नई सरकार, नई उम्मीदें: पानी और स्वच्छता के लिए और तेज करने होंगे प्रयास

जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए भारत के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना बहुत जरूरी है। इसके लिए मौजूदा महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर तो निरंतर जोर देना ही होगा
फाइल फोटो सीएसई
फाइल फोटो सीएसई
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अब केंद्र की नई गठबंधन सरकार की नीतियां और उनका तय किया गया रास्ता हमारा भविष्य तय करेगा। इस नई सरकार से देश को आखिर किन वास्तविक मुद्दों पर ठोस काम की उम्मीद करनी चाहिए ? नई सरकार, नई उम्मीदें नाम के इस सीरीज में हम आपको ऐसे ही जरूरी लेखों को सिलसिलेवार पेश किया जा रहा है। 

पिछले दशक में भारत ने पानी आपूर्ति और स्वच्छता के लिए बुनियादी ढांचा बनाने में काफी तरक्की की है। अभी देश में पांच महत्वपूर्ण योजनाएं चलाई जा रही हैं। इनका लक्ष्य है: हाल ही में हासिल किया गया खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) का दर्जा बनाए रखना, ठोस और तरल कचरे का प्रबंधन करना, नदियों को साफ रखना, भविष्य के लिए पानी बचाना, हर घर तक पीने का पानी पहुंचाना। इन योजनाओं में स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम), जल जीवन मिशन (जेजेएम), मिशन अमृत सरोवर, अटल मिशन फॉर रिजुवनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत) और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) शामिल हैं। इनका सफल कार्यान्वयन 2030 तक संयुक्त राष्ट्र के स्वच्छ जल और स्वच्छता से जुड़े सतत विकास लक्ष्य को हासिल करने में मदद कर सकता है।

दिल्ली स्थित थिंक टैंक, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के शोधकर्ताओं ने देश भर में यात्रा करके इन योजनाओं के जमीनी स्तर पर प्रदर्शन का आकलन किया। कुछ योजनाओं में अच्छा काम हो रहा है, तो कुछ में चुनौतियां हैं। आइए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) (एसबीएम-जी) से शुरुआत करें, जिसका लक्ष्य गांवों में हर घर तक शौचालय की सुविधा पहुंचाना, उसे बनाए रखना और सफाई का स्तर सुधारना है।

फरवरी 2024 में जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में मिशन शुरू होने के बाद से स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत लगभग 11.45 करोड़ शौचालय बनाए गए हैं। इस मिशन के तहत सरकार ने दो गड्ढों वाले शौचालय बनाने को बढ़ावा दिया है। इन शौचालयों में एक गड्ढा भर जाने पर शौचालय को दूसरे गड्ढे से जोड़ दिया जाता है। जब दूसरा गड्ढा भर जाता है, तो पहले गड्ढे का मल खाद में बदल जाता है, जिसे सीधे खेतों में इस्तेमाल किया जा सकता है।

हालांकि सरकार लोगों को खाद के फायदों के बारे में जागरूक कर रही है, लेकिन अगर लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं तो इसका कोई फायदा नहीं है। नई सरकार को खाद के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके लिए पंचायतों जैसी स्थानीय सरकारों को इनाम देना चाहिए जो दोबारा इस्तेमाल सुनिश्चित करती हैं। सरकार द्वारा बताए गए डिजाइन का पालन नहीं करने वाले शौचालयों में मल का आंशिक रूप से ही मिट्टीकरण होता है। इसलिए शौचालय निर्माण के सर्वोत्तम तरीकों का दस्तावेजीकरण और प्रसार व्यापक रूप से किया जाना चाहिए।

स्‍वच्‍छ भारत मिशन (ग्रामीण) का एक और महत्वपूर्ण पहलू है - धुलाई क्षेत्र, बाथरूम और रसोई से निकलने वाले गंदे पानी का प्रबंधन। नल वाले ग्रामीण घरों को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी मिलता है। जानकारों का अनुमान है कि इसका लगभग 70 फीसदी ग्रे वाटर में बदल जाता है। ग्रे वाटर का मतलब उस अपशिष्ट जल से है जो गैर-शौचालय प्लंबिंग सिस्टम जैसे हैंड बेसिन, वॉशिंग मशीन, शॉवर और बॉथरूम से निकलते हैं। मिशन साधारण तरीकों जैसे सोख गड्ढों और किचन गार्डन का उपयोग करके ग्रे वाटर प्रबंधन को प्राथमिकता देता है। लेकिन, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के शोधकर्ताओं ने पाया कि कई गांवों में ग्रे वाटर नालों में बह जाता है और तालाबों और अन्य जल स्रोतों को प्रदूषित करता है। नई सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ग्रे वाटर का प्रबंधन उसी जगह या उसके स्रोत के पास किया जाए।

स्रोतों को टिकाऊ बनाना
जल जीवन मिशन (जेजेएम) भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य 2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों तक नल से सुरक्षित पेयजल पहुंचाना है। 17 मई 2024 तक जेजेम डैशबोर्ड के अनुसार, 2019 में कार्यक्रम शुरू होने के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों के 19.3 करोड़ घरों में से 76 प्रतिशत घरों तक नल का कनेक्शन पहुंच चुका है। अब जरूरी है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि इस कार्यक्रम का पहले के कार्यक्रमों जैसा हाल ना हो।

आजादी के बाद से शुरू किए गए लगभग छह ग्रामीण पेयजल आपूर्ति कार्यक्रम कुछ ही वर्षों में विफल हो गए थे, क्योंकि उनके जल स्रोत टिकाऊ नहीं थे। इसलिए जेजेएम का लक्ष्य मुख्य रूप से भूजल जैसे जल स्रोतों की सुरक्षा या रिचार्ज करना है। इसके लिए जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन और ग्रे वाटर प्रबंधन के माध्यम से पुनःउपयोग जैसे उपाय किए जाएंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि नल से आपूर्ति किया जाने वाला पानी सुरक्षित और टिकाऊ है, जेजेएम को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

(1) स्थानीय स्तर पर जलीय परतों का मानचित्रण : चूंकि भारत के 89 प्रतिशत जल स्रोत भूजल पर निर्भर हैं, इसलिए जिला और उप-जिला स्तर पर रिचार्ज और डिस्चार्ज क्षेत्रों का मानचित्रण किया जाना चाहिए। भूजल बोर्ड और ग्रामीण विभागों को मिलकर डिस्चार्ज और रिचार्ज जोन विकसित करने चाहिए। मिट्टी की गुणवत्ता और भू-आकृतिगत विशेषताओं के बारे में स्थानीय ज्ञान का उपयोग करने के लिए समुदायों को इस अभ्यास में शामिल किया जाना चाहिए।

(2) जेजेएम डैशबोर्ड में टिकाऊपन के आंकड़े जोड़े जाएं। फिलहाल, जेजेएम डैशबोर्ड में पेयजल आपूर्ति में मौजूद प्रदूषकों पर गांव-स्तरीय आंकड़े उपलब्ध हैं। इसमें भूजल रिचार्ज या वर्षा जल संचयन स्थलों को भी प्रदर्शित करने की आवश्यकता है, खासकर यदि पेयजल स्रोत भूजल पर निर्भर हो। रिचार्ज परियोजना के डिजाइन और लागत का विवरण भी दिखाया जाना चाहिए। रिचार्ज परियोजनाओं के प्रभाव को मापना, भूजल की निगरानी के लिए स्थानीय समुदायों को शामिल करना और उपलब्ध पानी का बजट बनाना टिकाऊपन के लिए महत्वपूर्ण है।

(3) सतही जल स्रोतों का टिकाऊपन सुनिश्चित हो। जहां भूजल दूषित या कम है, वहां जेजेएम सतही जल का उपयोग करने पर ध्यान केंद्रित करता है। ऐसे में जल स्रोतों को साफ रखना जरूरी है। इसके लिए ग्रे वाटर को दोबारा इस्तेमाल के लिए उपचारित करना या खुले जल निकायों में सुरक्षित रूप से निपटाना शामिल है।

             एक्शन प्वॉइंट

  • कृषि में खाद के रूप में उपचारित मल का उपयोग बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन की जरूरत

  • गांवों में खेतों में खाद के रूप में उपचारित शौचालय के गंदे पानी (मलजल) के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए।

  • ग्रेवाटर (सिंक, नहाने और कपड़े धोने से निकलने वाले अपशिष्ट जल) प्रबंधन को सख्ती से लागू किया जाए

  • जिला और उप-जिला स्तर पर जलीय परतों के रिचार्ज और डिस्चार्ज का मानचित्रण किया जाए

जल संकट दूर करने के उपाय
ग्रामीण भारत में पानी की कमी की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने 2022 में मिशन अमृत सरोवर की शुरुआत की थी। इस मिशन का लक्ष्य 15 अगस्त 2023 तक, भारत की आजादी के 75वें वर्ष को चिह्नित करने के लिए, प्रत्येक जिले में 75 तालाबों या जल निकायों का निर्माण या जीर्णोद्धार करना था। यह एक सफल कार्यक्रम साबित हुआ। 17 मई 2024 को मिशन के डैशबोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1,09,000 जगहों की पहचान निर्माण या जीर्णोद्धार के लिए की गई है और 66 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। यह शुरुआती लक्ष्य 50,000 अमृत सरोवरों से कहीं अधिक है।

चिन्हित 34 प्रतिशत स्थानों पर तालाबों के निर्माण या जीर्णोद्धार के काम को पूरा करने के लिए नई सरकार को मिशन को एक साल और बढ़ा देना चाहिए। इस चरण में मिशन को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:

(1) डैशबोर्ड पर मिशन की प्रगति का मानचित्रण। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भले ही पूरे देश ने 500,000 के लक्ष्य को पार कर लिया है, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के शोधकर्ताओं ने पाया है कि कई जिलों में अभी भी न्यूनतम आवश्यक 75 जल निकाय नहीं हैं। डैशबोर्ड में परियोजना के स्थान, उपयोग की गई तकनीक, धन के स्रोत और इसके उपयोग, और भूजल पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित जानकारी भी होनी चाहिए।

(2) परियोजना फंड का एक हिस्सा रखरखाव और निगरानी के लिए अलग रखा जाना चाहिए। ग्राम पंचायतों को जल निकाय से आय अर्जित करने में सक्षम बनाया जाना चाहिए, जिसका उपयोग बाद में इसके रखरखाव के लिए किया जा सकता है।

गर्म होते विश्व के लिए जल और स्वच्छता योजना
मौजूदा योजनाएं और कार्यक्रम शायद गर्म होते विश्व में सभी लोगों को पानी और स्वच्छता की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। संकट पहले से ही स्पष्ट हैं। पिछले कुछ वर्षों से बेंगलुरु में भारी बारिश के बाद नियमित रूप से बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। इसी साल फरवरी-मार्च में वहां पानी का संकट रहा, जिसके बाद अप्रैल में हैजा का प्रकोप फैल गया। महानगर तेजी से बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। घटते भूजल और सूखती नदियों के साथ, हमारे शहरों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी पानी की पहुंच में असमानता बढ़ रही है। ये इस बात के जीते जागते उदाहरण हैं कि भविष्य में क्या होने वाला है।

नई सरकार को सभी के लिए पानी और स्वच्छता तक पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ इसे और बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए। चुनौतियों से पार पाने के कुछ तरीके यहां दिए गए हैं:

शहरी बाढ़ को कम करने के लिए स्थानीय समाधान
वर्षा जल का संरक्षण करें और उसे प्रदूषण मुक्त रखें। खासकर जहां बिल्ट-अप एरिया ने भूजल रिचार्ज की क्षमता कम कर दी हो, वहां बाढ़ को कम करने के लिए इन-सीटू (स्थानीय स्तर पर) वर्षा जल निकासी के आयामों/मानदंडों को बढ़ाएं।

झीलों, जल निकायों, नालों और नदियों का प्रकृति-आधारित पुनरुद्धार
पुनर्जीवन के लिए प्रकृति आधारित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए। शहरों में, जहां भूजल पुनर्भरण कम है, जल निकायों को पुनर्भरण क्षेत्रों के रूप में विकसित किया जाना चाहिए।

भूजल संसाधन बढ़ाने के लिए जल उपयोगिताओं का पुनर्गठन
शहरों को भी जलीय परतों का मानचित्रण करना चाहिए और उनके रिचार्ज/डिस्चार्ज की नियमित रूप से निगरानी करनी चाहिए। भूजल रिचार्ज में क्षेत्र के जल निकायों के माध्यम से उपचारित मलजल के पुन: उपयोग को शामिल करना चाहिए।

संसाधनों और सेवाओं में सुधार
रिसाव को रोकने, दक्षता बढ़ाने और उपचार के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए सभी पानी, स्वच्छता और वर्षा जल अवसंरचना और सेवाओं में सुधार की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि खराब सीवेज बुनियादी ढांचे की वजह से आपूर्ति का पानी या भूजल दूषित न हो। कई अध्ययनों में बेंगलुरु के उपनगरीय इलाकों में भूजल में ई कोलाई पाया गया है। सीवेज नालों और सेप्टिक टैंकों से रिसाव को भूजल के दूषित होने के कारणों में से एक के रूप में पहचाना गया है।

विकेंद्रीकृत जल आपूर्ति और स्वच्छता प्रणालियों को बढ़ावा
इसके लिए सतही जल के निकास का मानचित्रण करना आवश्यक है, जो भूजल पुनर्भरण के लिए वर्षा जल संचयन को सक्षम करेगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भूजल पुनर्भरण बुनियादी स्तर पर किया जा सकता है, शहरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी मानचित्रण के लिए 1-10 वर्ग किमी के छोटे इकाई क्षेत्र का उपयोग किया जाना चाहिए। केवल अनिवार्य होने पर ही शहरों में बड़े और केंद्रीकृत जल आपूर्ति और सीवेज उपचार प्रणालियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए क्योंकि ये अक्सर व्यवहार्य नहीं होते हैं। इसी कारण से शहरों और एक साथ कई गांवों में जल आपूर्ति की योजनाओं के लिए लंबी दूरी की नदी और जलाशय आधारित जल आपूर्ति पर निर्भरता को भी हतोत्साहित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए बेंगलुरु में, 100 किलोमीटर दूर कावेरी नदी से पानी लिया जाता है, उसे पंप के जरिए ऊपर उठाकर लाया जाता है। इससे पानी की आपूर्ति की लागत बढ़ जाती है। लंबा जल आपूर्ति नेटवर्क जितना बड़ा होता है, रिसाव उतना ही ज्यादा होता है- बेंगलुरु में यह 50 प्रतिशत है।

           एक्शन प्वॉइंट

  • शहरी क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति, सीवर और वर्षा जल निकासी से जुड़े सभी खराब बुनियादी ढांचे और सेवाओं को ठीक किया जाए

  • शहरों में अब बड़ी संख्या में बनी अनधिकृत कॉलोनियों के लिए अतिरिक्त ग्रे इंफ्रास्ट्रक्चर (अपशिष्ट निपटान से जुड़े ढांचे) और सेवाओं की जरूरत है

  • गैर-सीवरेज स्वच्छता प्रणालियों को बढ़ावा देने की जरूरत

अनौपचारिक शहरी बस्तियों की अधूरी जरूरतों को प्राथमिकता दें
बड़े शहरों में ज्यादातर लोग भीड़भाड़ वाली, अनियोजित बस्तियों (अधिकृत और अनधिकृत) में रहते हैं। इन बस्तियों के सभी लोगों तक बड़े, केंद्रीकृत जल आपूर्ति और सीवरेज सिस्टम के माध्यम से पानी और स्वच्छता सुविधा नहीं पहुंच सकती है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक बड़ी अनियोजित बस्ती संगम विहार में एक अध्ययन किया है। इस बस्ती की जनसंख्या 10 लाख से अधिक है (केवल 13 ब्लॉकों में) और सभी स्रोतों से मिलाकर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन केवल 45 लीटर पानी मिलता है, जबकि शहरी क्षेत्रों के लिए केंद्र सरकार का मानक प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 135 लीटर पानी है। जगह की कमी के कारण, पानी की पाइपलाइन और सीवर नेटवर्क बिछाना काफी मुश्किल है। ऐसी बस्तियों में प्रति व्यक्ति पानी की आपूर्ति और टिकाऊ स्वच्छता प्रणालियों को बढ़ाने और सुधारने के लिए केवल शहर भर में विकेन्द्रीकृत जल आपूर्ति और स्वच्छता प्रणाली दृष्टिकोण ही अपनाया जा सकता है। सरकार को अव्यवस्थित बस्तियों के लिए अतिरिक्त ग्रे इंफ्रास्ट्रक्चर (अपशिष्ट निपटान से जुड़े ढांचे) भी बनाने की जरूरत है।

गैर-सीवरेज स्वच्छता प्रणालियां हो सकती हैं मददगार
सीएसई भारत के 6 राज्यों में सेप्टेज प्रबंधन की चुनौती का अध्ययन कर रहा है। टियर 3 और टियर 4 शहरों में मल प्रबंधन के लिए सेप्टिक टैंक और दोहरे गड्ढे वाले शौचालय जैसी गैर-सीवरेज स्वच्छता प्रणालियां एक प्रभावी उपाय के रूप में काम कर सकती हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 7,900 कस्बे हैं, जिनमें से 10 प्रतिशत से भी कम में सीवरेज सिस्टम हैं, वह भी आंशिक रूप से। बढ़ते जल संकट के कारण सभी शहरों के लिए महंगे भूमिगत सीवरेज सिस्टम स्थापित करना, चलाना, बनाए रखना और उनके लिए भुगतान करना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
यह पानी और पोषक तत्वों को फिर से भरने में मदद करेगा। बेंगलुरु स्थित गैर-लाभकारी संस्था सीडीएस इंडिया के एक अनुमान के अनुसार, 2021 में देश में 1,469 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) थे। ये एसटीपी प्रतिदिन 1,04,210 टन उपचारित मल का उत्पादन करते थे जिसका उपयोग उर्वरक के रूप में किया जा सकता है; एसटीपी से निकलने वाले उपचारित ग्रेवाटर का उपयोग भूजल पुनर्भरण (ग्राउंड वाटर रिचार्ज) के लिए किया जा सकता है। सरकार को स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) और अमृत मिशन के तहत वर्तमान 20 प्रतिशत और 30 प्रतिशत के स्तर से अपशिष्ट जल पुन: उपयोग के लक्ष्यों को बढ़ाना चाहिए। वर्तमान में, केवल चेन्नई और बेंगलुरु ही पीने के पानी के अलावा अन्य कार्यों के लिए उपचारित पानी का पर्याप्त पुन: उपयोग करते हैं। बेंगलुरु ने दिखाया है कि कैसे उपचारित अपशिष्ट जल का उपयोग झील के जीर्णोद्धार, भूजल पुनर्भरण और कृषि के लिए किया जा सकता है। मौजूदा पानी की किल्लत के दौरान, शहर ने इस संसाधन से कृषि के लिए पानी की कमी वाले कोलार और चिक्कबल्लापुर जिलों को आपूर्ति की।

जनता की भागीदारी और जागरूकता में सुधार
अब तक पानी बचाने के अधिकांश अभियान पानी बचाने के कुछ सरल पहलुओं, जैसे दांत साफ करते समय नल बंद करना, तक ही सीमित रहे हैं। शहरी स्थानीय निकायों, राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालयों को लोगों को जलवायु परिवर्तन के आने वाले खतरे और पानी और स्वच्छता पर इसके प्रभाव के बारे में जागरूक करना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालयों के लिए किया था।

स्वच्छ सर्वेक्षण का दायरा बढ़ाकर वार्डों की रैंकिंग की जरूरत
पानी की आपूर्ति, स्वच्छता और वर्षा जल प्रबंधन में कमियों को उजागर करने के लिए ऐसा करने की आवश्यकता है।

पानी और स्वच्छता की अगली पीढ़ी की चुनौतियों के लिए दीर्घकालिक (10-20 वर्ष) बहु-क्षेत्रीय जल, स्वच्छता, वर्षा जल और उपचारित जल पुन: उपयोग की योजना, क्रियान्वयन और निगरानी की आवश्यकता है। यह केंद्र सरकार के नेतृत्व में शहर स्तर पर और ग्रामीण क्षेत्रों में दोनों जगह किया जाना चाहिए। राज्यों को केंद्र से मदद और प्रोत्साहन के साथ शहरी और ग्रामीण जल आपूर्ति, स्वच्छता और तूफान जल प्रबंधन के लिए अपनी योजनाएं और वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए।

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