(24 लाख-14 लाख वर्ष पूर्व)
1960 में, वैज्ञानिक लुई व मेरी लीकी के नेतृत्व में शोधकर्ताओं को तंजानिया में एक प्रारंभिक मानव के जीवाश्म अवशेष मिले। इन जीवाश्मों में वानरों की तुलना में थोड़ा बड़ा मस्तिष्क था। इस साइट के पास हज़ारों पत्थर के औजार मिले थे और वैज्ञानिकों को लगा कि ये औजार इन्हीं प्रागैतिहासिक मानवों ने बनाये होंगे। अतः उन्होंने इस प्रजाति का नाम “हैंडी मन” अथवा होमो हैबिलिस रखा। माना जाता है कि होमो हैबिलिस लगभग 24 लाख वर्ष पहले विकसित हुआ था और इसे वानरों से विकसित होमो जीनस का पहला सदस्य माना जाता है। यह मानव आकार में छोटा था और इसका वजन लगभग 31 किलो था। यह साढ़े तीन से साढ़े चार फिट लम्बा रहा होगा। हम यह भी जानते हैं कि होमो हैबिलिस जटिल औजार बनाने में सक्षम थे। वे इन औजारों से जानवरों का शिकार भी किया करते थे। शुरुआत के लगभग 10 लाख वर्षों तक वे हमारे जीनस के सदस्य थे।
(18.9 लाख वर्ष से से 110,000 वर्ष पूर्व)
डच सर्जन यूजीन डबॉइ ने 1891 में इंडोनेशिया में पहले होमो इरेक्टस जीवाश्म की खोज की थी। 1894 में, डुबोइ ने इसे पिथेकैन्थ्रोपस इरेक्टस का नाम दिया। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, होमो इरेक्टस पहली ज्ञात मानव प्रजाति है जो पूरी तरह से सीधा खड़ा होने में सक्षम थी। होमो इरेक्टस के शारीरिक अनुपात आधुनिक मानवों जैसे हैं: धड़ की तुलना में छोटे हाथ, और लंबे पैर जो पेड़ों पर चढ़ने के बजाय चलने और दौड़ने के लिए अनुकूलित हैं। इसके आलावा यह पहली मानव प्रजाति है जिसका मस्तिष्क वानरों की तुलना में काफी बड़ा है। उनके दांत भी छोटे थे और संभव है कि इससे उन्हें मांस खाने में आसानी होती होगी। लंबे शरीर और बड़े दिमाग को पर्याप्त ऊर्जा देने में प्रोटीन का बड़ा योगदान रहा होगा। होमो इरेक्टस के अवशेषों के वैज्ञानिकों को कैंप फायर और चूल्हे जैसी चीजों के भी अवशेष मिले हैं और संभव है कि वे अपना भोजन पकाकर खाने वाली पहली प्रजाति रहे हों। खाना पकाना एक विशिष्ट मानव गतिविधि जिससे हमें आसानी से पचने योग्य भोजन मिला और हमारे दिमाग एवं शरीर को बढ़ने के लिए पर्याप्त ऊर्जा मिली। एच. इरेक्टस एक बहुत ही सफल प्रजाति थी। वे हमसे लगभग नौ गुना लंबे समय तक इस पृथ्वी पर रहे
(19 लाख से 18 लाख वर्ष पूर्व)
होमो रुडोल्फेंसिस के बारे में बहुत कम जानकारी है। रिचर्ड लीकी की टीम को 1972 में रूडोल्फ झील के तट के पास होमो रुडोल्फेंसिस जीवाश्म मिले थे। रूसी वैज्ञानिक वी.पी. अलेक्सेव ने 1986 में इस प्रजाति का नाम होमो रुडोल्फेंसिस रखा। एच. रुडोल्फेंसिस का ब्रेनकेस होमो हैबिलिस की तुलना में काफी बड़ा था जो इस बात का संकेत देता है कि है कि यह एक मानव प्रजाति थी। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है कि इसके कमर और कंधे के छोटे आकार और समानता के कारण, इसे होमो के एक करीबी रिश्तेदार, जीनस आस्ट्रेलोपिथेकस के साथ बेहतर समायोजित किया जा सकता है।
(700,000 से 200,000 साल पहले)
1908 में जर्मनी के हाइडलबर्ग के पास माउर गांव में एक मजदूर को एक जबड़ा मिला था जिसमें एक प्री मोलर और दो मोलरों को छोड़कर सारे दांत मौजूद थे। जर्मन वैज्ञानिक ओटो शॉनटेनसैक ने इसे होमो हाइडलबर्गेंसिस का नाम दिया था। स्मिथसोनियन की वेबसाइट ह्यूमन ओरिजिन्स के अनुसार लगभग 7 लाख साल पहले, होमो हाइडलबर्गेंसिस (कभी-कभी इन्हें होमो रोड्सिएन्सिस भी कहा जाता है) यूरोप और पूर्वी अफ्रीका में विकसित हुए। वैज्ञानिकों को लगता है कि ये छोटे कद और चौड़े शरीर वाले जीव ठंडी जगहों पर रहने वाले पहले मनुष्यों में से थे। इनके अवशेषों के साथ घोड़ों, हाथियों, दरियाई घोड़ों और गैंडे जैसे जानवरों के अवशेष भी मिले हैं जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बड़े जानवरों का भालों से शिकार करना सबसे पहले इन्होने ही शुरू किया था। मौसम से बचाव के लिए इन्होने आग का इस्तेमाल करना सीख लिया था। इसके अलावा वे पत्थर और लकड़ियों से घर भी बनाते थे। अधिकांश वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि हाइडलबर्गेंसिस की अफ्रीकी शाखा ने ही हमारी अपनी प्रजाति, होमो सेपियन्स को जन्म दिया।
(100,000 से 50,000 वर्ष पूर्व)
होमो फ्लोरेसेंसिस के अवशेष 2003 में फ्लोर्स द्वीप, इंडोनेशिया पर पाए गए थे। एक संयुक्त इंडोनेशियाई-ऑस्ट्रेलियाई शोध दल को फ्लोर्स द्वीप की लिआंग बुआ गुफा में इसके अवशेष मिले थे। इसके आलावा इस प्रजति के अवशेष कहीं और नहीं मिले हैं। होमो फ्लोरेसेंसिस के अवशेषों के साथ कुछ पत्थर के औजार और बौने हाथी एवं कोमोडो ड्रेगन भी मिले थे। यह संभव है कि बाहरी दुनिया से कट जाने के कारण इनका कद (लगभग तीन फुट छः इंच)और दिमाग का आकार छोटा रह गया हो। यह दरसल इन्सुलर ड्वारफिज्म के सिद्धांत के अनुरूप है जिसके मुताबिक अगर किसी द्वीप का बाहरी दुनिया से संबंध कट जाए तो उसके निवासियों का आकार घटने लग जाता है। होमो फ्लोरेसेंसिस पत्थर के औजार बनाते थे और उनके द्वारा हाथियों का शिकार किये जाने के भी प्रमाण मिले हैं। ये हाथी भी आकार में छोटे थे जो इन्सुलर ड्वारफिज़्म के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
(400,000 - 40,000 वर्ष पूर्व)
वाशिंगटन विश्वविद्यालय में कार्यरत जाने माने निएंडरथल एक्सपर्ट एरिक ट्रिंकॉस के अनुसार निएंडरथल हमारे सबसे करीबी रिश्तेदार हैं। निएंडरथल कद में हमसे छोटे और गठीली बनावट के थे लेकिन उनके दिमाग हमारे ही आकर के या हमसे कुछ बड़े ही थे। निएंडरथल एक कठिन जीवन जीते थे। उनके अवशेषों में कई टूटी हड्डियां मिली हैं जिससे पता चलता है कि वे बड़े जानवरों के शिकार से हमेशा सफल होकर नहीं लौटते थे। वे यूरोप और दक्षिणपूर्वी और मध्य एशिया में अत्यंत ठंडे वातावरण में रहते थे। मौसम से बचाव के लिए वे आग तो जलाते ही थे साथ ही वे ठीक ठाक आश्रय भी बना लेते थे। इसके अलावा वे हड्डी से तैयार की गई सुई जैसे जटिल औजारों का उपयोग करके कपड़े सिलना भी सीख गए थे। कई जगहों पर दर्जनों सम्पूर्ण निएंडरथल कंकाल पाए हैं, जिससे पता चलता है कि निएंडरथल अपने मृतकों को दफनाते थे और उनकी कब्रों को याद भी रखते थे। इससे पता चलता है कि निएंडरथल संज्ञानात्मक अथवा कॉग्निटिव प्रक्रियाओं से जुड़े प्रतीकात्मक कार्य करने लगे थे जिसे भाषा की उत्पत्ति का एक चरण माना जाता है।