इंटरनेट की जरूरत बनी मुसीबत

सूचना क्रांति का वाहक इंटरनेट अब दुनियाभर में लोगों को बीमारी के दलदल में धकेल रहा है। बच्चे और युवा इसके आसान शिकार हैं।
Photo: Vikas Choudhary
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दसवीं कक्षा में पढ़ने वाले अंकित (परिवर्तित नाम) की उम्र 14 या 15 साल होगी। मोबाइल फोन से उसे इस कदर लगाव हुआ कि वह उसी में खोया रहने लगा। माता-पिता ने पहले तो इस लगाव को दरकिनार किया, लेकिन जब अंकित की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ने लगा तो एक दिन पिता ने फोन छीन लिया। अंकित को पिता की हरकत इतनी नागवार लगी कि उसने उन्हें पीट दिया। पिता अंकित के व्यवहार को देख सन्न रह गए।

धीरे-धीरे अंकित का मोबाइल फोन के प्रति लगाव और रोकने पर माता-पिता पर हाथ उठाने की बात सामान्य हो गई। पानी सिर के ऊपर से गुजरा तो परिजन अंकित को लेकर मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) लेकर पहुंचे। यहां मनोचिकित्सक इस नतीजे पर पहुंचे कि इंटरनेट एडिक्शन की वजह से अंकित के व्यवहार में यह बदलाव आया है।

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दिव्यांश द्वारका के डीपीएस स्कूल में नौवीं का छात्र है। वह डेढ़ महीने से स्कूल नहीं जा रहा है। पिछले 8-9 महीने से उसे वीडियो गेम का ऐसा चस्का लगा कि वह मोबाइल फोन और कंप्यूटर पर हमेशा वीडियो गेम ही खेलता रहता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के बिहेवियर एडिक्शन क्लीनिक में 9 सितंबर को बेटे को लेकर पहुंचे दिव्यांश के पिता ने बताया कि बेटे ने पहले सत्र की परीक्षा नहीं दी फिर दूसरे सत्र में भी शामिल नहीं हुआ। अब उसने स्कूल जाना छोड़ दिया है।

उन्होंने बताया कि शुरू में स्कूल से जो गृह कार्य मिलता है, उसमें इंटरनेट का इस्तेमाल करना पड़ता था लेकिन धीरे-धीरे यह उनके बेटे की आदत में शुमार हो गया। अब इंटरनेट न मिलने पर वह चिल्लाता है। पढ़ाई में भी कमजोर हो गया है। इंटरनेट इस्तेमाल करने से रोका तो उसने गुस्से में मोबाइल तोड़ दिया।

21वीं सदी की स्वास्थ्य समस्याओं में इंटरनेट एडिक्शन एक नई परेशानी बनकर उभर रहा है। बच्चे और युवा इसकी जद में आ रहे हैं। यही वजह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में जागरुक अभिभावक अपने बच्चों को लेकर मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं।

हालांकि बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इसे बीमारी मानने को तैयार नहीं है लेकिन देर-सवेर जब पानी सिर के ऊपर से गुजरेगा तो उन्हें डॉक्टर के पास जाना ही होगा क्योंकि सूचना क्रांति और डिजिटल इंडिया के इस युग में इंटरनेट एडिक्शन ने युवाओं को घुन की तरह खाना शुरू कर दिया है। जानकारों को कहना है कि आने वाले समय में यह संक्रमण की तरह फैलने वाला है।

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मनोचिकित्सा विभाग में असोसिएट प्रोफेसर यतनपाल सिंह बलहारा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इंटरनेट एडिक्शन के बढ़ते मामलों को देखते हुए एम्स में पिछले साल अक्टूबर में बिहेवियर एडिक्शन क्लीनिक खोला गया था। उन्होंने बताया कि 17 से 25 साल के युवाओं, खासकर छात्रों में इंटरनेट एडिक्शन के मामले देखे जा रहे हैं।

बोरियत से बचने के लिए युवा इंटरनेट की ओर आकर्षित होते हैं और फिर उसके आदी हो जाते हैं। हालांकि उन्होंने बताया कि इंटरनेट के ज्यादा इस्तेमाल को इंटरनेट एडिक्शन से जोड़ना ठीक नहीं है। यह विकार तब होता है जब लोग इंटरनेट पर इतने आश्रित हो जाते हैं कि जरूरी काम प्रभावित करने लगता है। मसलन छात्र का काम पढ़ाई करना है, जब इंटरनेट का पढ़ाई पर असर पड़ने लगे तब इंटरनेट एडिक्शन समझा जाएगा।

उन्होंने बताया कि मोबाइल फोन या कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल से कलाइयों, आंखों और पीठ पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। इंटरनेट एडिक्शन पर उन्होंने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर 8000 बच्चों पर अध्ययन किया है। हालांकि अध्ययन के नतीजे उन्होंने फिलहाल साझा नहीं किए।

इहबास में कार्यरत मनोचिकित्सक एवं एसोसिएट प्रोफेसर ओम प्रकाश ने डाउन टू अर्थ को बताया कि नशे के तमाम एडिक्शन केमिकल युक्त होते हैं लेकिन यह एडिक्शन एकदम अलग है। यह व्यवहार पर असर डालता है। उन्होंने बताया कि इंटरनेट तक न पहुंच न होने की सूरत में इसका आदी बैचेन हो उठता है और इंटरनेट मिलते ही उसकी बैचेनी दूर हो जाती है। उन्होंने बताया कि इंटरनेट एडिक्शन के पीड़ित व्यक्ति सीधा हमारे पास आने से कतराते हैं। अक्सर उनके अभिभावक लेकर आते हैं।

अब इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं। यह बिहेवियर एडिक्शन है जिसमें व्यक्ति एक ही तरह का व्यवहार बार-बार करता है। वह मानते हैं कि सूचना क्रांति के इस दौर का इंटरनेट एडिक्शन नकारात्मक पहलू है। और जिस तरह मोबाइल कंपनियों में डेटा देने की होड मची है, उससे इसमें इजाफा ही होगा।

उनकी इस आशंका की पुष्टि आंकड़े भी करते हैं। इंटरनेट ट्रेंड्स पर नजर रखने वाली वेबसाइट इंटरनेट लाइव स्टेट्स डॉटकॉम के अनुसार, इस वक्त दुनियाभर में करीब 3 अरब 72 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस आंकड़े में प्रति सेकंड इजाफा हो रहा है। दुनियाभर की आबादी में करीब 40 प्रतिशत के पास इंटरनेट कनेक्शन है। 1995 में यह एक प्रतिशत से कम था। इंटरनेट के इस्तेमाल के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। जुलाई 2016 में यहां 46 करोड़ 21 लाख लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। यानी करीब 35 प्रतिशत आबादी की पहुंच इंटरनेट तक थी।

द इंटरनेट एंड मोबाइल असोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) के अनुसार, भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले अपना 72 प्रतिशत समय (50 प्रतिशत ऑनलाइन सामग्री पर और 22 प्रतिशत ऐप पर) का इस्तेमाल इंटरनेट की सामग्री जैसे वीडियो गेम, खोज और ऑनलाइन खेलों आदि पर गुजारते हैं जबकि 15 प्रतिशत वक्त कॉल करने पर खर्च करते हैं।

आईएएमएआई का मोबाइल इंटरनेट इन इंडिया 2015 अध्ययन बताता है कि 2015 में मोबाइल के बिल में इंटरनेट का योगदान 64 प्रतिशत था जबकि 2014 में यह 54 प्रतिशत था। इससे पता चलता है कि अब मोबाइल फोन का ज्यादातर इस्तेमाल इंटरनेट के लिए किया जा रहा है, बात करने के लिए कम।  

चिंताजनक साक्ष्य

साल 2013 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की मदद से बैंगलुरू में रहने वाले 18 से 65 आयु वर्ग के 2,755 लोगों पर सर्वे किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि इनमें से 1.3 प्रतिशत लोग इंटरनेट एडिक्ट हैं। यह रिपोर्ट एशियन जर्नल ऑफ सायकायट्री में मई 2013 में प्रकाशित हुई थी।

इसी जर्नल में दिसंबर 2013 में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन अहमदाबाद में स्कूल जाने वाले 11वीं और 12वीं के छात्रों पर किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, 11.8 प्रतिशत छात्र इंटरनेट एडिक्ट पाए गए। इंडियन जर्नल ऑफ सायकायट्री में 2013 में प्रकाशित ए स्टडी ऑफ प्रेवलेंस ऑफ इंटरनेट एडिक्शन एंड इट्स असोसिएशन विद साइकोपेथोलॉजी इन इंडियन एडोलसेंट्स अध्ययन में मनोचिकित्सक दीपक गोयल ने मुंबई के 987 बच्चों पर अध्ययन किया और पाया कि 0.7 प्रतिशत बच्चे इंटरनेट एडिक्ट हैं।

इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस एंड पब्लिक हेल्थ में 2014 में प्रकाशित अध्ययन में अरविंद शर्मा ने मध्यप्रदेश के जबलपुर में 15 से 25 साल के 391 छात्रों पर किया गया। उनका अध्ययन बताता है कि 35 प्रतिशत छात्र इंटरनेट के हल्के एडिक्ट हैं जबकि 0.3 प्रतिशत छात्र गंभीर रूप से इंटरनेट एडिक्ट हैं।

साल 2015 में मुंबई के लोकमान्य तिलक म्यूनिसिपल मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सकों ने 8वीं से 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले 555 स्कूली बच्चों पर एक और अध्ययन किया। अध्ययन में 5.58 प्रतिशत बच्चे इंटरनेट एडिक्ट मिले। 15 प्रतिशत बच्चे जरूरत से ज्यादा इंटरनेट का इस्तेमाल करते पाए गए लेकिन वे एडिक्ट नहीं थे।  

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य एवं स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहंस) के सेंटर फॉर एडिक्शन मेडिसिन में मनोचिकित्सक प्रोफेसर प्रतिमा मूर्ति का कहना है कि इंटरनेट एडिक्शन का शिकार वे बच्चे आसानी से बन जाते हैं जो संकोची और आत्मकेंद्रित स्वभाव के होते हैं। ऐसे बच्चों के कम दोस्त होते हैं और वे बाहरी गतिविधियों में कम लिप्त होते हैं। ऐसे युवा भी इंटरनेट की ओर आकर्षित होते हैं।

प्रतिमा मूर्ति का कहना है कि उन्होंने हाल ही में 13 साल का ऐसा बच्चा देखा जिसके माता पिता नौकरी करते थे और उनके संबंध ठीक नहीं चल रहे थे। वह बच्चा बेहद संकोची था और स्कूल के वातावरण में खुद को नहीं ढाल पा रहा था। इस कारण उसे 6 से 8 स्कूल बदलने पड़े। वह समाज से इस कदर कट गया कि उसने खुद पर ध्यान देना भी बंद कर दिया। वह 10 से 12 घंटे रोज इंटरनेट पर वीडियो गेम खेलता था।

इससे वह दुनियाभर के लोगों से जुड़ा था। वह इंटरनेट पर बातें करता रहता था। उन्होंने बताया कि अकेले रहने युवा फेसबुक और इंटरनेट एडिक्ट पाए जा रहे हैं। संयुक्त परिवारों में यह कम है। बहुत से अभिभावक छोटे-छोटे बच्चों को भोजन कराने या शांत करने के लिए मोबाइल पर वीडियो दिखाने लगते हैं। इन बच्चों को वीडियो की आदत पड़ने लगती है।

स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान रोहतक में निदेशक एवं वरिष्ठ प्रोफेसर राजीव गुप्ता ने बताया कि आजकल तमाम सेवाएं इंटरनेट से जुड़ी हैं। ज्यादातर काम मोबाइल पर हो जाते हैं। लोग फेसबुक और वाट्सऐप पर बात करते हैं। हम वास्तविक दुनिया से कट गए हैं। उन्होंने बताया कि मोबाइल फोन के ज्यादा इस्तेमाल से ब्रेन कैंसर और नपुंसकता की भी आशंकाएं हैं। इस दिशा में शोध किए जा रहे हैं। हम स्कूलों और कॉलेजों में जाकर छात्रों को इंटरनेट एडिक्शन के प्रति जागरूक कर रहे हैं। इससे बचने का फिलहाल यही उपाय है। उन्होंने चेताया कि आने वाले समय में इंटरनेट एडिक्शन से बचाने के लिए बड़े पैमाने पर पुनर्वास केंद्रों की जरूरत पड़ेगी।

वैश्विक चिंता

इंटरनेट एडिक्शन को सबसे पहले न्यू यॉर्क के मनोचिकित्सक इवेन गोल्डबर्ग ने 1995 में पहचान लिया था। हालांकि अमेरिका ने इसे अभी मानसिक विकार घोषित नहीं किया है लेकिन पहली बार अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने इंटरनेट एडिक्शन को देखते हुए वीडियो गेम पर शोध करने के लिए फंड दिया है। चीन ने 2008 में ही इंटरनेट एडिक्शन को विकार घोषित कर दिया था। चीन में इंटरनेट की लत छुड़वाने के लिए बड़ी संख्या में शिविर चलाए जा रहे हैं। चीन की संसद नैशनल पीपुल्स कांग्रेस का अनुमान है कि चीन में 18 साल से कम उम्र के 10 प्रतिशत युवा इंटरनेट एडिक्ट हैं।

साइबर साइकोलॉजी, बिहेवियर एंड सोशल नेटवर्किंग जर्नल में 2014 में प्रकाशित हॉन्गकॉन्ग के शोधकर्ताओं के अध्ययन के अनुसार, दुनियाभर की 6 प्रतिशत आबादी इंटरनेट एडिक्ट है। अध्ययन के मुताबिक, उत्तरी और पश्चिमी यूरोप की 2.6 प्रतिशत लोग जबकि मध्य एशिया के 10.9 प्रतिशत लोग इंटरनेट एडिक्शन की गिरफ्त में हैं।”

ब्लू व्हेल चैलेंज का खतरा

भारत और दुनियाभर में ब्लू व्हेल चैलेंज नामक वीडियो गेम बच्चों की जान ले रहा है। क्या इसका इंटरनेट एडिक्शन से संबंध है? पूछने पर यतनपाल सिंह बलहारा बताते हैं कि इसका सीधा संबंध तो नहीं है लेकिन जो लोग इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, वे इसकी चपेट में आ सकते हैं। ओमप्रकाश बताते हैं कि ब्लू व्हेल का आमंत्रण भेजने वाला समूह ऐसे बच्चों की पहचान करता है जो भावनात्मक रूप से कमजोर होते हैं। वे इस खेल को ऐसे पेश करते हैं जिसमें मौत भी रोमांचक लगने लगती है। इसी के चलते बच्चे जान देने को तैयार हो जाते हैं।

इस खेल में लिप्त बच्चों को जिंदगी के बुरे से बुरे अनुभव से गुजारा जाता है। ये बच्चे चैटरूम बनाकर एक दूसरे से ब्लू व्हेल के बारे में करते रहते हैं। प्रतिमा मूर्ति बताती हैं कि बच्चों को बाहरी गतिविधियों में शामिल कर और अभासी के बजाय वास्तविक व मधुर संबंध बनाकर इन खतरों से कुछ हद तक निपटा जा सकता है।

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