साक्षात्कार: निगरानी हमें अपने ब्रह्मांडीय जड़ों को तलाशने में मदद करेगी

जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप से जुड़े एवी लोएब से बातचीत
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई
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हाल ही में जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (जेडब्ल्यूएसटी) ने ब्रह्मांड में अपना 18वां गोल्डन मिरर खोला और पहली तस्वीर कैद की। ये तस्वीर सूरज जैसे तारे की है जिसे डीएच-84406 कहा जाता है। ये तारा पृथ्वी से 260 प्रकाश वर्ष दूर है। इस टेलिस्कोप को पिछले साल 25 दिसम्बर को लाॅन्च किया गया था, जिसने 30 दिनों में पृथ्वी से सूरज की विपरीत दिशा में 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय की और अपने लक्ष्य यानी गुरुत्वाकर्षण के हिसाब से एक स्थिर बिंदु जिसे एल2 कहा जाता है, पर पहुंचा। इस बिंदु से ये टेलिस्कोप सूरज की परिक्रमा करेगा और हेलो परिक्रमा पथ में बने रहने के लिए हर तीन सप्ताह पर अपनी स्थिति बदलेगा।

अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने 30 सालों की मेहनत से और 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च कर इस टेलिस्कोप को तैयार किया है, जिसे दुनिया का सबसे आधुनिक स्पेस ऑब्जर्वेटरी कहा जाता है। इस टेलिस्कोप का नामकरण नासा के दूसरे प्रशासक जेम्स ई वेब के नाम पर किया गया है और ये इन्फ्रारेड लाइट पर आधारित है तथा 135 लाख साल पहले तक की घटनाओं को देख सकता है। ये वो वक्त है, जब बड़ा धमाका (बिग बैंग) हुआ था। इसमें अकल्पनीय गर्म और सघन बिंदु में विस्फोट हुआ था और ब्रह्मांड अस्तित्व में आया था। नासा का कहना है कि इस टेलिस्कोप को बनाने का उद्देश्य आकाशगंगा और सौर प्रणाली बनने की पड़ताल करना है।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में साइंस के फ्रैंक बी बैर्ड जूनियर प्रोफेसर और यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनॉमी विभाग के पूर्व चेयर एवी लोएब साल 1990 में जेडब्ल्यूएसटी के बनने की शुरुआती चरण में इससे जुड़े हुए थे। उस समय इस टेलिस्कोप को नेक्स्ट जेनरेशन स्पेस टेलिस्कोप कहा जाता था। उन्होंने अक्षित संगोमला के साथ बातचीत में कहा कि आकाशगंगा के बनने का अध्ययन आज के जीवन को समझने में सहायक हो सकता है। पेश हैं उनसे बातचीत के अंश ...

जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (जेडब्ल्यूएसटी) अब तक बनी सभी ऑब्जर्वेटरी में सबसे अत्याधुनिक है। इस टेलिस्कोप में ऐसा क्या है, जो इसे हब्बल टेलिस्कोप और दूसरे पुरानी टेलिस्कोप से अलग करता है?

सबसे पहली बात यह कि जेडब्ल्यूएसटी को बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण था क्योंकि इसे खोलकर इसके सोलर पैनलों पर काम करना पड़ता था। लेकिन इसके सामने का हिस्सा किसी भी तरह से सूरज की दिशा की तरफ नहीं रखा जा सकता था क्योंकि इसके तापमान को ठंडा करने की जरूरत पड़ती थी। अतः जेडब्ल्यूएसटी को पृथ्वी की कक्षा से दूर रखने की जरूरत पड़ी थी। यही वजह है कि जेडब्ल्यूएसटी को खास जगह पर रखा गया है। ये लगरांज प्वाइंट पर है, जो पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर है और सूरज की कक्षा में पृथ्वी की दिशा से उल्टी दिशा में देखता है। हालांकि हब्बल परिक्रमा कक्षा के ज्यादा नजदीक पृथ्वी से करीब 579 किलोमीटर ऊपर था। जब जरूरत पड़ती थी, हम लोग वहां पहुंच जाते थे और मरम्मत कर देते थे। जेडब्ल्यूएसटी लैगरेंज प्वाइंट पर है और इसके साथ ऐसा करना असंभव है।

पुरानी आकाशगंगा को देखने के लिए हमें बड़े टेलिस्कोप की जरूरत है जो इन्फ्रारेड में संवेदनशील हो। ये आकाशगंगा हमसे काफी दूर है और हम वो प्रकाश देखते हैं, जो बहुत पहले, बहुत दूर से उनसे उत्सर्जित हुआ था। ब्रह्मांड फैलता है, तो प्रारंभिक आकाशगंगा से निकलने वाली विकिरण की तरंग विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग में खिंच जाती हैं (इसमें सभी विद्युत चुम्बकीय विकिरण की आवृत्तियां शामिल हैं, जो ऊर्जा का प्रसार करती हैं और लहरों के रूप में अंतरिक्ष के माध्यम से यात्रा करती हैं)। इस संबंध में 6.5 मीटर व्यास वाला जेडब्ल्यूएसटी, हब्बल के मुकाबले 3.5 फैक्टर से बड़ा है। इसके अलावा दोनों टेलिस्कोप में कुछ अतिव्यापी वेवलेंथ दिखते हैं। लेकिन जेडब्ल्यूएसटी इन्फ्रारेड के प्रति संवेदनशील है और 10एस माइक्रोन की लंबी वेवलेंथ में जाता है, जबकि हब्बल केवल आधा माइक्रोन तक ही जाता है। जेडब्ल्यूएसटी की भी स्पिट्जर स्पेस टेलिस्कोप से समानता है (2003 में लॉन्च किया गया) जो इन्फ्रारेड भी था, लेकिन बहुत कम संवेदनशील और आकार में छोटा था।

जब जेडब्ल्यूएसटी को नेक्स्ट जेनरेशन स्पेस टेलिस्कोप के रूप में विकसित करना शुरू किया गया था, इसका फोकस पुराने आकाशगंगा के अध्ययन पर था। क्या अब इसकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं?

इसे स्थापित करने में कई दशक लग गए हैं, इसलिए दूसरी प्राथमिकताएं भी इससे जुड़ गई हैं। मसलन, दूसरे ग्रहों पर जीवन की संभावनाओं के संकेत या ग्रहों के वे संकेत जो जीवन को समर्थन दे सकते हैं। मौजूद मोलिक्यूल के स्पेक्ट्रोस्कोपिक फिंगरप्रिंट्स के अध्ययन के लिए ग्रहों की आबोहवा और तारों से निकलने वाली रोशनी जिस आबोहवा से होकर गुजरती है, उनमें क्या-क्या तत्व हैं, विज्ञानी ये निष्कर्ष निकालने की भी कोशिश करेंगे और संभवतः ये भी जानेंगे कि यह ग्रह जीवन के लायक है या नहीं।

लेकिन, दुनिया के शुरू के अस्तित्व का अध्ययन अब भी सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है क्योंकि ये हमारे ब्रह्मांडीय जड़ों के निशान तलाशता है। ब्रह्मांड के अध्ययन में सबसे बड़े रहस्यों में एक ये है कि बिग बैंग से पहले क्या हुआ?

आइंस्टाइन का गुरुत्वाकर्षण का नियम बिग बैंग की सिंगुलैरिटी पर जाकर खत्म होता है। हमारे पास वैसा कोई सिद्धांत नहीं है जो क्वांटम तकनीक और गुरुत्वाकर्षण को एक साथ मिलाकर सिंगुलैरिटी की ओर ले जा सके।

कुछ लोग कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड (ब्रह्मांड के शुरुआती चरण से निकला अपशिष्ट विद्युत चुंबकीय विकिरण) की शुरुआत और आकाशगंगा में वितरण के सबूत तलाश रहे हैं। निश्चित तौर पर सवाल ये भी है कि तारे और आकाशगंगा का निर्माण कब और कैसे हुआ। हम मनुष्य का जीवन कार्बन या ऑक्सीजन जैसे भारी तत्वों की वजह से संभव हो सका है, जिसका उत्पादन तारों से होता है न कि बिग बैंग से। इसलिए ब्रह्मांडीय जड़ों की तलाश हमें उस समय में ले जाएगा जब पहला तारा अस्तित्व में आया था और उसने भारी तत्वों से आबोहवा को समृद्ध किया। एक तरह से ये उत्पति की कहानी का वैज्ञानिक संस्करण है।



हम जानते हैं कि जेडब्ल्यूएसटी हमें ब्रह्मांड के शुरुआती दिनों की तरफ ले जाएगा। लेकिन क्या ये अब पृथ्वी के करीब के तारों के बीच की वस्तुओं को देखने में भी मदद करेगा?

पृथ्वी के नजदीक तारों के बीच की पहली वस्तु की खोज हवाई के एक टेलिस्कोप के जरिए की गई थी, जिसका नाम पेनस्टार्स है। इस वस्तु को ओमुआमुआ नाम दिया गया था जिसका हवाई भाषा में मतलब स्काउट या एक दूर का संवदिया है। अंतरिक्ष विज्ञानियों ने सोचा कि ये एक धूमकेतु है। धूमकेतु बर्फीला चट्टान होता है, जो सूरज के नजदीक आता है, तो वाष्प में तब्दील होकर अपने पीछे पंखनुमा धूल तथा गैस छोड़ जाता है, जिसे धूमकेतु-पुच्छ कहा जाता है। धूमकेतु-पुच्छ को हमने ओमुआमुआ के आसपास नहीं देखा, लेकिन अंतरिक्ष विज्ञानी इसे देखना चाहते थे। हालांकि, वे यह जांचने के लिए देखना चाहते थे कि क्या हम स्पिटजर स्पेस टेलिस्कोप के जरिए इसे संवेदनशील ढंग से देख सकते हैं या नहीं। आखिर में हमने वस्तु के इर्द-गिर्द कार्बन आधारित अणु की पहचान करने के लिए काफी सघन वस्तु को रखा, लेकिन कुछ दिखा नहीं।

बल्कि ऊष्मा का भी पता नहीं चला। इसने हमें वस्तु के आकार की ऊपरी सीमा निर्धारित करने की अनुमति दी क्योंकि हम किसी भी पिंड का तापमान सूर्य से उसकी दूरी के फलन के रूप में जानते हैं। ओमुआमुआ से गर्मी का पता नहीं लगने का अर्थ है कि इसका आकार 200 मीटर से कम यानी एक फुटबॉल मैदान के आकार से कम है। स्पिट्जर की तुलना में जेडब्ल्यूएसटी के साथ हम बहुत बेहतर देख पाएंगे और अगले तारों के बीच की वस्तु के आसपास अणुओं के किसी भी निशान की तलाश कर सकते हैं, जो देखने में अजीब लगता है।

सैद्धांतिक रूप में हम ऐसी वस्तु द्वारा इन्फ्रारेड एमिशन से तापमान को भी माप सकते हैं। हमने ओमुआमुआ को सूरज की रोशनी को रिफ्लैक्ट करते हुए भी देखा। यह हर आठ घंटे में गिर रहा था और इसलिए रिफ्लैक्टेड सूर्य के प्रकाश की मात्रा 10 के फैक्टर से बदल गई। इसका अर्थ ये था कि वस्तु का आकार चरम है और सबसे अधिक संभावना है कि सपाट हो। यदि भविष्य में ऐसी ही कोई वस्तु दिखाई देती है तो हम उसे जेडब्ल्यूएसटी की दिशा से देखने की क्षमता पा सकेंगे। ये हमें वो करने की अनुमति देगा जिसे खगोलविद पारालैक्स कहते हैं, जो किसी वस्तु की त्रि-आयामी गति को उच्च परिशुद्धता के लिए अनुमानित करता है। इसलिए ओमुआमुआ जैसी वस्तुओं के गुणों और प्रकृति की पहचान करने के लिए जेडब्ल्यूएसटी बहुत अहम होगा।

विज्ञानियों और शोधकर्ताओं ने ये भी कहा है कि टेलिस्कोप डार्क मैटर और डार्क एनर्जी का रहस्योद्घाटन करने में भी मदद करेगा। ये कैसे होगा?

हमें अब एहसास होता है कि ब्रह्मांड के ज्यादातर मैटर या ऊर्जा दो रूप में होते हैं- एक वो जिसे हम समझते नहीं है। इसे हम डार्क कहते हैं। हम सोचते हैं कि डार्क मैटर उन तत्वों से मिलकर बना है जिसे हमने इस पृथ्वी पर नहीं पाया है। इसलिए हम लोग उनकी तलाश उन कणों को तोड़कर प्राप्त करने या उत्पादन करने की कोशिश कर रहे हैं जिनसे हम परिचित हैं जैसे स्विटजरलैंड में लार्ज हैड्रोन कोलाइडर। बहुत सारे विज्ञानी उम्मीद या आशा करते हैं कि हम सुपरसिमेट्रिक कणों को ढूंढ़ लेंगे, जो डार्क मैटर को बनाता है। ये प्रकृति के इर्द-गिर्द बने रहस्यों को खत्म कर देगा। लेकिन हमें ये अब तक नहीं मिला है। ब्रह्मांड के जीवन के आखिरी आधे हिस्से में एक दूसरा तत्व मास बजट पर हावी है। ये अंतरिक्ष में बने वैक्यूम का ऊर्जा घनत्व या मास घनत्व है, जिसे डार्क एनर्जी कहा जाता है।

हम इसकी प्रकृति भी नहीं समझते। हम ये भी नहीं जानते हैं कि ये कहां से आ रहा है और क्या ये भविष्य़ में कभी लापता भी हो जाएगा। हम वास्तव में एक अनुभव तैयार नहीं कर सकते हैं, जो हमें डार्क एनर्जी या ऊर्जा घनत्व की प्रकृति को दिखाएगा। इसलिए इसके बाद कुछ अधिक सीखने के लिए ये देखना है कि वक्त के साथ ये बदल रहा है अथवा नहीं। ब्रह्मांड विज्ञानी कई विधियों से ब्रह्मांडीय वक्त में डॉर्क एनर्जी के मास घनत्व या ऊर्जा घनत्व में परिवर्तन का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। जेडब्ल्यूएसटी बहुत दूर स्थित तेज प्रकाश उत्पन्न करने वाले तारे को देखकर ब्रह्मांडीय वक्त बनाम ब्रह्मांड के विस्तार दर को मापने में मदद कर सकता है। ये हमें वक्त के साथ होने वाले डार्क एनर्जी के विकास का पता लगाने के लिए सीमा निर्धारित करने और इसी भाव के साथ डार्क मैटर में सीमा निर्धारित करने देगा। हमें जितना अधिक आंकड़ा मिलेगा, प्रकृति पर हमारी सीमाएं और बेहतर हो सकती हैं।

मुझे उम्मीद है कि आने वाले दशकों में हम ये जान सकेंगे कि ये क्या है। क्योंकि अगर हम ये नहीं करते हैं, तो सीखने का सबसे छोटा रास्ता ये होगा कि हम उस सभ्यता को तलाशें, जिसका जन्म पृथ्वी पर नहीं हुआ है क्योंकि ये हमें जवाब देगा। हालांकि इससे ये अहसास होगा कि एक परीक्षा में हम नकल कर रहे हैं, लेकिन अगर इससे हमारा बहुत सारा वक्त बचता है, तो मैं इसका समर्थन करता हूं।

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