भारतीय और अमेरिकी वैज्ञानिकों के एक शोध में ऐसे जीन्स की पहचान की गई है, जो मूंगफली की अधिक पाचक किस्में विकसित करने में मददगार हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार मूंगफली की ये किस्में खनिजों की कमी से होने वाले कुपोषण को दूर करने का जरिया बन सकती हैं।
वैज्ञानिकों ने मूंगफली में फाइटिक एसिड के संश्लेषण से एएचपीआईपीके1, एएचआईपीके2 और एएचआईटीपीके1 नामक जीन्स की पहचान की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इन जीन्स के उपयोग से कम फाइटिक एसिड वाली मूंगफली की किस्में बनाई जा सकती हैं।
गुजरात के जूनागढ़ में स्थित मूंगफली अनुसंधान निदेशालय, हैदराबाद के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान तथा भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान और अमेरिका की फ्लोरिडा एग्रीकल्चर ऐंड मैकेनिकल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों को एक संयुक्त अध्ययन में यह सफलता मिली है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बी.सी. अजय ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “पहचान किए गए जीन्स की मदद से मूंगफली की निम्न फाइटिक एसिड वाली आनुवांशिक किस्में बनाई जा सकती हैं। हालांकि, इन किस्मों के विकास के लिए आवश्यक उपकरण और जीनोमिक संसाधन हमारे पास अभी उपलब्ध नहीं हैं। यदि ऐसा संभव हुआ तो विकासशील देशों में खनिजों की कमी से होने वाले कुपोषण से लड़ने के लिए कम लागत में निम्न फाइटिक एसिड वाली मूंगफली की फसल तैयार की जा सकेगी।”
मूंगफली में मौजूद खनिजों की प्रचुर मात्रा की वजह से इसे एक संपूर्ण आहार माना जाता है। मूंगफली में 2-3 प्रतिशत तक खनिज होते हैं। इसको आयरन, पोटेशियम, कैल्शियम, सोडियम और मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसमें मैंगनीज, तांबा, जस्ता और बोरान की भी कुछ मात्रा पाई जाती है।
इसमें प्रोटीन की मात्रा मांस की तुलना में 1.3 गुना, अण्डों से 2.5 गुना एवं फलों से आठ गुना अधिक होती है। मूंगफली में मौजूद विभिन्न प्रकार के 30 विटामिन और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद खनिज कुपोषण से लड़ने में मददगार हो सकते हैं।
मूंगफली में पाए जाने वाले फाइटिक एसिड जैसे तत्व पाचन के समय आयरन और जिंक के अवशोषण में रुकावट पैदा करते हैं। मूंगफली में फाइटिक एसिड 0.2-4 प्रतिशत होता है और इसके जीनोटाइपों में फाइटिक एसिड की मात्रा में बहुत अधिक विविधता देखी गई है। गेहूं, मक्का एवं जौ की तुलना में उच्च फाइटिक एसिड और अरहर, चना, उड़द एवं सोयाबीन की अपेक्षा मूंगफली में निम्न अकार्बनिक फॉस्फोरस पाया जाता है।
मनुष्यों में फाइटिक एसिड या फाइटेट को पचाने में असमर्थता के कारण मूंगफली के सेवन से पाचन में समस्या हो जाती है और ये शरीर से पाचन हुए बिना ही बाहर निकल जाते हैं। इस तरह अवांछित फाइटिक एसिड पर्यावरण में प्रदूषण और जल यूट्रोफिकेशन यानी जल में पादप पोषकों की मात्रा को बढ़ावा देते हैं।
फाइटिक एसिड के जैव-संश्लेषण में शामिल जीन्स को आणविक प्रजनन या जीनोमिक सहायता प्रजनन प्रक्रियाओं द्वारा अप्रभावी बनाकर अन्य प्रचलित अनाजों जैसे मक्का, बाजरा और सोयाबीन की निम्न फाइटिक एसिड वाली ट्रांसजेनिक किस्में बनाई जा चुकी हैं, परन्तु मूंगफली के लिए अभी इस तरह के प्रयास बहुत सीमित हैं। अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि निम्न फाइटिक एसिड वाली मूंगफली का विकास समय की मांग है। यदि मूंगफली में फाइटिक एसिड की मात्रा को कम किया जा सके तो इसके अन्य पोषक तत्वों का पूरा लाभ उठाया जा सकता है।
अध्ययनकर्ताओं के दल में बी.सी. अजय के अलावा डी. केंबिरंदा, एस.के. बेरा, नरेंद्र कुमार, के. गंगाधर, आर. अब्दुल फैयाज और के.टी. राम्या शामिल थे। यह अध्ययन हाल में शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है।
(इंडिया साइंस वायर)