अंतरिक्ष जाने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा से बातचीत: भाग -2

अंतरिक्ष को भोगने के लिए धरती छोड़ना चाहता है इंसान
अब ऐसे दिखते हैं विंग कमांडर (रिटायर्ड) राकेश शर्मा, Photo : Srikant Chaudhary
अब ऐसे दिखते हैं विंग कमांडर (रिटायर्ड) राकेश शर्मा, Photo : Srikant Chaudhary
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विंग कमांडर (सेवानिवृत्त) राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पैर रखने वाले पहले भारतीय बने 35 साल पूरे हो चुके हैं। पिछले दिनों "डाउन टू अर्थ" ने उनसे लंबी बातचीत की। इस बातचीत को चार कड़ियों में उन्हीं की जुबानी प्रकाशित किया जा रहा है। आज प्रस्तुत है दूसरी कड़ी …  

आने वाले समय में निजी क्षेत्र की कंपनियां अंतरिक्ष में जाने में अहम भूमिका निभाएंगी, जो अच्छा होने के साथ-साथ बुरा भी है। अच्छा इसलिए है कि निजी क्षेत्र के पास संसाधन अधिक हैं, जिसके चलते वे अंतरिक्ष में अपनी गतिविधियां बढ़ा सकते हैं, जबकि सरकारी क्षेत्र में संसाधन जुटाना आसान नहीं होता। मुझे लगता है कि आगे जाकर सरकारें केवल अन्वेषण (खोज) करेंगी और निजी क्षेत्र अंतरिक्ष का इस्तेमाल करेगा।

यही सही है कि पहले अंतरिक्ष को एक खोज की तरह देखा जाता था, लेकिन अब अंतरिक्ष को संपत्ति या संसाधन की तरह देखा जाता है, लेकिन जब भी कोई खोज होती है, वह केवल पर्यटन के लिए नहीं की जाती। जब आप खोज करते हैं, तो आप यह जानना चाहते हैं कि आप उस जगह से क्या प्राप्त कर सकते हैं और वे कौन-सी संपत्ति हैं जो छिपी हुई हैं, इससे अवभूमि (जमीन के नीचे की मिट्टी का भाग) और पर्यावरण के क्या फायदे हैं और आप इससे कैसे लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यह खोज का एक स्वाभाविक परिणाम होता है। हम धरती के आसपास बहुत चीजें खोज चुके हैं, कभी मंगलयान से गए हैं तो कभी चंद्रयान से गए हैं।

हम कई यान (स्पेस प्रोब) अंतरिक्ष में भेज चुके हैं, एक या दो तो ऐसे हैं, जो सौर मंडल से बाहर भी गए हैं। इसलिए हमने उस क्षेत्र का बहुत अधिक मानचित्रण कर लिया है, जहां हम भविष्य में काम करना चाहते हैं। अब समय आ गया है कि हमें आगे की ओर बढ़ना है, लेकिन मुझे लगता है कि हम जिस महत्वपूर्ण घटना को देखने जा रहे हैं, वह यह है कि पहली बार मानव सभ्यता का कम से कम एक हिस्सा विस्थापित होने जा रहा है, क्योंकि इस बार हम खोज करने नहीं जा रहे हैं, हम इस्तेमाल करने जा रहे हैं। हम यात्रा पर नहीं जा रहे हैं, हम बसने जा रहे हैं। उस जगह को समझने के लिए, आपको वहां रहना होगा, क्योंकि वहां आ-जा नहीं सकते। दूरी इतनी है कि सोमवार से शुक्रवार के बीच आना-जाना नहीं किया जा सकता। यह बेहद महंगा साबित होग।

इसके अलावा, मनुष्य को आगे जाकर कई-कई ग्रहों में रहने की जरूरत नहीं है। जो आपका प्राकृतिक आवास है और आप उसका महत्व जानते हैं, उसे छोड़ कर नहीं जा सकते। टैक्नोलॉजी में एडवांस होने का आशय यह नहीं है कि जहां आप रहते हैं, जहां आपका जीवन है, उसे नुकसान पहुंचाने के बाद आप कहीं और चले जाएं, यह बेहद पिछड़ी हुई सोच है। ऐसा नहीं होना चाहिए।  

पृथ्वी पर हमारी सभ्यता ने जन्म लिया है, फिर भी हमें बाहर जाना चाहिए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी पृथ्वी व पर्यावरण की इज्जत न करें। उसके साथ न जिएं। मेरा मानना है कि हमें न केवल अपने पर्यावरण को बचाने की दिशा में सोचना चाहिए, बल्कि यहां के जीवन को बचाने के बारे में भी सोचना चाहिए। हम ऐसी जगह पर जा रहे हैं, जहां कुछ उगता भी नहीं है और वहां रहने और पृथ्वी जैसे वातावरण के लिए हमें तकनीकी रूप से कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। और जब आप उस जगह का इस्तेमाल करने के बाद छोड़ेगे तो उस जगह को उससे बदत्तर हालत में छोड़ेंगे, जिस हालत में वह आपके बसने से पहले थी। जब तक कि आप अपने रहने के तरीके नहीं बदलते, जब तक आपको पर्यावरण के साथ रहना नहीं आएगा। हम यह क्यों नहीं समझते कि पर्यावरण बर्बाद करने के लिए नहीं है, बल्कि जीवन देने के लिए है।

यदि मुझे कहा जाए कि मनुष्य को रहने के लिए मंगल ग्रह और चांद में से किसको चुनना चाहिए तो मैं चांद को चुनूंगा, क्योंकि हमें पहले वहां जाकर रहना होगा। हमें चांद पर जाना होगा, तब ही हम आपनी अवधारणा को साबित कर पाएंगे। वह नजदीक है और वहां पहुंचा जा सकता है। हम पहले भी वहां जा चुके हैं और हमें चांद के बारे में अच्छी खासी जानकारी भी है। इस तरह के सबूत मिल चुके हैं कि वहां पानी भी है। इसलिए मंगल की तुलना में चांद पर जाना ठीक रहेगा।

(अक्षित संगोमला से बातचीत पर आधारित)

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