- क्षमा शर्मा -
चांद पर लैंड रोवर उतरा और रोवर अठखेलियां करने लगा, वहां के गड्ढों की तस्वीरें दिखाई देने लगीं, लगातार उल्कापात की बात होने लगी, वहां के अलग-अलग तापमान को बताया जाने लगा, तो सोशल मीडिया और बहुत- सी जगह बहस शुरू हो गई कि अब कोई भी चांद जैसा मुखड़ा नहीं कहेगा। न उपमा, न उपमान चांद से दिए जाएंगे। न कोई अपनी महबूबा को देखकर कहेगा कि चांद जैसी सुंदर दिखती हो। ये सब बातें अब गप्प मान ली जाएंगी। कोई इन पर विश्वास नहीं करेगा। क्योंकि चांद पर न जीने लायक परिस्थितियां हैं , न वहां हवा है, पानी भी उस तरह से नहीं जैसे कि धरती पर।
चांद पर जमीन ऊबड़-खाबड है, वहां कोई ऐसा वातावरण भी नहीं जिसमें मनुष्य जी सके, यहां तक कि चलना भी दूभर है, इन बातों को तो हम तभी से जानते हैं जब से मनुष्य के पहले कदम वहां पड़े। तब से अब तक दशकों बीत गए, लेकिन कवियों लेखकों को चांद उसी तरह लुभाता रहा। इस जानकारी से किसी की कल्पना में कोई फर्क नहीं पड़ा। वे कहते ही रहे चांद मेरा दिल चांदनी हो तुम। अब भी ऐसा कुछ होगा, कहा नहीं जा सकता। आम आदमी के लिए भी न तो चांदनी की शीतलता बदल जाएगी न पूर्णिमा के चांद को निहारने का सुख ही। न चांद से जुड़े मिथ ही।
ऐसा ही अगर होता तो करवा चौथ जैसा उत्तर भारतीय त्योहार इन दशकों में अखिल भारतीय न बन जाता। कह सकते हैं कि इसे फिल्मों और मीडिया ने लोकप्रिय किया। लेकिन यह भी तो सच है कि चांद की पूजा करने वाला स्त्रियों की संख्या उनके शिक्षित-दीक्षित होने के बावजूद बढ़ती ही गई।
चैनल्स इस दिन लगातार बताते भी रहते हैं कि चांद दिख गया कि नहीं दिखा। जो चैनल्स चंद्रयान की लैंडिंग को कई दिन तक गाते-बजाते रहे, वे ही आने वाले दिनों में करवा चौथ का लाइव प्रसारण दिखाएंगे। जाहिर है कि वे किसी वैज्ञानिक चेतना के मुकाबले अपने दर्शकों की बढ़ोत्तरी और टीआरपी की चिंता करेंगे। न ही आने वाले दिनों में लोग ईद बिना चांद देखे मनाने लगेंगे, न ही ईद का चांद मुहावरा ही बदल जाएगा।
वैसे भी जिन्होंने ईद का चांद देखा है, वे बता सकते हैं कि वह कितना सुंदर दिखता है। इसके अलावा शिव जी के मस्तक पर जो चांद है, वह भी वहां से नहीं हट जाएगा। न ही लोग चांद को देखकर जो पूजा-पाठ करते हैं , उस में कोई बदलाव होगा। क्योंकि यथार्थ जिसे विज्ञान और तर्क भी कहते हैं और कल्पना में एक दूरी होती है। वे कभी एकमएक नहीं होते। लेकिन जीवन में यथार्थ भी रहता है और कल्पना की उड़ान भी। बल्कि कल्पना न हो तो यथार्थ से भी हमारा सामना न हो। बहुत से वैज्ञानिक आविष्कार हमारी कल्पना की उड़ान की उपज ही हैं। मशहूर फ्रेंच लेखक ज्यूल्स वर्न के बारे में कहा जाता है कि उनके उपन्यास- फ्राम द अर्थ टु द मून -में ही सबसे पहले स्पेस शिप की कल्पना की गई थी।
लोगों ने चिड़ियों को उड़ता न देखा होता तो शायद हवाई जहाज भी न बनते। यह न सोचा गया होता कि यदि चिड़ियां आसमान में उड़ सकती हैं तो मनुष्य क्यों नहीं।
कई बार सोचती हूं कि पूर्णिमा के दिन जो ज्वार भाटा आता है, मानसिक रोगियों के लिए आफत भी आखिर चांद के गड्ढों का या तमाम खोजों का उन पर क्या असर पड़ेगा। वहां के तापमान को जानकर क्या चांद का हिमांशु नाम बदल दिया जाएगा।
जब भी चांद की बात होती है, हर धरती वासी को वह एक कोमल सी चीज लगती है। यों भारतीय वैज्ञानिकों ने बहुत पहले चांद के बारे में कुछ-कुछ वैसी ही बातें कही थीं, जो चंद्रयान आदि बताते हैं। बचपन की बात है। दादी की मृत्यु हो गई थी। तब रोते-रोते मां से पूछा-दादी कहां गई। मां ने कहा –दादी कहीं नहीं गई हैं। वह तो चांद पर रहने चली गई हैं। वहीं से हम सबको देखती हैं। यह सुनकर मन को बहुत राहत मिली कि बेशक दादी दूर चली गई हैं, लेकिन वह कहीं तो हैं। वहां से हमें देख भी रही हैं। लेकिन मनुष्य के पहले कदमों के बाद जब खबरें आने लगीं कि चांद पर तो कुछ भी नहीं है, वहां तो कोई रह ही नहीं सकता, तो दिल टूट गया। रोना आने लगा। आखिर मां ने तो कहा था कि दादी वहां हैं।
चाचा भी वहीं होंगे। बचपन में गुजरे भाई भी नाना, मामा, बाबा, नानी सब वहां होंगे। कहां गए सब। कभी-कभी सचाई से सामना मन को बहुत व्यथित भी करता है। और बाल मन को तो कुछ ज्यादा ही क्योंकि बच्चे हमेशा कल्पना की दुनिया में रहते हैं।
वही दुनिया उनके लिए सच भी होती है। बचपन का अर्थ ही कल्पना और अपनी मनमर्जी से दुनिया का निर्माण भी है।
सत्तर के दशक की बात है तब शायद दसवीं में पढ़ती थी। फौजी भाइयों के लिए विविध भारती पर जयमाला कार्यक्रम आता था।
इसे कोई न कोई मशहूर व्यक्ति या सेलिब्रिटी पेश करते थे। उन्हीं दिनों क्रिकेट के महान खिलाड़ी सुनील गावस्कर का विवाह मार्शनील मेहरोत्रा से हुआ था। तभी उन्होंने जयमाला कार्यक्रम पेश किया था। अपनी पत्नी को समर्पित करते हुए गाना सुनवाया था-चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था, हां तुम बिल्कुल वैसी हो, जैसा मैंने सोचा था।
सोचें कि वहां चांद की किसी बदसूरती का जिक्र नहीं था। यह कार्यक्रम मनुष्य के चांद पर कदम रखने के कई साल बाद प्रसारित हुआ था। सच तो यह है कि चांद माने ही सुंदरता है, कोमलता है, जीवन के उजले पक्ष हैं। विज्ञान जो कहता है , वह अपनी जगह है लेकिन पब्लिक परसेप्शन अपनी जगह।
चांद के इस उजले पक्ष को हमारे संस्कृत साहित्य, हिंदी साहित्य और फिल्मों ने भी खूब जगह दी है। चांद का अर्थ ही प्रेम और रोमांस है। हिंदी फिल्मों का भी मुख्य थीम यही तो है। और ज्योतिष में तो मन का स्वामी ही चंद्रमा है। इसलिए मन को स्वस्थ रखने के लिए चांद की आराधना, मंत्र और पूजा की बात की जाती है। चांद समुद्र मंथन से निकला था, इसलिए चांद को खुश रखने के लिए समुद्र से निकला सफेद मोती भी पहनाया जाता है। चांद का रंग सफेद ही माना जाता है।
इस लेख को लिखते वक्त लगातार सुने गए फिल्मी गाने कानों में बज रहे हैं। चंदा मामा दूर के याद आ रहे हैं। आप खाएं थाली में मुन्ने को दें प्याली में। ऐसे ही इक रात में दो-दो चांद खिले, या कि चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो।
ऐसे ही धीरे-धीरे चल चांद गगन में, खोया-खोया चांद खुला आसमान , आंखों में सारी रात जाएगी, हमको भी कैसे नींद आएगी, चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, ये चांद सा रोशन चेहरा, चेहरे का रंग सुनहरा,चंदा रे चंदा कभी तो जमीन पर आकर बैठेंगे,चांद ने कुछ कहा, रात ने कुछ कहा,जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला,चांद छुपा बादल में, चंदा मामा सो गए, सूरज चाचू जागे। इन गानों में मनुष्य और चांद के रिश्तों को सहेजा गया है, जो शीतलता और उजाले का पर्याय हैं।
चांद को मामा कहना भी यानि कि मां से रिश्ता। मां माने हमारे जीवन का अर्थ, कोमलता, हमारे सुख-दुःख, जीवन की खुशियां, जीने के मायने। चांद माने प्रेम, प्रेम की शिद्दत, उसे महसूसना, महबूब से मिलने की कोमल इच्छाएं। महबूब में चांद को देखना, यही तो प्रेम की सबसे अच्छी अवस्था है।
इस मामले में चंद्रयान जब छोड़ा गया, तो इसरो की तरफ से जो संदेश आए उन पर भी गौर करना चाहिए। वे भी कल्पना और मिठास से ओत-प्रोत थे। धरती वासियों के लिए चंद्रयान की तरफ से संदेश-मैं चांद पर पहुंच गया और आप भी। रोवर का लैंडर से पूछना- कैन आई गो फार ए वाक, यस , बट कीप इन टच, रोवर की उछलकूद जैसे कोई बच्चा खेल रहा हो और मां उसे प्रेम से निहार रही हो। इन्हीं दिनों रक्षाबंधन पड़ा था। तो एक कार्टून भी बहुत लोकप्रिय हुआ। जिसमें धरती चंद्रयान की राखी चांद को बांध रही थी, आखिर धरती का भाई ठहरा। बहन और भाई के रिश्ते की इससे अच्छी और कौन सी व्याख्या हो सकती है, जिसमें विज्ञान भी है, लोककथाएं भी हैं और कल्पना का जादू भी है। लोककथाओं में तो चांद ही चांद है।
ऐसे में यदि ये मान लें कि अब जब विज्ञान लगातार साबित कर रहा है कि चांद की कोमलता का कोई मायने नहीं है तो क्या सचमुच ऐसा हो जाएगा। शायद नहीं। जीवन से कोमल भावनाएं अगर निकाल दी जाएं , सिर्फ सच और यथार्थ की बात ही की जाए तो वह जीवन कितना नीरस होगा। विज्ञान अपनी ऊंचाइयां छूता रहेगा। नए-नए रहस्य हमारे सामने आते रहेंगे, मगर कल्पना की मनोरम दुनिया भी बनी रहेगी। वहां भी हम विचरते रहेंगे। चांद को देखकर तमाम ताने-बाने बुनेंगे। ये सब किसी हिंसा या नफरत के लिए प्रेमिल दुनिया के लिए होगा।
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं )