पश्चिम बंगाल में जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक डॉक्टर तारित रॉयचौधरी ने चेताया है कि अगर प्रभावी रणनीति न अपनाई गई तो आर्सेनिक और फ्लोराइड प्रदूषण देश में गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। डॉक्टर तारित रॉयचौधरी का कहना है कि आर्सेनिक प्रदूषण के मामले में पश्चिम बंगाल की स्थिति सबसे ज्यादा खराब है।
रॉयचौधरी ने बताया कि पहले आर्सेनिक और फ्लोराइड केवल पीने के पानी के रूप में भूजल के उपयोग से इंसानों में पहुंच रहा था। लेकिन अब ये दोनों दूषित पदार्थ पीने के पानी के साथ-साथ, खाद्य श्रृंखला के जरिए, विशेष तौर पर गर्मी के मौसम में इंसानों के शरीर में पहुंच रहे हैं। उनके अनुसार इसके लिए कृषि और मवेशियों के लिए इस दूषित भूजल का किया जा रहा उपयोग जिम्मेवार है।
उनके अनुसार चिंता की बात धान में आर्सेनिक का पाया जाना है, जोकि भारत की मुख्य खाद्यान्न फसल है। उनके मुताबिक आज हम जो कुछ खाते हैं चाहे वो चावल, दालें या सब्जियां हो वो आर्सेनिक और फ्लोराइड से दूषित हो चुकी हैं। आर्सेनिक और फ्लोराइड दोनों हमारे शरीर की आंतरिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं।
गौरतलब है कि डॉक्टर रॉयचौधरी पिछले 25 वर्षों से पश्चिम बंगाल और भारत के अन्य हिस्सों में आर्सेनिक को लेकर किये जा रहे अध्ययनों में शामिल रहे हैं। उनके अनुसार 1989 में पहली बार इस समस्या की पहचान की गई थी, जिसके बाद से इसके प्रदूषण में वृद्धि हुई है।
डॉक्टर तारित रॉयचौधरी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि भागीरथी नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर स्थित पश्चिम बंगाल के नौ जिले आर्सेनिक से अत्यधिक प्रभावित हैं, जबकि उत्तरी बंगाल के पांच जिले आर्सेनिक से मामूली रूप से दूषित हैं।
आर्सेनिक प्रदूषित हैं देश के कई जिले
देखा जाए तो आर्सेनिक न केवल जहरीला है, इससे कैंसर होने का खतरा भी बना रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित मानकों से ज्यादा फ्लोराइड विषाक्त होता है। हालांकि आर्सेनिक की तरह फ्लोराइड कैंसर का कारण नहीं बनता, लेकिन यह स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। गौरतलब है कि फ्लोराइड शरीर में कैल्शियम जैसे दांत और हड्डी को नुकसान पहुंचा सकता है।
रॉयचौधरी ने दूषित भूजल के निरंतर उपयोग के पीछे घनी आबादी, अज्ञानता और गरीबी को कारण माना है। ऐसे में इससे बचने के स्थाई समाधान के रूप में उन्होंने वर्षा जल संचयन और सतह के जल के उपचार जैसे वैकल्पिक तरीकों का सुझाव दिया है।
उन्होंने आगे जानकारी दी कि देश के इस हिस्से में आर्सेनिक प्रदूषण विशुद्ध रूप से भूगर्भीय है। उनके अनुसार आर्सेनिक का खतरा केवल पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह समस्या उत्तर प्रदेश में कानपुर-इलाहाबाद, वहीं उत्तराखंड, बिहार और झारखंड सहित कई राज्यों में है।
रिसर्च से पता चला है कि गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों वाले छह भारतीय राज्यों में करीब 7.04 करोड़ लोगों पर आर्सेनिक का खतरा मंडरा रहा है, जहां भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 10 माइक्रोग्राम प्रति लीटर से भी ज्यादा है। पता चला है कि भारत-गंगा के बाढ़ के मैदानों के निचले हिस्सों मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, भारत और बांग्लादेश को आर्सेनिक-प्रदूषण के हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया गया है।
उनके अनुसार केवल भारत ही नहीं बांग्लादेश में भी गंगा जहां इसे पद्मा के नाम से भी जाना जाता है, का मैदानी क्षेत्र भी इससे प्रभावित है। इतना ही नहीं मेघना नदी बेल्ट और उत्तर पूर्वी पहाड़ी राज्यों में ब्रह्मपुत्र का क्षेत्र भी इसकी चपेट में है। ऐसे में गंगा-मेघना-ब्रह्मपुत्र का पूरा मैदान क्षेत्र ही आर्सेनिक प्रभावित है।
वैज्ञानिक के मुताबिक केवल पीने के पानी से आर्सेनिक को हटाना सबसे अच्छा विकल्प नहीं है। सर्वोत्तम वैकल्पिक प्रणाली सतह के जल के उपचार, जल पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन से जुड़ी है। हालांकि वैज्ञानिकों के मुताबिक तुलनात्मक रूप से देखें तो 700 से 1,000 फीट की गहराई पर भूजल कहीं ज्यादा सुरक्षित है। हालांकि, कई भौगोलिक क्षेत्रों में आर्सेनिक गहरे क्षेत्रों में भी पाया गया है।
बच्चों के लिए भी गंभीर खतरा है आर्सेनिक प्रदूषित आहार
वहीं जर्नल ग्राउंडवाटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में डॉक्टर रॉयचौधरी और उनकी टीम ने पाया कि रोजाना आर्सेनिक दूषित आहार का सेवन बच्चों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरे पैदा कर सकता है। इस अध्ययन के मुताबिक आर्सेनिक विषाक्तता भविष्य में कैंसर का कारण बन सकती है। इतना ही नहीं मवेशियों और फिर उनके माध्यम से इंसानों और पर्यावरण को प्रभावित कर सकती है।
रॉयचौधरी और उनके सहयोगियों द्वारा किए एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि पश्चिम बंगाल में एक आर्सेनिक प्रभावित गाय या बैल के दैनिक आहार में आर्सेनिक की मात्रा सामान्य की तुलना में 4.56 गुणा ज्यादा थी। इसी तरह आर्सेनिक प्रदूषण की चपेट में आने वाली बकरियों के दैनिक आहार में सामान्य की तुलना में 3.65 गुणा अधिक आर्सेनिक था।
शोध में गाय के दूध, उबले अंडों की जर्दी और सफेदी, जिगर और मांस जैसे पशु प्रोटीन में काफी मात्रा में आर्सेनिक पाया गया है। पता चला है कि फास्फोरसरीन यूनिट्स की उपस्थिति के कारण गाय के दूध में ज्यादातर आर्सेनिक, कैसिइन (83 फीसदी) में जमा होता है।
रिसर्च के मुताबिक जहां इस क्षेत्र में नियमित रूप से उपभोग किए जाने वाले खाद्य पदार्थों के हिसाब से देखें तो जहां पीने के पानी से स्वास्थ्य के लिए आर्सेनिक का जोखिम सबसे ज्यादा था। वहीं इसके बाद चावल, गाय का दूध, चिकन, अंडा और फिर मांस का नंबर आता है। वहीं शोध के मुताबिक इस क्षेत्र में बच्चों की तुलना में वयस्कों में कहीं ज्यादा जोखिम दर्ज किया गया है।
पता चला है कि खाद्य पदार्थों से गंभीर कैंसर का खतरा उतना नहीं है लेकिन इसके बावजूद पशुओं से मिलने वाले प्रोटीन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं का सुझाव है कि मवेशियों के लिए तत्काल सतही जल की व्यवस्था की जानी चाहिए।
वहीं आर्सेनिक के गंभीर खतरे से उबरने के लिए प्रभावित इंसानी आबादी के लिए आर्सेनिक मुक्त पेयजल और पोषक तत्वों की उचित खुराक का अनिवार्य रूप से प्रबंध किया जाना चाहिए।