दवा प्रतिरोधी मलेरिया का मुकाबला कर सकते हैं पारंपरिक औषधीय पौधे: शोध

औषधीय पौधे की पत्तियों या जड़ों से बने पेय सर्दी या फ्लू, सिरदर्द या पेट में दर्द और कई अन्य बीमारियों के इलाज में मदद कर सकते हैं
बौने लैब्राडोर चाय के पौधे की पत्तियों में एक ऐसा तेल होता है जो मलेरिया से लड़ने में मदद कर सकता है। साभार: एसीएस ओमेगा पत्रिका
बौने लैब्राडोर चाय के पौधे की पत्तियों में एक ऐसा तेल होता है जो मलेरिया से लड़ने में मदद कर सकता है। साभार: एसीएस ओमेगा पत्रिका
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आधुनिक चिकित्सा का अधिकांश भाग पारंपरिक, स्वदेशी प्रथाओं से उत्पन्न हुआ हैं। ये रीति-रिवाज आज भी जीवित हैं और वे कई तरह की बीमारियों को दूर करने में मदद कर सकते हैं। शोधकर्ताओं की एक टीम ने कनाडा के नुनाविक में उपयोग किए जाने वाले एक विशेष औषधीय लैब्राडोर चाय के पौधे की पत्तियों में यौगिकों की पहचान की है। उनमें से एक मलेरिया के परजीवी के खिलाफ मुकाबला करने की क्षमता रखता है।

लैब्राडोर चाय के कई, निकट संबंधी पौधे हैं जो सभी रोडोडेंड्रॉन वंश से संबंध रखते हैं। ये अजीब सी पत्तियों वाली छोटी, सदाबहार झाड़ियां हैं। जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, आमतौर पर अमेरिका और कनाडा में स्वदेशी लोगों द्वारा इनका उपयोग हर्बल चाय बनाने के लिए किया जाता है। इनकी पत्तियों या जड़ों से बने पेय सर्दी या फ्लू, सिरदर्द या पेट में दर्द और कई अन्य बीमारियों के इलाज में मदद कर सकते हैं।

पिछले अध्ययनों से पता चला है कि पौधों से निकाले गए आवश्यक तेलों में रोगाणुरोधी गुण होते हैं, जो एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगाणुओं से लड़ने में मदद कर सकते हैं। बौना लैब्राडोर चाय, या रोडोडेंड्रोन सबआर्कटिकम, एक विशेष रूप से सुगंधित काढ़ा बनाने में काम आता है और सबआर्कटिक की कठोर परिस्थितियों में बढ़ता है। यह आर्कटिक सर्कल के दक्षिण में अलास्का से साइबेरिया तक पाया जाता है।

एक पारंपरिक दवा के रूप में इसके सामान्य उपयोग के बावजूद, इसकी रासायनिक संरचना और संभावित रोगाणुरोधी अनुप्रयोगों का अपेक्षाकृत अध्ययन नहीं किया गया है। इसलिए, नॉरमैंड वोयर और सहकर्मी पहली बार आर. सबआर्कटिकम के बारे में जानना चाहते थे और इसकी एंटीपैरासिटिक गतिविधि का परीक्षण करना चाहते थे।

टीम ने उत्तरी क्यूबेक के एक क्षेत्र नुनाविक से आर. सबआर्कटिकम के पत्तों को इकट्ठा किया। शोधकर्ताओं ने 53 यौगिकों की पहचान करने के लिए पत्तियों से आवश्यक तेल निकाला और गैस क्रोमैटोग्राफी, मास स्पेक्ट्रोमेट्री और फ्लेम आयनाइजेशन डिटेक्शन के साथ इसका विश्लेषण किया।

इससे यह पता चला है कि 64.7 फीसदी तेल में एस्केरिडोल शामिल था, इसके बाद पी-सीमेन 21.1 फीसदी था। यौगिकों के इस मिश्रण को पहले निकट से संबंधित उत्तरी अमेरिकी लैब्राडोर चाय की किस्मों में दर्ज नहीं किया गया है, हालांकि यह यूरोप और एशिया में होने वाली उप-प्रजातियों में पाया गया है।

यह देखने के लिए कि क्या इस आवश्यक तेल में मलेरिया-रोधी गुण थे, टीम ने प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम, मलेरिया पैदा करने वाले परजीवी के दो वेरिएंट को तेल या सिर्फ एस्केरिडोल में डाला। प्रयोग में, इनमें से एक नस्ल मलेरिया-रोधी दवाओं के लिए प्रतिरोधी थी।

आंकड़ों ने दिखाया कि एस्केरिडोल मुख्य रूप से वह चीज थी जो परजीवी के दोनों वैरिएंटों के खिलाफ काम करता था, जो अन्य, एंटीपैरासिटिक पारंपरिक दवाओं के साथ भी असरदार है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह काम पारंपरिक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले पौधों की जांच और सुरक्षा के महत्व को उजागर करता है, खासतौर पर उस जलवायु से जिसमें आए बदलाव ने इसे और कठोर बना दिया है। यह शोध एसीएस ओमेगा में प्रकाशित हुआ है। 

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