बजट में डिजिटल क्रांति का सपना पर सरकार की ही योजना लक्ष्य से बहुत पीछे

देश की ढाई लाख ग्राम पंचायतें पिछले नौ सालों से डिजिटल बनने की प्रक्रिया में हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है
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देश की ढाई लाख ग्राम पंचायतें पिछले नौ सालों से डिजिटल बनने की प्रक्रिया में हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पाया है। अब एक लाख गांवों का डिजिटलीकरण किए जाने की घोषणा कार्यवाहक वित्त मंत्री ने अपने अंतरिम बजट भाषण में की है। मंत्री ने अपने भाषण में कई लोकलुभावन घोषणाओं की सूची में ही डिजिटल इंडिया क्रांति के अंतर्गत यह घोषणा की है।

इसके तहत अगले पांच सालों में देश के एक लाख गांवों को डिजिटल गांव बना दिए जाने की बात कही गई है। लेकिन यहां इस बात को ध्यान में रखना होगा कि यह सरकार गांव के डिजिटलीकरण की बात तो कर रही है लेकिन उसकी स्वयं की भारत नेट परियोजना (2014) जिसके अंतर्गत देश की लगभग ढाई लाख ग्राम पंचायतों में ब्रांडबेंड शुरू किया जाना था, अब तक पूरी नहीं हो पाई है।

ऐसे में एक लाख गांव के डिजिटलीकरण की सरकारी घोषणा कहीं आगामी 2024 को ध्यान में रख कर तो नहीं की गई है। यही नहीं ऐसे में यह भी एक यक्ष प्रश्न है कि केंद्र सरकार इस प्रकार के कथित डिजिटलीकरण प्रौद्योगिकियों के बिनाह पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पैदा करने की बात भी कर रही है। वित्तमंत्री ने अपने बजटीय विजन में यह उम्मीद भी जताई की है कि इससे ग्रामीण औद्योगिकी का विस्तार होगा।    

यहां यह याद रखे जाने की जरूरत है कि देश की ढाई लाख से अधिक ग्राम पंचायतों में ब्रॉडबैंड कनेक्शन पहुंचाने के लिए 2011 में राष्ट्रीय ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क योजना शुरू की गई थी, तब भी यह घोषण की गई थी कि कि इसे पांच सालों में पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन वह योजना अभी अधर में ही है।

इस योजना का केंद्र सरकार ने जमकर प्रचार-प्रसार यह कह कर किया था कि भारतनेट परियोजना (पुरानी योजना का बदला हुआ नाम) विश्व की सबसे बड़ी ग्रामीण ब्रॉडबैंड संपर्क योजना है। इसके माध्यम से गांव का  प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कृषि से संबंधित सेवाओं को आसान व पारदर्शी तरीके से पहुंचाएगा। इतना ही नहीं, गांवों में रह रहे युवाओं को डिजिटलीकरण की मुहिम से जोड़कर ग्रामीण स्तरीय उद्यमी तैयार करने की भी योजना है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19 जुलाई 2017 को इस पूरी परियोजना के लिए 42,068 करोड़ रुपए की मंजूरी दी थी।

वर्तमान सरकार वह सब काम बेहद तेजी से करना चाहती है, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करने की दौड़ में अब सरकार बहुत कुछ पीछे छूटते जा रही है। देर से ही सही, लेकिन इस बात का अहसास दूरसंचार मंत्रालय को होने लगा है।

यही वजह है कि दिसंबर, 2018 के आखिरी हफ्ते में दूरसंचार सचिव अरुणा सुंदरराजन ने भारतनेट परियोजना के तहत गैर-कार्यकारी ब्राडबैंड उपकरणों को ठीक करने में असफल रहने वाले अधिकारियों के कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए थे। सुंदरराजन के पास शिकायत पहुंची थी कि 50 हजार से अधिक ग्राम पंचायतों में ब्राडबैंड उपकरण ठप पड़े हैं।

इसके बाद सुंदरराजन ने यह कदम उठाया। इसके अलावा 4 जनवरी, 2019 को राज्य सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय दूरसंचार मंत्री मनोज सिन्हा ने बताया कि भारतनेट परियोजना के तहत 1,16,618  ग्राम पंचायतों में वाईफाई सेवा तैयार है। इनमें उत्तर प्रदेश के 27,964 पंचायतें भी शामिल हैं, जिनके बारे में दूरसंचार सचिव पिछले दिनों आयोजित एक कार्यक्रम में कह चुकी है कि उत्तर प्रदेश में केवल  151 गांवों में ही ब्रॉडबैंड सेवा का लाभ उठाया जा रहा है। इस कार्यक्रम में उन्होंने साफ तौर पर कहा कि राज्यों में व्यवहारिक तौर पर कोई उपयोग नहीं हो रहा है।  

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