हैं। वो बताते हैं कि, "2 दिन से 500 रुपए भी नहीं कमा पाया। 2010 के बाद शायद ही कोई साल होगा जब कावर ताल सूखा नहीं होगा। स्थिति ऐसी रही तो पूरा झील सूख जाएगी। कुछ दिनों में मछुआरा समाज मछली पालने के लायक नहीं रहेगा। जब पानी ही नहीं रहेगा तो प्रवासी पक्षी नहीं आएंगे। आज भी आते हैं तो शिकार होता है। सरकार ने इसे पर्यटक स्थल के रूप में घोषित तो किया हैं लेकिन जिले से बाहर के लोग घूमने नहीं आते।"

बेगूसराय के स्थानीय पत्रकार घनश्याम बताते हैं कि, "आए दिन किसानों और मछुआरें में संघर्ष देखने को मिलता है। झील के अगल-बगल वन क्षेत्र में  कम ही पौधा आपको देखने को मिलेगा जो 50 साल पुराना हो, सारे पौधे को माफिया ने काट लिया है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद प्रवासी पक्षी का शिकार नहीं रूक रहा है। झील को लेकर विभाग में बैठकें होती रहती है लेकिन जमीन पर कुछ नहीं होता।"

कई सालों से कावर झील पर रिसर्च कर रहे आरसीएस कॉलेज, बेगूसराय के प्रोफेसर रविकांत आनंद बताते हैं, "साल दर साल गाद बढ़ने की वजह से झील की गहराई कम होती जा रही है। सरकार ने कई सालों से गाद की सफाई नहीं कराई है। वहीं झील तेजी से सिकुड़ भी रहा है।कई किसान चाहते हैं कि ताल का पानी सूख जाएगा तो वह उस पर खेती करेंगे। स्थिति ऐसी रही तो अस्तित्व पर खतरा आ जाएगा।"

बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और पर्यावरणविद् अशोक घोष के एक रिपोर्ट के मुताबिक वनों की कटाई, अमीर किसानों की दबंगई,अस्थिर खेती जमीन का विवाद, गाद जमा होना जैसी कावर ताल के लिए चुनौतियां हैं।

किसी भी वेटलैंड को रामसर साइट का दर्जा देने के लिए कुछ मानक तय किए गए हैं। जिसमें मुख्य है वेटलैंड का दुर्लभ व प्राकृतिक होना और दूसरा संकटग्रस्त प्रजातियों के जीवन चक्र को प्रतिकूल परिस्थितियों में आश्रय प्रदान करता हो। बिहार में अधिकांश वेटलैंड प्राकृतिक संसाधनों से तो संपूर्ण है लेकिन दूसरे मानक पर सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। अधिकांश वेटलैंड प्रवासी पक्षियों का आश्रय स्थल के रूप में वहीं विक्रमशीला डॉलफिन अभ्यारण्य लुप्तप्राय डॉल्फिन के संरक्षण स्थल के रूप में जान जाता हैं। 

बिहार के वन और पर्यावरण मंत्रालय की ओर से प्रकाशित बर्ड्स इन बिहार किताब के मुताबिक प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग माने जाने वाले बिहार में इनकी तादाद घटती जा रही है।जिसका मुख्य वजह बिहार में विकास कार्य झीलों का सिकुड़ता रकबा और प्रवासी पक्षियों का शिकार हैं। 

बिहार सरकार 2020 में प्रवासी पक्षियों का अवैध व्यापार रोकने के लिए अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रभात कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में एक कमिटी बनाई थीं। जिसके सदस्य रह चुके पक्षी विशेषज्ञ अरविंद मिश्रा बताते हैं कि, "पहले की तरह बिहार में अब खुलेआम प्रवासी पक्षियों की बिक्री नहीं होती है लेकिन शिकार आज भी उतना ही हो रहा है। वजह है उत्तरी बिहार में प्रवासी पक्षी की मांग।"

भागलपुर में विक्रमशिला डॉल्फिन अभ्यारण में गंगा संरक्षक के लिए काम करने वाले दीपक कुमार बताते हैं, "इस साल वन विभाग ने रामसर साइट के लिए विक्रमशीला डॉलफिन अभ्यारण्य को भी शामिल किया है। वहां अभ्यारण्य के किनारों पर अवैध रूप से गंगा की मिट्टी को निकाल कर बेचा जा रहा है। मछली के जाल के अलावा कई वजहों से डॉल्फिन का शिकार किया जाता है। जिसमें मुख्य रूप से व्यवसायिक जलमार्ग क्रुज और मालवाहक विमान और अंधविश्वास हैं। प्रवासी पक्षियों के शिकार के लिए तो भागलपुर पहले से बदनाम रहा हैं। जब प्रवासी पक्षी और डॉल्फिन ही नहीं आएगा तो क्या फायदा? सरकारी तंत्र खामोश है।"

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