पहाड़ी जल स्रोतों को बचाना जरूरी, 2050 तक 150 करोड़ लोग होंगे निर्भर

पहाड़ी जल स्रोतों को बचाना जरूरी, 2050 तक 150 करोड़ लोग होंगे निर्भर

1960 में तराई में रहने वाली करीब 7 फीसदी आबादी इन जल स्रोतों पर निर्भर थी जो 2050 तक बढ़कर 24 फीसदी पर पहुंच जाएगी
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अनुमान है कि 2050 तक करीब 150 करोड़ लोग अपनी जल सम्बन्धी जरूरतों के लिए पहाड़ी जल स्रोतों पर निर्भर होंगे| वहीं पिछले 100 सालों में पानी की खपत 4 गुना बढ़ गई है| जिसे पूरा करने के लिए पहाड़ों से निकलने वाली नदियों और जल स्रोतों पर भी दबाव बढ़ता जा रहा है| हालांकि यह जल स्रोत एक बड़ी आबादी की जल आवश्यकता को पूरा करते हैं, पर भविष्य में यह तभी मुमकिन हो सकेगा जब हम इनके सतत विकास पर ध्यान दें| इनका इतना भी दोहन न करे की फिर इनसे हमें कुछ मिल ही न सके| इसलिए इस कीमती संसाधन का सूझबूझ से उपयोग करना जरुरी है|

आज पानी हमारे लिए कितना जरुरी है यह बात सभी जानते हैं| भारत की भी एक बड़ी आबादी हिमालय से आने वाली नदियों पर निर्भर हैं| गंगा, यमुना, सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां भारत के लिए अत्यंत जरुरी हैं| इसी प्रकार मेकांग, पद्मा नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, कंबोडिया और बांग्लादेश की आबादी और अर्थव्यवस्था को आधार प्रदान करती है| तराई में रहने वाली एक बड़ी आबादी अपनी जल सम्बन्धी आवश्यकता के लिए इन पहाड़ों और उनके जल संसाधन पर ही निर्भर है| बात चाहे पीने के लिए पानी की हो या खेतों की सिंचाई की, उसमें इन पर्वतीय जल स्रोतों का एक बड़ा योगदान होता है| ऐसे में उसका आंकलन जरुरी हो जाता है| इसी पर यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख ने एक शोध किया है जोकि जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है|

1960 के बाद से बढ़ रही है निर्भरता

इस शोध में पहाड़ी जल स्रोत तराई की कितनी पानी सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करते हैं, इस बात का अध्ययन किया गया है| इस शोध में जल की आपूर्ति और खपत का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है जिससे उसकी निर्भरता को निर्धारित किया जा सके। इस शोध से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार 2050 तक तराई में रहने वाली करीब 24 फीसदी आबादी पहाड़ी जल स्रोतों पर निर्भर होगी| जोकि करीब 150 करोड़ की आबादी होगी| जबकि 1960 में करीब 7 फीसदी आबादी ही इन जल स्रोतों पर निर्भर थी| यह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि इन जल स्रोतों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है|

इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता और यूनिवर्सिटी ऑफ ज्यूरिख में भूगोल विभाग से जुड़े डैनियल विविरोली ने बताया कि यह शोध मुख्य रूप से एशिया के ऊंचे  पर्वतों और उसकी नदी घाटियों पर ही केंद्रित है| लेकिन इसके साथ-साथ मध्य पूर्व, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के भी कई क्षेत्र अपनी सिंचाई सम्बन्धी जरूरतों के लिए पहाड़ी जल स्रोतों पर ही निर्भर हैं|

संसाधनों की बर्बादी और जलवायु परिवर्तन से बढ़ रहा है इनपर दबाव

आल्टो यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध से जुड़े मैटी कुमू ने बताया कि तराई में रहने वाले लोगों को इन पहाड़ों को बचाने पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि यह पहाड़ उनके 'वाटर टावर' हैं| ऐसे में माउंटेन इकोसिस्टम को बचाना और इन क्षेत्रों का सतत विकास जरुरी है|  जिस तरह से जलवायु में परिवर्तन आ रहा है और तापमान में वृद्धि हो रही है| उससे इन पहाड़ों पर दबाव बढ़ता जा रहा है| वहीं तापमान बढ़ने के साथ पहाड़ों पर जमी बर्फ समय से पहले ही पिघल रही है, जिसका असर कृषि पर भी पड़ रहा है| इससे पहले जर्नल नेचर में छपे एक शोध में भी बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और जल संसाधनों के ठीक से प्रबंधन ने किये जाने को इन 'वाटर टावर्स' पर बढ़ते खतरे के लिए जिम्मेवार माना था|

ऐसे में उचित जल प्रबंधन के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की रोकथाम की दिशा में भी काम करने की जरुरत है| हालांकि पहाड़ी और मैदानी क्षेत्र  राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से एक दूसरे से बहुत अलग हैं| इसके बावजूद यह जरुरी है कि वो एक साथ मिलकर काम करें| जिससे इस धरोहर को भविष्य के लिए बचाया जा सके| 

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