केंद्र सरकार ने पांच सालों में देश के 16 करोड़ ग्रामीण परिवारों के लिए नल से जल पहुंचाने के महत्वकांक्षी लक्ष्य 15 अगस्त 2019 में रखा था। इस लक्ष्य के पहुंच की समयाअवधि अगले पांच साल यानी 15 अगस्त, 2024 निर्धारित की गई थी। लेकिन अब अक्टूबर 2024 चल रहा है और इस साल को खत्म होने में केवल दो माह ही शेष बचे हैं। कायदे से तो पांच साल की समयाअवधि 15 अगस्त 2024 को खत्म हो चुकी है। और केंद्र सरकार ने अब तक केवल 11 करोड़ 95 लाख ग्रामीण परिवारों तक ही नल का कनेक्शन पहुंचा पाई है यानी अपने लक्ष्य से लगभग चार करोड़ कम।
जल जीवन मिशन (जेजेएम) की शुरुआत प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2019 को किया था। इस महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य वर्ष 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण घर में नल से जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना था। ध्यान रहे कि जब जल जीवन मिशन की शुरुआत हुई थी, उस समय देशभर में केवल 3.23 करोड़ यानी कुल ग्रामीण परिवारो का 17 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास ही नल से जल का कनेक्शन उपलब्ध था। इस मिशन का प्रमुख लक्ष्य साल 2024 तक लगभग 16 करोड़ अतिरिक्त घरों को नल का जल उपलब्ध कराना था। इसके अलावा 19 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को इस योजना के तहत सीधे लाभ पहुंचाना भी शामिल था। इस हिसाब से तो वर्तमान में चार करोड़ ग्रमीाण परिवारों के स्थान पर 7 करोड़ होगा जिनके पास नल कनेक्शन नहीं है। सरकार की इस पहल का मुख्य उद्देश्य था कि ग्रामीण-शहरी अंतर को कम करना तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य को भविष्य में और बेहतर करना है।
केंद्र सरकार का कहना है कि जल जीवन मिशन के अंतर्गत 6 अक्टूबर, 2024 तक 11.95 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल से जल के कनेक्शन प्रदान किए जा चुके हैं। और यह भी दावा किया है कि इससे इस सुविधा से लाभांवित परिवारों की कुल संख्या 15.19 करोड़ से अधिक पहुंच गई है, जो भारत के सभी ग्रामीण परिवारों का 78.58 प्रतिशत है। यहां ध्यान देने की बात है कि केंद्र सरकार ने इस 15.19 ग्रामीण परिवारों में उन 3.23 करोड़ ग्रामीण परिवारों को भी जोड़ लिया, जिनके पास वास्तव में इस योजना के शुरू होने के पहले ही नल कनेक्शन था। इससे सरकार अपनी सफलसता का प्रतिशत अधिक दिखाने में सफल हुई है।
भारत के लगभग 25 करोड़ परिवारों में से 19.5 करोड़ परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। दुर्भाग्य से प्रति व्यक्ति प्रति दिन 55 लीटर स्वच्छ पेयजल (“हर घर जल” योजना के तहत) प्रदान कर सकने वाले नल जल कनेक्शन ग्रामीण क्षेत्रों में दुर्लभ ही हैं।
भारत की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि एक ही व्यवस्था सभी क्षेत्रों में लागू नहीं की जा सकती थी। उत्तर भारत के राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों में पानी जमने की समस्या थी तो रेगिस्तानी और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पेयजल स्रोतों की कमी थी। कहीं ग्रामीण बस्तियां दूर-दूर थीं तो कुछ जगहों पर प्रदूषण की बड़ी समस्या थी। इसलिए कोई भी पीछे न छूटे की थीम के साथ जल जीवन मिशन की शुरूआत की गई। जल जीवन मिशन का प्रभाव केवल जल उपलब्धता तक सीमित नहीं है। इसमें ग्रामीण समुदायों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति व्यापक प्रतिबद्धता भी शामिल है। इसमें जहां स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने की बात कही गई है, वहीं लोगों के जीवन स्तर में सुधार भी आने की बात कही गई है।
स्वच्छ जल के संबंध में में 2019 के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर माइकल क्रेमर ने एक शोध पत्र प्रकाशित किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि सभी घरों में सुरक्षित पानी की कवरेज से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में लगभग 30 प्रतिशत की कमी होने की संभावना है। इसका मतलब है कि प्रतिवर्ष 1,36,000 लोगों की जान बचाई जा सकती है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी अनुमान लगाया है कि जेजेएम के अंतर्गत प्रतिदिन 5.5 करोड़ घंटे से अधिक समय की बचत होगी। यह मुख्य रूप से महिलाओं के लिए है जो अन्य घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पानी के संग्रह में खर्च होता है। डब्ल्यूएचओ ने यह भी अनुमान लगाया है कि देश में सभी परिवारों के लिए सुरक्षित एवं प्रबंधित पेयजल सुनिश्चित करने से डायरिया रोगों के कारण होने वाली लगभग 4 लाख मौतों को रोका जा सकता है।
इसके अलवा भारतीय प्रबंधन संस्थान, बंगलौर ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की भागीदारी में जेजेएम की रोजगार संभावना का अनुमान लगाया है। दोनों संस्थानों द्वारा जारी रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप जेजेएम के पूंजीगत व्यय चरण के दौरान 59.9 लाख व्यक्ति-वर्ष प्रत्यक्ष और 2.2 करोड़ व्यक्ति-वर्ष अप्रत्यक्ष रोजगार मिलने की संभावना होगी।