बेंगलुरु में पानी की किल्लत कोई अचानक आई हुई समस्या नहीं है। ये समस्या सालों से धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। दरअसल, शहर का विकास ही इसकी झीलों और तालाबों को खत्म करके किया गया है, जोकि हमारे पानी की सुरक्षा के लिए बहुत जरूरी हैं। 93 फीसदी से ज्यादा शहर अब पक्का बन चुका है, जिससे बारिश के पानी के जमीन के अंदर जाने में मुश्किल होती है और जमीन का पानी दोबारा भर नहीं पाता है। साथ ही गंदे पानी के निपटारे का सही सिस्टम ना होने से जितना पानी बचा है वो भी दूषित हो जाता है। पिछले कई दशकों से शहर अपनी 70 फीसदी पानी की जरूरत के लिए 100 किलोमीटर दूर कावेरी नदी पर निर्भर हो गया है। इससे पानी किफायती नहीं रह जाता, इसे दूर से लाना भी मुश्किल होता है। अब वक्त आ गया है कि बेंगलुरु कावेरी नदी के अलावा अपने पानी के स्रोतों को बढ़ाए। इसके लिए जमीन के अंदर पानी को दोबारा भरने के उपाय करने चाहिए और इस्तेमाल किए गए पानी को साफ करके दोबारा इस्तेमाल करने पर ध्यान देना चाहिए। पेश है दिल्ली से सुष्मिता सेनगुप्ता के साथ स्वाति भाटिया और बेंगलुरु से एम रघुराम के साथ कूवरकोली इंद्रेश की रिपोर्ट : रिपोर्ट की पहली कड़ी और दूसरी कड़ी के बाद पढ़ें अगली कड़ी -
कर्नाटक सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से जुड़े एक स्वायत्त निकाय “राज्य प्राकृतिक आपदा निगरानी केंद्र” के पूर्व विशेष निदेशक वी एस प्रकाश का कहना है कि यह संकट भूजल के खराब प्रबंधन से उपजा है। प्रकाश कहते हैं, “किसी भी जल स्रोत के मूल्यांकन की आवश्यकता होती है और इसके लिए निगरानी जरूरी है। दुर्भाग्य से, राज्य के पास भूजल पर पर्याप्त डेटा नहीं है।” वह यह भी कहते हैं कि शहर के नए विकसित इलाके ज्यादातर बोरवेल पर निर्भर करते हैं। लेकिन यह जानकारी नहीं रखी जाती कि कितना पानी निकाला जा रहा है।
वी एस प्रकाश कहते हैं, “मैं एचएसआर लेआउट में रहता हूं, जो इलेक्ट्रॉनिक सिटी के पास है। इस इलाके की बहुमंजिला इमारतें बोरवेल पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं। टैंकर हर रोज बोरवेल से पानी भरकर इमारतों में सप्लाई करते हैं। मेरे इलाके के बोरवेल से रोजाना लगभग 150 टैंकर पानी निकालते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, ये टैंकर सिर्फ मेरे इलाके से ही हर रोज 15 लाख लीटर पानी निकालते होंगे।”
2017 में सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले कुछ दशकों में, बोरवेल की गहराई बढ़ी है, खासकर ग्रामीण और उपनगरीय इलाकों में, जहां बीडब्ल्यूएसएसबी से पानी की आपूर्ति नहीं मिलती है। लेकिन बोरवेल से मिलने वाला पानी या तो वही रहता है या मामूली रूप से ही बढ़ता है। 2000 और 2010 के बीच, बोरवेल खोदने की गहराई सबसे ज्यादा बढ़ी थी, जो 4.8 मीटर/वर्ष से 17.1 मीटर/वर्ष तक थी।
अगले दशक में, उत्तरी जलग्रहण क्षेत्रों, ग्रामीण इलाकों और उपनगरीय क्षेत्रों में बोरवेल खोदने की गहराई कम हो गई। वहीं, वृषभावती और बोम्मसंद्र-अट्टिबेले जलग्रहण क्षेत्रों के दक्षिणी भागों में कोई खास बदलाव नहीं देखा गया। इसकी वजह 2010 के बाद बेंगलुरु में पानी की आपूर्ति पाइपलाइन का असमान वितरण और दक्षिणी जलग्रहण क्षेत्रों में कुछ रिचार्ज हो सकता है।
यह अध्ययन शहरीकरण के साथ बोरवेल लगाने में वृद्धि को जोड़ने का प्रयास करता है। यह रिपोर्ट बताती है कि शहर के उत्तर-पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी हिस्सों में शहरीकरण तेजी से बढ़ा है, जो पश्चिमी होसकोटे जलग्रहण क्षेत्र और कोरमंगला-चल्लाघट्टा जलग्रहण क्षेत्र में आते हैं। इन दोनों ही जलग्रहण क्षेत्रों में 1973 और 2016 के बीच बने हुए इलाकों का क्षेत्रफल 20 गुना से भी ज्यादा बढ़ गया है। यही वो इलाके हैं जहां शहर में कई बहुमंजिला इमारतें और व्यावसायिक परिसर बनाए जाने की योजना है।
बेंगलुरु की एक कंपनी सत्युक्त एनालिटिक्स के सह-संस्थापक सत्य कुमार तोमर बताते हैं कि शहर के मध्य भाग में, जहां पाइप से पानी की आपूर्ति होती है, वहां भूजल पर निर्भरता कम है। इन इलाकों में पानी के वितरण नेटवर्क से होने वाली रिसाव (लगभग 50 प्रतिशत) से कई जगहों पर भूजल का पुनर्भरण हो जाता है, जो अच्छी बात है।
वहीं, शहर के बाहरी इलाकों में जहां विकास कार्य तेजी से हो रहा है और भूजल पर बहुत अधिक निर्भरता है, वहां भूजल संकट गंभीर है। सत्य कुमार तोमर कहते हैं कि वहां भूजल का पुनर्भरण बहुत कम होता है, बल्कि भारी बारिश होने पर भी कुछ वर्षों में एक बार प्राकृतिक रूप से रिचार्ज होता है।
कर्नाटक भूजल निदेशालय के ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि बेंगलुरु जिले में 2014 और 2020 के बीच भूजल स्तर में 5 मीटर की गिरावट आई है। 2021 और 2022 में अच्छी बारिश के कारण इसमें थोड़ी बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन 2023 और 2024 के बीच भूजल स्तर में 10 मीटर की भारी गिरावट आई है।
कोच्चि स्थित सेंटर फॉर अर्थ रिसर्च एंड एनवायरनमेंट मैनेजमेंट की वरिष्ठ वैज्ञानिक जयश्री वैद्यनाथन भूजल स्तर में हो रही खतरनाक गिरावट के लिए जिम्मेदार हो सकने वाले दो अन्य क्षेत्रों की गतिविधियों की निगरानी की मांग करती हैं।
बेंगलुरु मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीएमआरसीएल) की परियोजनाओं और फ्लाईओवर निर्माण कार्यों में बहुत अधिक पानी खर्च होता है। अनुमानों के मुताबिक बेंगलुरु में 20,000 से अधिक छोटे, मध्यम और बड़े उद्योग हैं। ये उद्योग नगरपालिका के स्रोतों से थोक पानी की सीमित उपलब्धता और उसकी ऊंची कीमत के कारण भूजल पर अधिक निर्भर करते हैं। जयश्री वैद्यनाथन बताती हैं कि कपड़ा, कागज और रसायन बनाने जैसे जल-प्रधान उद्योग विशेष रूप से भूजल पर निर्भर रहते हैं।
कर्नाटक सरकार ने 2016 में एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत बेंगलुरु में पीने के अलावा अन्य कार्यों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को अनिवार्य कर दिया गया था। हालांकि, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर डीटीई को बताया कि शहर केवल 40 प्रतिशत उपचारित अपशिष्ट जल का ही उपयोग कर रहा है।
गंदे पानी से उम्मीद
तेजी से घटते भूजल और पानी की कमी की समस्या को देखते हुए, सीवेज और गंदे पानी का खराब प्रबंधन और भी बड़ा खतरा बनकर उभर रहा है। 2018 में एप्लाइड वॉटर साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में बेंगलुरु के शहरी इलाकों के भूजल के नमूनों में नाइट्रेट की उच्च सांद्रता दर्ज की गई।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अध्ययन क्षेत्र में मानसून से पहले के मौसम में नाइट्रेट की मात्रा 2 से 252 मिलीग्राम प्रति लीटर और मानसून के बाद के मौसम में 2 से 262 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच पाई गई। अध्ययन के अनुसार, मानसून से पहले के अधिकांश नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर की स्वीकार्य सीमा से अधिक थी।
शहरी क्षेत्रों में न तो कृषि गतिविधियां होती हैं और न ही नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, इसलिए यह दूषित शौचालय टैंकों और सीवेज के निकास से होने वाले प्रदूषण के कारण हो सकता है।
2017 में करंट साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में भी बेंगलुरु के उपनगरीय इलाकों में भूजल पर निर्भर रहने वाले क्षेत्रों में उच्च नाइट्रेट और ई कोली की मौजूदगी की ओर इशारा किया गया है। अध्ययन में शामिल बेंगलुरु के 29 उपनगरीय गांवों में से 80 प्रतिशत और पानी के नमूनों में से 93 प्रतिशत विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार मानव उपभोग के लिए अयोग्य पाए गए। वैज्ञानिकों ने इन क्षेत्रों की आबादी के लिए मध्यम से उच्च जोखिम वाले डायरिया का संकेत दिया।
इसी तरह का दूषित पानी 2000 के दशक की शुरुआत में भी पाया गया था, जब खान और भूविज्ञान विभाग ने अध्ययन किए गए 35 प्रतिशत से अधिक बोरवेल के नमूनों में नाइट्रेट की उच्च सांद्रता (50 मिलीग्राम प्रति लीटर से 747 मिलीग्राम प्रति लीटर तक) पाई थी। शोधकर्ताओं ने नाइट्रेट प्रदूषण के स्रोत के रूप में सीवेज नालों, शौचालय टैंकों, कृषि अपवाह और औद्योगिक अपशिष्ट को बताया था। जिन इलाकों में सीवेज सिस्टम नहीं है, वहां कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का दूषित होना विशेष रूप से ज्यादा पाया गया।
घरों से निकलने वाला अनुपचारित सीवेज खुले नालों में बहकर झीलों और जल निकायों तक पहुंच जाता है और जमीन के नीचे बहने वाले पानी में मिल जाता है।
फिलहाल, शहर 1,480 मिलियन लीटर प्रतिदिन गंदा पानी उत्पन्न करता है और 33 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) लगाए गए हैं जो 1,381.5 मिलियन लीटर प्रतिदिन गंदे पानी का उपचार करते हैं। 2025 तक शहर में 14 और एसटीपी जोड़ने की योजना है, जिनकी क्षमता 398 मिलियन लीटर प्रतिदिन गंदे पानी के ट्रीटमेंट की होगी। लेकिन बीवीएसएसबी के अनुमान के मुताबिक, शहर में 2008 मिलियन लीटर प्रतिदिन गंदे पानी का उत्पादन होने का अनुमान है, जिसे उपचारित करने के लिए इतने एसटीपी भी पर्याप्त नहीं होंगे।
बेंगलुरु के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की असलियत कुछ और है। परेशानी की बात ये है कि उपचारित गंदे पानी को लेक बीवीएसएसबी जो दावा कर रहा है, वह असल आंकड़े से कहीं ज्यादा बढ़ाचढ़ाकर बताया गया लगता है।
उदाहरण के लिए, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 2021 की एक रिपोर्ट बताती है कि बेंगलुरु में लगे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता के केवल 75 प्रतिशत पर ही काम कर रहे हैं।
इसके अलावा, बीवीएसएसबी द्वारा गंदे पानी की मात्रा की गणना कावेरी नदी से होने वाली पानी की आपूर्ति और बीवीएसएसबी द्वारा निगरानी किए गए बोरवेल से निकाले जाने वाले पानी के हिसाब से की जाती है। अगर लाखों निजी बोरवेल से निकाले जाने वाले भूजल को भी गिन लिया जाए, तो शहर में पैदा होने वाले गंदे पानी की मात्रा कई गुना बढ़ जाएगी।
विभिन्न आंकड़ों के अनुसार बेंगलुरु में निजी बोरवेलों की संख्या 4 लाख के आसपास है। इन बोरवेलों से निकाले गए करीब 80 प्रतिशत पानी गंदे पानी में बदल जाते हैं। ऐसा लगता है कि बीवीएसएसबी के पास इस गंदे पानी के उपचार की कोई योजना नहीं है। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक वैज्ञानिक अपना नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताते हैं, “इलाके की बनावट के कारण पूरे गंदे पानी को इकट्ठा करना मुश्किल है। हम औद्योगिक कचरे के आने को भी नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं।”
2023 में जारी बीवीएसएसबी की 2030 की कार्य योजना में बताया गया है कि बाहरी इलाकों के 110 गांवों के लिए 148 मिलियन लीटर प्रतिदिन क्षमता वाले अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र और नालियों के जाल की जरूरत है। ऐसा ना करने पर इन इलाकों की झीलें गंदे पानी से भर जाएंगी और इससे स्वास्थ्य संबंधी खतरे पैदा हो सकते हैं। रिपोर्ट में फंड की कमी की बात कही गई है और बताया गया है कि राज्य सरकार ने विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से धन प्राप्त करने के लिए संपर्क किया है।
बेंगलुरु में स्थित सीपीसीबी के वैज्ञानिक जे सी बाबू पानी की कमी वाले इलाके के लिए उपचारित अपशिष्ट जल के महत्व को रेखांकित करते हैं। उनका कहना है कि सीवेज का उपचार मानकों के अनुसार किया जाना चाहिए और बीवीएसएसबी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उपचारित अपशिष्ट जल का सिंचाई और अन्य कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जा सके। हालांकि, कुछ एसटीपी मानकों का पालन नहीं करते हैं और कई बार वे बिना उपचारित किए हुए गंदे पानी को सीधे छोड़ देते हैं।
अन्य एसटीपी में औद्योगिक अपशिष्ट जल सीधे सीवेज के पानी या उपचारित पानी में मिल जाता है। जे सी बाबू कहते हैं, “हालांकि, हमारे पास इसकी पुष्टि करने के लिए आंकड़े मौजूद नहीं हैं।” नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद, 2020 में बेंगलुरु की सब्जियों में भारी धातुओं पर एक अध्ययन किया गया था। अध्ययन में भारी धातुओं की उच्च सांद्रता तो पाई गई, लेकिन यह पता नहीं चल सका कि खेती के लिए किस स्रोत के पानी का उपयोग किया गया था और मिश्रण कहां हो रहा था। बाबू कहते हैं, “औद्योगिक इकाइयां अपना कचरा चतुराई से छोड़ती हैं, जिसको ट्रैक करना बहुत मुश्किल है।”
जलवायु परिवर्तन के खतरे वाले इस दौर में, जब बारिश का पैटर्न बहुत अनिश्चित हो रहा है, तो अपशिष्ट जल को दोबारा उपयोग में लाना और झीलों को फिर से भरने के लिए उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करना भूजल संचय के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन इन्हें लागू करने के लिए शहर के अधिकारियों को फिर से योजना बनाने और कुछ संशोधन करने की आवश्यकता होगी।
रिसाव रोकथाम:
शहर अपनी वितरण प्रणाली में होने वाले पानी के नुकसान को कम करने के लिए गंभीर है। 2008 में, बीडब्ल्यूएसएसबी ने मल्लेश्वरम में अपनी मीटर जांच और परीक्षण प्रयोगशाला को फिर से खोला, जिसे 2000 के दशक की शुरुआत में बंद कर दिया गया था। इसका उद्देश्य नए वॉटर मीटरों को कैलिब्रेट करना और रीडिंग की सटीकता को जांचना है। विभाग बेंगलुरु में मल्टी-जेट वॉटर मीटर लगाने पर भी काम कर रहा है। ये सिंगल-जेट मीटरों की तुलना में कहीं ज्यादा सटीक होते हैं।
पानी की कमी को देखते हुए, बीडबल्यूएसएसबी ने एक सलाह जारी की है, जिसमें लोगों से खराब मीटर और पानी के रिसाव की सूचना देने के लिए कहा गया है। यह सराहनीय कदम है, लेकिन अधिकारियों को यह ध्यान रखने की जरूरत है कि लंबी दूरी तक पानी पहुंचाने के कारण पानी का नुकसान ज्यादा होता है। इसलिए भूजल संचय और उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करके जितना हो सके स्थानीय जल संसाधनों पर निर्भर रहने के लिए भी कदम उठाए जाने चाहिए।
बारिश के पानी का संचय:
2009 में, बेंगलुरु ने बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवेज अधिनियम में संशोधन किया और बेंगलुरु वर्षा जल संचयन विनियमों को अधिसूचित किया। इसके तहत, 2,400 वर्ग फुट से अधिक क्षेत्रफल वाले मौजूदा भवनों और 1,200 वर्ग फुट क्षेत्रफल वाले नए भवनों के लिए गृहस्वामियों के लिए रेनवॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर बनाना अनिवार्य कर दिया गया। यदि ऐसा नहीं किया जाता है, तो बीवीएसएसबी “ऐसे रेनवॉटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर का निर्माण करवा सकता है और उसका खर्च मकान मालिक या रहने वाले से जमीन राजस्व के बकाए के रूप में वसूल सकता है।” कावेरी नदी के पानी को बचाने के लिए, 2021 में विधानसभा ने एक विधेयक पारित किया, जो बेंगलुरु में बड़ी संपत्तियों के लिए वर्षा जल संचयन संरचनाएं स्थापित करना अनिवार्य बनाता है। अब मुख्य चुनौती है इस विधेयक के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना।
भूजल पुनर्भरण परियोजनाओं (ग्राउंडवॉटर रिचार्ज प्रोजेक्ट) के प्रभाव की निगरानी करना महत्वपूर्ण है, जिसमें मात्रा और गुणवत्ता दोनों शामिल हैं। इन परियोजनाओं का डेटाबेस बनाना और उसे सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। शहर को विशेष रूप से बाहरी क्षेत्रों के लिए एक जलभृत प्रबंधन योजना विकसित करने की आवश्यकता है, जहां भूजल पर निर्भरता अधिक है। जलभृत का मतलब जमीन के नीचे पानीयुक्त पदार्थों के उस परत से है जहां से कुओं आदि को पानी मिलता है। ऐसी योजना पुनर्भरण और दोहन की मात्रा का आकलन करने में मदद करेगी और इस प्रकार यह सुनिश्चित करेगी कि भूजल का अत्यधिक दोहन न हो।
झीलों का संरक्षण:
नागरिक समाज द्वारा संचालित और न्यायपालिका द्वारा अनिवार्य कराए जाने के कारण, शहर को अपने जल निकायों के संरक्षण पर ध्यान देना पड़ रहा है। अब चुनौती यह है कि न केवल जल संरचनाओं को, बल्कि उनसे जुड़ी नहरों को भी संरक्षित किया जाए। सीवेज का उपचार किया जाना चाहिए ताकि शहर के ये स्पंज - जो भूजल को फिर से भरते हैं- इसके कचरे के संग्रह स्थल न बन जाएं।
अपशिष्ट जल की रिसाइकलिंग:
बीडब्ल्यूएसएसबी ने 2019 से अपने निर्माण कार्यों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है। इस सर्कुलर के अनुसार, अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने से पहले, आवेदक या बिल्डर को निर्माण कार्यों के लिए उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग करने का लिखित वादा करना होगा। हाल ही में बीवीएसबी ने गैर-पीने के उद्देश्यों के लिए टैंकरों के माध्यम से उपचारित जल की आपूर्ति शुरू कर दी है। अब गुणवत्ता की जांच की जानी चाहिए क्योंकि शहर अपने जल निकायों को अनुपचारित सीवेज से भरने का जोखिम नहीं उठा सकता।
शहर को पानी के पुनः उपयोग और रिसाइकलिंग को सीखने की जरूरत है, ताकि वह अपशिष्ट जल से पानी बना सके। इससे उसका जल भविष्य सुरक्षित हो जाएगा। इसका मतलब है कि शहर के प्लानर को उपचारित पानी की गुणवत्ता सुनिश्चित करनी होगी। बेंगलुरु में पहले से ही जल पुनर्भरण, पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण के लिए नियम और दिशानिर्देश मौजूद हैं। अब समय आ गया है कि न सिर्फ भारत की सिलिकॉन वैली उन्हें लागू करना शुरू करे बल्कि देश के वह सारे शहरी क्षेत्र यह सबक लेकर जलसंचयन के काम शुरू कर सकते हैं, जहां या तो जलसंकट है या फिर देर-सबेर दस्तक देने वाला है।