औषधीय पौधों में बैक्टीरिया-रोधी गुणों की पुष्टि

सतुवा, लेमन-ग्रास, चिरायता और दारु-हरिद्रा जैसे औषधीय पौधे भी बैक्टीरिया-जनित बीमारियों से लड़ने में मददगार हो सकते हैं।
Credit: Creative Commons
Credit: Creative Commons
Published on

औषधीय पौधों का उपयोग विभिन्न बीमारियों के उपचार में होता रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन में अब यह स्पष्ट हो गया है कि सतुवा, लेमन-ग्रास, चिरायता और दारु-हरिद्रा जैसे औषधीय पौधे भी बैक्टीरिया-जनित बीमारियों से लड़ने में मददगार हो सकते हैं। उत्तराखंड स्थित हर्बल रिसर्च एंड डेवेलपमेंट इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में यह बात उभरकर आई है।

अध्ययन के दौरान सतुवा, लेमन-ग्रास, चिरायता और दारु-हरिद्रा की जैव-प्रतिरोधक क्षमता का पता लगाने के लिए इन पौधों के अर्क का परीक्षण साइट्रोबैक्टर फ्रींडी, एश्केरिशिया कोलाई, एंटरोकोकस फैकैलिस, सैल्मोनेला टाइफीम्यूरियम, स्टैफाइलोकोकस ऑरिस और प्रोटिस वल्गैरिस नामक बैक्टिरिया पर किया गया था। इनमें से सतुवा, लेमन-ग्रास, चिरायता और दारु-हरिद्रा में बैक्टिरिया-रोधी गुण पाए गए हैं। यह अध्ययन हाल में करंट साइंस शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार “चिरायता, दारु-हरिद्रा एवं सतुवा का अर्क और लेमन-ग्रास ऑयल को बैक्टीरिया की कॉलोनी बनाने की गतिविधियों को नियंत्रित करने में कारगर पाया गया है। बैक्टिरिया-जनित रोगों के उपचार के लिए इस अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग औषधीय पौधों की परखी जा चुकी प्रजातियों से नई दवाएं विकसित करने में कर सकते हैं।”  

अध्ययनकर्ताओं की टीम में शामिल डॉ. विनोद कुमार बिष्ट के अनुसारपौधों में पाए जाने वाले कुछ खास सक्रिय तत्वों में बैक्टिरिया-रोधी गुण होते हैं, जो सुरक्षित एवं सस्ता होने के साथ-साथ रासायनिक दवाओं के मुकाबले ज्यादा प्रभावी साबित हो सकते हैं। लेकिन अभी यह समझा नहीं जा सका है कि पौधों में मौजूद ये तत्व कौन-से हैं और बैक्टीरिया के खिलाफ कैसे काम करते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में अभी अधिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है। ऐसा करने से औषधीय पौधों के उपयोग से बैक्टिरिया-रोधी दवाओं के निर्माण में मदद मिल सकती है।

अध्ययन में चिरायता के अर्क की एक निश्चित मात्रा को साइट्रोबैक्टर फ्रींडी, एश्केरिशिया कोलाई, एंटरोकोकस फैकैलिस बैक्टिरिया के प्रति प्रतिरोधी पाया गया है। इसी तरह दारु-हरिद्रा नामक औषधीय पौधे के अर्क में भी साइट्रोबैक्टर फ्रींडी, एंटरोकोकस फैकैलिस, स्टैफाइलोकोकस ऑरिस के प्रति प्रतिरोधी गुण पाए गए हैं। सतुवा के अर्क को भी स्टैफाइलोकोकस ऑरिस के उपचार मे असरदार पाया गया है। जबकि लेमन-ग्रास तेल एश्केरिशिया कोलाई, एंटरोकोकस फैकैलिस और स्टैफाइलोकोकस ऑरिस बैक्टिरिया के कारण होने वाली बीमारियों के उपचार में कारगर साबित हो सकता है।

भारत समेत अन्य विकासशील देशों में 50 प्रतिशत से अधिक मौतों के लिए बैक्टिरिया-जनित बीमारियों को जिम्मेदार माना जाता है। जिन बैक्टिरिया का इस शोध में परीक्षण किया गया है, उनके कारण मूत्रमार्ग का संक्रमण, घाव में संक्रमण, हृदय वॉल्वों की सूजन, मुंहासे, फोड़े, निमोनिया, अग्नाश्य, यकृत एवं पित्ताशय का संक्रमण, मस्तिष्कशोथ और डायरिया जैसी बीमारियां हो सकती हैं। अध्ययन में शामिल बैक्टिरिया के नमूने चंडीगढ़ स्थित सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान से प्राप्त किए गए थे। अध्ययनकर्ताओं की टीम में डॉ. बिष्ट के अलावा बीर सिंह नेगी, अरविंद के. भंडारी, राकेश सिंह बिष्ट और जगदीश सी. शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in