‘स्टूडियो-जिबली’: रंग, रेखाएं, चित्र और कथानक मिलकर भावनाओं का चित्रण

‘स्टूडियो-जिबली’: रंग, रेखाएं, चित्र और कथानक मिलकर भावनाओं का चित्रण

नौ अध्यायों में विभाजित यह पुस्तक जिबली की स्थापना, कार्य संस्कृति, तकनीकी बदलाव और महिला पात्रों की भूमिका पर गहराई से चर्चा करती है।
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वास्तविकता की उलझनों से बचकर सुख की तलाश में मानव सोशल मीडिया का सहारा लेता है, ठीक वैसे ही जैसे बचपन में ‘डोरेमॉन’ जैसे कार्टून देखकर खुशी मिलती थी। सोशल मीडिया एक नई आभासी दुनिया गढ़ता है, जहां लोग अपने वास्तविक जीवन से पलभर के लिए दूर हो जाते हैं। जिस प्रकार “स्टूडियो-जिबली (Studio Ghibli)” ने अपनी कलाकृतियों में गहरी भावनाएँ, संघर्ष और एक काल्पनिक संसार को चित्रित किया, वैसे ही हर व्यक्ति की भी एक अनूठी कहानी होती है- संघर्षों से भरी, अनुभवों से गढ़ी हुई। लेकिन आज, वही मानव डिजिटल दुनिया में इतना डूब चुका है कि वह स्वयं एक “कार्टून” बनता जा रहा है।

कल्पना कीजिए, एक ऐसी दुनिया जहां हर चित्र एक कहानी बयां करती है। जहां रंग, रेखाएँ, चित्र और कथानक मिलकर भावनाओं को जीवंत कर देते हैं। यह वही दुनिया है, जिसे “स्टूडियो जिबली (Studio Ghibli)” ने अपने अनोखे एनीमेशन के माध्यम से रचा है।

1985 में हयाओ मियाजाकी और इसाओ ताकाहाता द्वारा स्थापित, यह स्टूडियो जापान का सबसे प्रतिष्ठित एनीमेशन संस्थान है। “जिबली शब्द “इतालवी” भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “गरम हवा का झोंका”- एक ऐसा प्रतीक जो इस स्टूडियो की नवीन सोच और रचनात्मक ऊर्जा को दर्शाता है। जिबली की फ़िल्में सिर्फ़ एनीमेशन नहीं, बल्कि कलात्मक अभिव्यक्ति हैं, जो कल्पना और यथार्थ के बीच एक अनोखा सेतु बनाती हैं।

यही कारण है कि आज के डिजिटल युग में जिबली की लोकप्रियता पहले से भी अधिक बढ़ गई है। सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म्स पर जिबली-प्रेरित फैन आर्ट, एआई-जनरेटेड इमेजेस और एनीमेशन स्टाइल की नकल की बाढ़ सी आ गई है।

नौ अध्यायों में विभाजित यह पुस्तक जिबली की स्थापना, कार्य संस्कृति, तकनीकी बदलाव और महिला पात्रों की भूमिका पर गहराई से चर्चा करती है। साथ ही, यह जिबली की लघु फ़िल्मों, नई पीढ़ी के निर्देशकों और इसकी विरासत के भविष्य की संभावनाओं का भी विश्लेषण करता है।

पहला अध्याय स्टूडियो जिबली की औद्योगिक संरचना, कार्य संस्कृति और जापान के एनीमेशन उद्योग में इसकी भूमिका को समझाने का प्रयास करता है। जिबली ने पारंपरिक 2D एनीमेशन को बनाए रखते हुए तकनीकी बदलावों का सामना किया और अपनी अलग कार्यशैली विकसित की। इसका फिल्म निर्माण तरीका, वितरण प्रणाली और व्यावसायिक रणनीतियाँ इसे जापान ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक प्रभावशाली एनीमेशन स्टूडियो बनाती हैं। जिबली की फिल्में जहाँ दर्शकों के दिलों को छूती हैं, वहीं इसकी काम करने की शैली और व्यवसायिक सोच इसे एनीमेशन उद्योग में एक स्थायी स्थान दिलाती हैं।

दूसरा अध्याय स्टूडियो जिबली की शुरुआत की सच्चाई को सामने लाता है। आम धारणा यह है कि यह केवल रचनात्मक सोच का परिणाम था, लेकिन वास्तव में यह एक जटिल औद्योगिक प्रक्रिया थी। इसमें वित्तीय निवेश, प्रबंधन और कई लोगों का योगदान शामिल था। स्टूडियो की शुरुआती यात्रा कठिन थी, और इसे आर्थिक अस्थिरता और प्रबंधन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इस अध्याय में बताया गया है कि जिबली केवल कला का प्रतीक नहीं, बल्कि एक औद्योगिक प्रयोग भी था, जो समय के साथ विकसित हुआ और जापान के सबसे प्रसिद्ध एनिमेशन स्टूडियो में बदल गया।

तीसरा अध्याय स्टूडियो जिबली की शुरुआत में क्रियाविधि की चर्चा करता है। जैसा की वित्तीय समस्याएँ, अस्थायी कर्मचारी और कठिन काम करने का माहौल इसे चुनौतीपूर्ण बनाते थे। इसके संस्थापकों के बीच भी मतभेद थे- हयाओ मियाजाजाकी स्थायी टीम बनाना चाहते थे, जबकि इसाओ ताकाहाता और तोरु हारा व्यावहारिक सोच रखते थे। काम का दबाव इतना था कि कई कर्मचारियों ने इसे “थकावट और शोषण” वाला माहौल कहा। फिर भी, इसी मेहनत ने जिबली को एक बेहतरीन एनीमेशन स्टूडियो बनाया। “My Neighbour Totoro” और “Grave of the Fireflies” जैसी फिल्मों के साथ यह दुनिया में पहचान बनाने लगा। जिबली सिर्फ एक स्टूडियो नहीं, बल्कि एक सपना था- जहाँ कला, अनुशासन और कल्पना का अनोखा संगम हुआ।

चौथा अध्याय स्टूडियो जिबली में महिलाओं की भूमिका और उनके कार्य अनुभव पर केंद्रित है। जिबली की फिल्मों में सशक्त महिला किरदार दिखाए जाते हैं, लेकिन वास्तविकता में स्टूडियो में काम करने वाली महिलाओं को सीमित अवसर मिलते थे। “Porco Rosso” के प्रचार में दावा किया गया कि इसे “सुंदर महिलाओं की सेना” ने बनाया है, लेकिन यह उनकी भूमिका को सतही रूप से प्रस्तुत करता है। 1990 में स्थायी वेतन प्रणाली लागू होने से महिलाओं की स्थिति में कुछ सुधार हुआ, लेकिन लंबे कार्य घंटे, छुट्टियों की कमी और पदोन्नति के कम अवसर जैसी चुनौतियाँ बनी रहीं।

पांचवा अध्याय स्टूडियो जिबली के पारंपरिक 2D एनीमेशन से डिजिटल एनीमेशन की ओर बढ़ते बदलावों पर केंद्रित है। 1999 में My Neighbours the Yamadas पूरी तरह डिजिटल तरीके से बनी, जिससे स्टूडियो में बड़ा तकनीकी बदलाव आया। हालाँकि हयाओ मियाजाकी कंप्यूटर एनीमेशन के विरोधी थे, फिर भी जिबली ने डिजिटल तकनीकों को अपनाया। यह अध्याय एनीमेशन तकनीकों के इस बदलाव और इससे जुड़ी चुनौतियों को समझाने पर केंद्रित है।

छठवां अध्याय स्टूडियो जिबली के एनीमेशन को कला के रूप में स्थापित करने की प्रक्रिया पर केंद्रित है। शुरुआत में, जिबली ने जापान के डिपार्टमेंट स्टोर्स में प्रदर्शनी आयोजित कीं, जिससे एनीमेशन को आम जनता तक पहुंचाया गया। 2001 में, स्टूडियो ने “Mitaka Forest Ghibli Art Museum” की स्थापना की, जहां इसकी फिल्मों की कलात्मकता को प्रदर्शित किया गया। बाद में, जिबली की प्रदर्शनी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संग्रहालयों तक पहुंची। स्टूडियो ने पारंपरिक एनीमेशन, इंटरएक्टिव प्रदर्शन और वैश्विक कला प्रदर्शनी के जरिए अपने एनीमेशन को सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक गंभीर कला रूप में स्थापित किया।

सातवाँ अध्याय स्टूडियो जिबली के कम चर्चित लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं पर केंद्रित है। आमतौर पर जिबली को उसकी प्रसिद्ध फीचर फ़िल्मों के लिए जाना जाता है, लेकिन उसने कई छोटे एनीमेशन प्रोजेक्ट्स भी बनाए हैं, जिनमें टेलीविज़न विज्ञापन, विज़ुअल क्लिप, संगीत वीडियो और Ghibli Art Museum के लिए विशेष लघु फ़िल्में शामिल हैं। ये प्रोजेक्ट्स स्टूडियो के व्यावसायिक पक्ष को उजागर करते हैं और दिखाते हैं कि जिबली केवल एक कलात्मक संस्थान ही नहीं, बल्कि एक उद्योग भी है। इन लघु फ़िल्मों और विज्ञापनों के माध्यम से स्टूडियो ने अपनी ब्रांड पहचान को मजबूत किया और एनीमेशन की नई संभावनाओं को तलाशा है।

आठवां अध्याय स्टूडियो जिबली पर हयाओ मियाज़ाकी की गहरी छाया को उजागर करता है। मियाज़ाकी ने कई बार संन्यास लेने की घोषणा की, लेकिन वे हमेशा काम पर लौट आए। उनके संन्यास की संभावना ने स्टूडियो के भविष्य को लेकर अनिश्चितता पैदा की। तोशियो सुज़ुकी ने नए निर्देशकों को खोजने का प्रयास किया, लेकिन योशिफ़ुमी कोंडो की असमय मृत्यु और अन्य निर्देशकों की सीमित भागीदारी ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया। उनकी प्रभावशाली उपस्थिति ने स्टूडियो के पारंपरिक और नए उत्पादन मॉडल के बीच संघर्ष पैदा किया। नतीजतन, जिबली अब तक कोई स्थायी उत्तराधिकारी नहीं खोज सका, जिससे उसके भविष्य को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अंतिम अध्याय में स्टूडियो जिबली की विरासत के बारे में केन्द्रित है, स्टूडियो घिबली ने सालों तक बेहतरीन एनीमेशन फिल्में बनाई। 2014 में, इसके मुख्य निर्देशक हयाओ मियाज़ाकी और इसाओ ताकाहाता के रिटायर होने के बाद फिल्म निर्माण रुक गया। इसके बावजूद, घिबली की कला अन्य रूपों में जीवित रही, जैसे Ni No Kuni वीडियो गेम। Level-5 कंपनी के साथ साझेदारी ने इसकी पहचान बनाए रखी। हालांकि स्टूडियो का भविष्य निश्चित नहीं था, लेकिन इसकी खूबसूरत एनीमेशन शैली और कहानियाँ हमेशा लोगों के दिलों में रही। स्टूडियो जिबली ने एनीमेशन को सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि एक अनमोल विरासत बना दिया।

आज के डिजिटल युग में, जिबली की कला केवल फिल्मों तक सीमित नहीं है। सोशल मीडिया और एआई टूल्स के जरिए लोग जिबली-शैली की तस्वीरें बनवाने की होड़ में हैं। इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ‘जिबलीफाई’ फिल्टर और एआई-जनित चित्रों की लोकप्रियता इस स्टूडियो की सांस्कृतिक विरासत की स्थायी छाप को उजागर कर रही है।

सन्दर्भ पुस्तक: रेना डेनीसन, “स्टूडियो जिबली: एन इंडस्ट्रियल हिस्ट्री (पलग्रेव एनीमेशन)” पलग्रेव मैकमिलन, 2023, 232 पृष्ठ, $131। 69, ISBN-10: 3031168437

(आभार: अपने शोध निदेशक डॉ। केयूर पाठक (असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) के प्रति। (लेखक सोशल मीडिया पर समाजशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्विद्यालय में शोधरत हैं)

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