मेवात में पानी फिर बना चुनावी मुद्दा

सिंचाई का पानी न होने के कारण लगातार पिछड़ रहा है 12 लाख की आबादी वाला मेवात
मेवात का सूखा हुआ रजवाहा। Credit : Mohd Harun
मेवात का सूखा हुआ रजवाहा। Credit : Mohd Harun
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मोहम्मद हारून

सिंचाई के लिए पानी न होने के कारण मेवात लगातार आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है। यही वजह है कि हर बार पानी यहां का बड़ा चुनावी मुद्दा होता है, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद राजनीतिक दल इस मुद्दे को भूल जाते हैं। हालांकि इस बार हरियाणा के सतारूढ़ दल भाजपा ने इस 'बंजर जमीन' पर अपने पैर जमाने के लिए चुनाव से ठीक पहले एक नहर निर्माण का शिलान्यास कर दिया। बावजूद इसके, लोगों को अब भी भरोसा नहीं है कि चुनाव खत्म होने के बाद यहां नहर बन जाएगी और उनके खेतों तक पानी पहुंच जाएगा।

मेवात का इलाका (नूंह) जिले के नूंह, फिरोजपुर झिरका, तावडू, नगीना पुन्हाना खंड के अलावा पलवल जिले का हथीन खंड में फैला है। लगभग 12 लाख की आबादी वाला यह इलाका मेव बाहुल्य है, इसलिए इस इलाके को मेवात कहा जाता है। इस इलाके में लगभग एक लाख 46 हजार 645 हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है। नूंह में 36 हजार 820, तावडू 13 हजार 939, फिरोजपुर झिरका 19 हजार 616, पुन्हाना 26 हजार 66, नगीना 17 हजार 204 तथा हथीन खंड में 33 हजार हेक्टेयर भूमि कृषि योग्य है।

लेकिन इस इलाके की बदकस्मिती है कि इस पूरे इलाके में कोई नदी न होने के कारण यहां सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं है। कृषि विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, मेवात एरिया की भूमि काली व दोमट मिट्टी है तावडू एरिया में भूड़ा किस्म की उपजाऊ भूमि है। यहां 36 प्रतिशत भूमि में जमीनी बोरिंग (ट्यूबवेल) के माध्यम से सिंचाई की जाती है और केवल 17  फीसदी इलाके में बारिश के पानी से सिंचाई होती है। इसके अलावा 47 प्रतिशत भूमि में सिंचाई की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है। दरअसल, इस पूरे इलाके का भूजल स्तर 200 से 300 फुट तक पहुंच चुका है और बहुत बड़े हिस्से में पानी खारा भी है, जो सिंचाई के लिए लायक नहीं है। कई जगह रजवाहे हैं, लेकिन वे या तो सूखे हैं या उनमें प्रदूषित पानी बह रहा है। मजबूरन किसान इस पानी से अपने खेत की सिंचाई कर रहा है। मुख्य रूप से मेवात एरिया में गेहूं, जौ, सरसों, ज्वार, बाजरा, कपास, धान तथा कई प्रकार की दलहनें होती है। लेकिन सिंचाई न होने के कारण इनका उत्पादन प्रभावित हो रहा है।

यूं तो कहने को, 1970 के दशक में इस क्षेत्र की सिंचाई व्यवस्था को लेकर गुड़गांव नहर का निर्माण किया। इस नहर से मेवात, पलवल व फरीदाबाद जिले की एक लाख 30 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई का जिम्मा है। यह नहर फरीदाबाद के औखला बैराज से निकलकर फरीदाबाद, पलवल व मेवात जिले के पुन्हाना क्षेत्र से होती हुई राजस्थान चली जाती है। लेकिन पिछले 15 सालों से फरीदाबाद की फैक्ट्रियों के रसायनयुक्त पानी की वजह से किसानों की भूमि को बंजर बना दिया है। हथीन खंड के गांव मंडकोला, मंढनाका, मंढोरी, स्यारौली, रनसीका, छांयसा, मठेपुर, बिघावली, दूरैंची, जलालपुर, महलूका, हुंचपुरी नूंह जिले के अलालपुर, ढेंकली, सुल्तापुर, बीबीपुर व कई अन्य गांवों की भूमि रसायनयुक्त पानी के लगातार इस्तेमाल से सेम की चपेट में आ चुकी है। इसके अलावा यहां नूंह, कोटला, उझीना ड्रेन बरसाती ड्रेन हैं। अक्सर ये ड्रेन केवल बरसात में ओवर फ्लो पानी के प्रयोग के लिए बनी है। सारा साल ये ड्रेन सूखी रहती हैं। 

लोगों की इस दिक्कत को समझते हुए हरियाणा सरकार ने चुनाव से एक माह पहले यहां एक नहर बनाने की घोषणा कर दी। 9 मार्च 2019 को मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसका उद्घाटन भी कर दिया।

सरकार की योजना है कि  झज्जर जिले के बादली के समीप से दो नहरें गुजर रही हैं, इनमें एक नहर एनसीआर नहर है दूसरी नहर ककरोली- सोनीपत नहर है। यह नहर यमुना नदी से निकलती है। इसी नहर से गुडग़ांव के लिए पीने का पानी मिल रहा है। इन दोनों नहरों से पानी का एक हिस्सा मेवात तक पहुंचाया जाएगा। इस योजना को मेवात केनाल नाम दिया गया है। योजना के तहत मेवात के लिए 3 फेजों में 300 क्यूसिक पानी आएगा। पहले फेस में 100 तथा दूसरे व तीसरे फेस में 100-100 क्यूसिक पानी देने की योजना है। इस पूरी योजना पर लगभग 1100 करोड़ रुपए खर्च होंगे। लगभग 70 किलोमीटर लंबी पाइप लाइनें बिछाई जाएंगी, जिसके माध्यम से पानी मेवात तक लाया जाएगा।

मेवात के किसान सरफुद्दीन मेवाती कहते हैं कि हर बार राजनीतिक दल क्षेत्र में सिंचाई पानी उपलब्ध कराने के नाम पर वोट मांगते हैं, लेकिन जीतने के बाद फिर इस मुद्दे को अगले चुनाव के लिए रख लेते हैं। इस बार सरकार ने मेवात नहर का शिलान्यास तो कर दिया है, लेकिन यह नहर बनेगी या नहीं, इसको लेकर स्थानीय लोग संशय में हैं। पोंडरी गांव के किसान राकेश देशवाल कहते हैं कि इस बार जो भी हमसे वोट मांगेगा, उससे साफ-साफ पूछेंगे कि हमारे खेतों में पानी कहां से और कब आएगा। पूर्व सरपंच व किसान अखतर हुसैन कहते हैं कि लोग तो जैसे-तैसे अपने पीने के पानी का इंतजाम कर लेते हैं, लेकिन इलाके में खेती तो क्या किसानों के पशुओं को पीने का पानी भी नहीं है।

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