मंगल ग्रह तेजी से अपने बाह्य वातावरण को खो रहा है। यह जानकारी इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन (मॉम) और नासा के मार्स आर्बिटर मार्स एटमॉस्फियर एंड वोलेटाइल इवोल्यूशन (मावेन) द्वारा भेजी गई तस्वीरों में सामने आई है। वैसे तो मंगल ही नहीं पृथ्वी सहित सौर मंडल के अन्य ग्रह भी लगातार अपने वायुमंडल के बाहरी वातावरण को खो रहे हैं, लेकिन मंगल में यह बहुत तेजी से हो रहा है। जिसके लिए दो साल पहले जून-जुलाई 2018 में आए धूल के तूफान को जिम्मेवार माना जा रहा है, जिसके चलते मंगल का ऊपरी वायुमंडल गर्म हो गया था।
किसी ग्रह के बाहरी वातावरण का कितना नुकसान होगा यह उसके आकार और ऊपरी वायुमंडल के तापमान पर निर्भर करता है, चूंकि मंगल, पृथ्वी की तुलना में बहुत छोटा है इसलिए यह बदलाव बड़ी तेजी से सामने आ रहा है। हालांकि नासा के अनुसार वातावरण को होने वाला यह नुकसान ऊपरी वायुमंडल के तापमान में आ रहे बदलावों पर भी निर्भर करता है। इसके शोध से जुड़े नतीजे हाल ही में अमेरिकन जियोफिजिकल यूनियन के जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च- प्लैनेट्स में प्रकाशित हुए हैं।
जून 2018 में मंगल पर आया था धूल का तूफान
भारत ने मार्स ऑर्बिटर मिशन जिसे मंगलयान के नाम से भी जाना जाता है, उसे 5 नवम्बर 2013 को मंगल पर भेजा था। जिसका एक मकसद मंगल ग्रह के ऊपरी वायुमंडल पर सौर हवा, विकिरण और बाह्य अंतरिक्ष की गतिशीलता का अध्ययन करना था। यह उपग्रह आज भी मंगल ग्रह की तस्वीरों को धरती पर भेज रहा है।
इसरो द्वारा दी गई जानकारी से पता चला है कि "जून 2018 के पहले सप्ताह में मंगल पर एक बड़ा धूल का तूफान आया था, जो जुलाई 2018 के पहले सप्ताह तक बढ़ता ही चला गया था। इस तूफान ने वहां के ऊपरी वायुमंडल को काफी गर्म कर दिया था। जिस वजह से मंगल ग्रह का बाह्य वातावरण और अधिक ऊंचाई पर पहुंच गया था।
ग्लोबल डस्ट स्टॉर्म और वातावरण के गर्म होने से वातावरण में जो विस्तार हुआ उससे मंगल के वायुमंडल का एक हिस्सा बड़ी तेजी से एक्सोबेस ऊंचाई (जो कि 220 किमी पर स्थित है) तक पहुंच गया था। एक बार जब वायुमंडल एक्सोबेस ऊंचाई पर पहुंच जाता है तो गर्म गैसों के उसके ऊपर और अधिक ऊंचाई तक जाने की संभावना बढ़ जाती है। जिससे वायुमंडल बाद में बाहरी अंतरिक्ष में भी जा सकता है।
शोधकर्ताओं को मंगल में इतनी दिलचस्पी क्यों है
दूरी के लिहाज में मंगल हमारे सौरमंडल में सूर्य से चौथा ग्रह है, जोकि आकार में पृथ्वी से लगभग आधा है। पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम प्रतीत होती है, यही वजह है कि इसे "लाल ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। गौरतलब है कि सौरमंडल के दो तरह के ग्रह होते हैं - पहला "स्थलीय ग्रह" जिनमें जमीन होती है और दूसरे "गैसीय ग्रह" जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है। पृथ्वी की ही तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है।
मंगल पर किए गए पिछले शोधों से पता चला है कि इस ग्रह पर पानी के साक्ष्य मौजूद हैं। ऐसे में वहां जीवन के होने की संभावनाएं काफी बढ़ जाती है। यही वजह है कि शोधकर्ता इस ग्रह के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं।