मंगल ग्रह से इस वक्त एक से बढ़कर एक कौतूहल और जिज्ञासाओं वाली सूचनाएं पृथ्वी पर पहुंच रही हैं। नासा ने अपने ताजा शोध में कहा है कि यदि आप पृथ्वी से कुछ भी संदेश जारी करेंगे तो मंगल ग्रह पर वह तीन मिनट देरी से पहुंचेगा। यह ब्रह्मांड में सबसे तेज चलने वाले प्रकाश की गति के बराबर है। यह मंगल पर इंसानी बस्ती की कल्पना के लिए किया जाने वाला एक कसरत है। बहरहाल मंगल पर इंसानी बस्ती की कल्पना तभी संभव हो पाएगी जब वहां ऑक्सीजन उपलब्ध होगा। आखिर यह कैसे होगा ?
कॉर्बन डाई ऑक्साइड को ऑक्सीजन में बदलने की प्रक्रिया बेहद जटिल और लंबी है। लेकिन क्या सचमुच ऐसा संभव है? मंगल के बेहद पतले वातावरण में 96 फीसदी कॉर्बन डाई ऑक्साइड है और महज 0.1 फीसदी ऑक्सीजन की उपलब्धता है जबकि पृथ्वी के वातावारण में 21 फीसदी ऑक्सीजन है। संसाधनों को चंद्रमा के मुकाबले मंगल तक पहुंचाना काफी दुरूह काम है। ऐसे में मंगल की सतह पर ही ऑक्सीजन मिल सके इसकी व्यवस्था करनी होगी। वैज्ञानिक दावा करते हैं कि ऐसा संभव हो सकता है।
चंद्रमा पर जीवन टिकाया जा सके इसे लेकर सीटू रिसोर्स यूटिलाइजेशन (आईएसआरयू) यानी सतह पर ही संसाधनों का इस्तेमाल करने की तकनीक के कई शोध और प्रयास हुए हैं। इसे अब वैज्ञानिक मंगल पर भी आजमाएंगे और इसमें नासा का पर्सिवियरेंस रोवर साथ देगा।
प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका (पीएनएएस) के 15 दिसंबर, 2020 को प्रकाशित शोधपत्र में बताया गया है कि मंगल पर ब्राइन (खारे पानी) की उपलब्धता के संकेत है और इस ब्राइन से सांस लेने लायक हवा यानी ऑक्सीजन और हाइड्रोजन यानी ईंधन बनाया जा सकता है।
मंगल की सतह पर उतरने वाले रोवर पर्सिवियरेंस रोवर के साथ एक एक्सपरीमेंट भी है जिसे मॉक्सी नाम दिया गया है। मॉक्सी यानी मार्स ऑक्सीजन इन सीटू एक्सपरीमेंट। ऐसा दावा है कि मॉक्सी के जरिए मंगल के वातावरण में ऑक्सीजन और कॉर्बन मोनो ऑक्साइड बना सकता है।
वहीं,अमेरिका में वाशिंग्टन यूनिवर्सिटी की टीम ने हाल ही में एक अध्ययन में यह पाया है कि ब्राइन (खारा पानी) से विद्युत अपघटन (इलेक्ट्रोलासिस) के जरिए ऑक्सीजन और हाइड्रोजन हासिल किया जा सकता है। तो संभव है कि मंगल पर मॉक्सी ऑक्सीजन की व्यवस्था के लिए कदम बढा पाए। लेकिन जरूरत का ऑक्सीजन और ईंधन के लिए हाइड्रोजन दोनों का विकल्प हमारे लिए खुला रहेगा यह अभी नहीं कहा जा सकता।
इंडियन एस्ट्रोलॉजी रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख खगोलजीव वैज्ञानिक पुष्कर गणेश वैद्य ने डाउन टू अर्थ को बताया कि मॉक्सी ऐसा कर सकता है लेकिन यह कितनी मात्रा में कर पाएगा यह अभी देखा जाना बाकी है।
मंगल ग्रह पर पर्सिवियरेंस रोवर अकेला नहीं है। वहां कई देशों की नुमाइंदगी है और उनकी मशीने एक दूसरे से बातचीत भी करती हैं।
अगली कड़ी में पढ़िए मंगल पर किन देशों की मशीनें हैं और वे क्या कर रही हैं ....