बस्तर ज्यादातर नक्सली गतिविधि के चलते चर्चा में रहता है पर इन दिनों बस्तर एक यात्रा की वजह से चर्चा में है। यह यात्रा है, नदी बचाओ यात्रा। ऐसी नदी, जो यात्रा में शामिल लोगों के देखते ही देखते सूखने के कगार पर पहुंच गई है। इसे इंद्रावती नदी के नाम से जाना जाता है। यह यात्रा ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा पर स्थित भेजापदर गांव से शुरू हुई और इन्द्रावती नदी के किनारे-किनारे चल रही है। यह यात्रा चित्रकूट जलप्रपात पर खत्म होगी।
आखिर इस नदी यात्रा की शुरुआत क्यों करनी पड़ी ? इसके जवाब में नदी यात्रा के एक प्रमुख कार्यकर्ता और बस्तर चैम्बर ऑफ कॉमर्स और इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष किशोर पारेख विस्तार ने बताया कि दरअसल करीब 20-25 दिन पहले मिनी नाएग्रा के नाम से मशहूर चित्रकूट जलप्रपात एक तरह से सूख गया था, जिसके चलते इस प्रपात से एक नल के बराबर पानी गिरने लगा था, जिसे देखकर न केवल स्थानीय लोग, बल्कि यहाँ आने वाले पर्यटक भी स्तब्ध हो गए थे।
इस से चिंतित नागरिक, जिसमें हर वर्ग के लोग, गांव से लेकर शहर तक, आदिवासी और गैरआदिवासी सभी मिलकर लोगों में इस मुद्दे को लेकर जनजागरण लाने के लिए इस नदी पदयात्रा के बारे में निर्णय लिया गया। इन्द्रावती बचाव अभियान का मकसद केवल सूखे इन्द्रावती नदी में पानी लाने तक सीमित नहीं है, बल्कि हम पर्यावरण से लेकर नदी रिचार्ज और पौधारोपण से लेकर प्रदूषण मुक्त नदी और बस्तर के बारे में सोच रहे हैं और यह सन्देश इस यात्रा के माध्यम से जन जन तक पहुंचा रहे हैं.”
पारेख ने कहा कि – इस यात्रा को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। यह गर्मी का महीना है, इसके बावजूद हर दिन करीब सौ लोग इसमें शामिल हो रहे हैं। हम गर्मी के चलते रोज सुबह 6 बजे से दिन के 9-10 बजे तक यात्रा जरी रखते हैं। हर दिन हम 5 से 8 किमी की यात्रा कर रहे हैं, क्योंकि हम यह यात्रा नदी के किनारे किनारे करने की योजना बनाई है। इसलिए हम हर संभव ऐसा प्रयास करते है कि जहाँ संभव है, वहां नदी के अंदर चलें तो कहीं सड़क पर भी आना होता है।
इस यात्रा में जगदलपुर शहर के अलावा आसपास गाँव के लोग और खासकर के जहाँ जहाँ से यह यात्रा गुजर रही है वहां के लोग भी शामिल हो रहे हैं. इस यात्रा में छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्ग और महिलायें भी सामान रूप से शामिल हैं।ऐसे तो इस यात्रा में कोई नेता नहीं है लेकिन इस यात्रा के प्रमुख लोगों में एक हैं गांधीवादी और पद्मश्री से सम्मानित 90 साल के धरमपाल सैनी, धरमपाल सैनी बस्तर में रुकमणी कन्याश्रम के संस्थापक हैं।
गौरतलब है कि 1975 में ओडिशा और तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच हुए समझौते के मुताबक ओडिशा और छत्तीसगढ़ ( तत्कालीन मध्यप्रदेश ) को बराबर रूप से पानी को बांटना था. और समझौते के मुताबक दोनों राज्य अपने अपने क्षेत्र में एक एक बड़ा बांध जिससे बिजली उत्पादन कर सकें और 2/2 छोटे बाँध बनाने के लिए सहमत हुए थे।
पारख का कहना है कि ओडिशा सरकार ने तो अपने सीमा में बड़ा बांध और छोटा बांध भी बना डाला, लेकिन मध्यप्रदेश सरकार ने कुछ नहीं किया। अभी जो कुछ थोडा बहुत पानी कहीं कहीं दिखाई दे रहा है, वह सब स्टॉप डेम के कारण। समझौते के मुताबक ओडिशा-छत्तीसगढ़ सीमा में स्थित जोरानाला डेम से 85 टीएमसी पानी छोड़ने की बात हुई थी, जो चित्रकूट पहुंचने तक 87.5 टीएमसी होना चाहिए। इसमें बीच में कुछ नाले और जुडते हैं।
पर इन सब चीजों पर विभाग ध्यान नहीं दे रहा है। ऐसा आरोप अभियान के सदस्यों ने लगाया है। इन्द्रावती नदी बचाओ अभियान के तहत जलसंसाधन विभाग को पत्र लिखा गया है लेकिन अभी तक किसी से कोई जवाब नहीं आया है। लेकिन हम अपना प्रयास जारी रखेंगे, हम जंगल विभाग के साथ भी मिलकर काम करना चाहते हैं, ताकि पौधे लगाने में और उसे देखभाल करने में हम सहयोग कर सकें। कभी बस्तर घना जंगल था इसलिए यहाँ पौधे लगाने की बात ही कभी नहीं हुई लेकिन अब लगता है पौधा लगाने की भी जरूरत महसूस हो रही है।