बंगाल चुनाव: क्यों हो रही है नदियों-जलाशयों के संरक्षण को घोषणापत्र में शामिल करने की मांग

एक सर्वे में कहा गया कि साल 2006 से लेकर 2016 तक कोलकाता के 46 प्रतिशत तालाब, झील व कनाल खत्म हो गए
पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में एक रैली निकाली गई, जिसमें राजनीतिक दलों से मांग की गई कि वे अपने घोषणापत्र में नदियों जलाशयों के संरक्षण के मुद्दे को शामिल करें। फोटो: उमेश कुमार राय
पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में एक रैली निकाली गई, जिसमें राजनीतिक दलों से मांग की गई कि वे अपने घोषणापत्र में नदियों जलाशयों के संरक्षण के मुद्दे को शामिल करें। फोटो: उमेश कुमार राय
Published on

सियासी नारों बैनरों-पोस्टरों से पटे पश्चिम बंगाल में बुधवार को आम लोगों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने रैली निकाल कर नदी-तालाबों वेटलैंड्स संरक्षण को चुनावी मुद्दों में शामिल करने की मांग की।

कोलकाता शहर के बीचोंबीच निकली इस रैली में किसी राजनीतिक पार्टी का झंडा नहीं था, सिर्फ पोस्टर थे, जिनमें नदियों, जलाशयों को बचाने की अपील की गई थी। रैली में नदियों, जलाशयों पर निर्भर मछुआरों ने भी हिस्सा लिया और सड़कों पर जाल फेंककर अपना दर्द जाहिर किया।

रैली का नेतृत्व करने वाले संगठन सबुज मंच नदी बचाओ कमेटी से जुड़े नव दत्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया, “भारत के अन्य राज्यों की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी क्षणिक फायदे के लिए नदियों जलाशयों की बलि ली जा रही है। यहां की नदियों पर बांध बनाये जा रहे हैं। तालाबों का अतिक्रमण कर कुकुरमुत्ते की तरह बहुमंजिला इमारत, बाजार और शॉपिंग मॉल पनप रहे हैं। इतना ही नहीं, नदियों जलाशयों में ही शहरी औद्योगिक कचरा फेंका जा रहा है, जिससे उसका पानी प्रदूषित हो रहा है। इससे नदियों जलाशयों का अस्तित्व खतरे में गया है।

“हमारा उद्देश्य आम लोगों तक नदियों जलाशयों को लेकर व्यापक समझ विकसित करना और राजनीतिक पार्टियों का ध्यान इस गंभीर समस्या की तरफ आकर्षित करना था, ताकि वे चुनावी मुद्दों में इन समस्याओं को प्राथमिकता दें,” नव दत्ता ने कहा।

इच्छामती नदी बचाओ मूवमेंट का नेतृत्व कर रहे पर्यावरणविद ज्योतिर्मय सरस्वती ने डाउन टू अर्थ को बताया, “नदियों जलाशयों के खत्म होने से केवल पर्यावरण और जैवविविधता को नुकसान हो रहा है बल्कि इन पर निर्भर लाखों मछुआरों की आजीविका पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।”

रैली में शामिल दक्षिणबंग मत्स्यजीवी फोरम के प्रतिनिधियों ने कहा कि हाल के वर्षों में नदियों जलाशयों के प्रदूषित होने से मछलियों का उत्पादन काफी घट गया है, जिससे मछुआरे संकट में हैं। 

रैली में शामिल लोगों ने पश्चिम बंगाल की तिस्ता, तोर्षा, इच्छामती, बूढ़ीगंगा, मातला आदि नदियों के साथ साथ ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स, सांतगाछी झील आदि को संरक्षित करने की मांग की।

बंगाल में नदियों जलाशयों की स्थिति

पश्चिम बंगाल में नदियां जलाशय बुरी हालत में है। शिफ्टिंग प्रायरिटी इन लैंड यूज विदिन प्रोटेक्टेड वेटैंड्स ऑफ ईस्ट कोलकातानाम के शोधपत्र के मुताबिक, इस वेटलैंड्स में पड़ने वाले भगवानपुर मौजा के 88 प्रतिशत हिस्से में आर्द्रभूमि थी, जो साल 2016 में घटकर 19.39 प्रतिशत रह गई।

इसी तरह साउथ एशियन फोरम ऑफ एनवायरमेंट ने अपने सर्वे में पाया कि साल 2006 से लेकर 2016 तक कोलकाता के 46 प्रतिशत तालाब, झील कनाल खत्म हो गये। सर्वे के मुताबिक, कोलकाता में 3874 तालाब, झील कनाल थे, जो साल 2016 तक घटकर 1670 पर गये। कोलकाता के बीच से होकर गुजरने वाली आदिगंगा लगभग नाले में तब्दील हो चुकी है। 

नदियों की स्थिति भी काफी दयनीय है। नदियों पर शोध करने वाले अनूप हालदार के मुताबिक, पिछले 100 सालों में गंगा डेल्टा (पश्चिम बंगाल), पद्मा और मेघना (बांग्लादेश) डेल्टा की 700 से ज्यादा नदियां खत्म हो चुकी हैं। नदियों जलाशयों के खत्म होने से बंगाल में भूगर्भ जलस्तर में भी गिरावट आई है। पिछले साल 19 मार्च को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जलशक्ति मंत्रालय ने बताया कि बंगाल के 268 जलस्रोतों की जांच की गई, जिनमें से 76 जलस्रोत खराब हालत में मिले।

पहले से ही अतिक्रमण की मार झेल रहे नदियों जलाशयों के लिए औद्योगिक शहरी कचरा एक अलग समस्या है। बंगाल के शहरी इलाकों औद्योगिक इकाइयों से रोजाना 4667 एमएलडी कचरा निकलता है, लेकिन बंगाल में 416.9 एमएलडी कचरे के ट्रीटमेंट की ही व्यवस्था है। यानी, बाकी कचरा बिना ट्रीटमेंट के ही नदियों जलाशयों में डाला जा रहा है। 

पश्चिम बंगाल के शहरी विकास म्युनिसिपल मामलों के विभाग की तरफ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पिछले साल सौंपी गईएक्शन प्लान फॉर रेजुविनेशन ऑफ रिवर कालजनी अलीपुरदुआर’ नाम की रिपोर्ट के मुताबिक, विद्याधरी, महानंदा, चुर्नी, द्वारका, गंगा, दामोदर, जालंगी, बराकर, माथाभांगा, मयुराक्षी, रूपनारायण समेत 17 नदियां अलग-अलग जगहों पर प्रदूषित हैं। 

पर्यावरणविदों की मांगें

रैली में शामिल पर्यावरणविदों ने एक मांगपत्र तैयार किया है, जिसे वे बंगाल विधानसभा चुनाव में हिस्सा ले रहे राजनीतिक दलों को सौप रहे हैं। उनकी मांग है कि राजनीतिक पार्टियां इन मांगों को अपने मेनिफेस्टो में शामिल करे।

इस मांग पत्र में नदी पर्यावरण विशेषज्ञ, मछुआरों के प्रतिनिधियों अन्य साझेदारों को लेकर एक आयोग के गठन, नदियों पर बांध निर्माण रोकने उनके प्राकृतिक मार्ग को साफ करने, नदियों जलाशयों को अतिक्रमण मुक्त करने आसपास के इलाकों में निर्माण रोकने खत्म हो चुकी नदियों जलाशयों के पुनरोद्धार की मांग की गई है।

इसके अलावा पर्यावरणविदों ने मछुआरों को नदियों जलाशयों में मछली पकड़ने का अधिकार देने, नदियों के कटाव से प्रभावित परिवारों को पुनर्वासित करने नदियों पर शोध के लिए पृथक संस्थान तथा नदियों-जलाशयों के लिए एक अलग विभाग स्थापित करने का सुझाव दिया है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in