क्या आप जानते हैं कि जब बहुत ज्यादा गर्मी या फिर सूखा पड़ता है तो पौधे अपना बचाव कैसे करते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक जब कभी पौधों को लगता है कि परिस्थितियां बहुत ज्यादा कठोर हो रहीं है तो वो अपने संसाधनों को संरक्षित करने की कोशिश करने लगते हैं। जैसे सूखे के मौसम में पौधे अपने विकास की गति को धीमा कर लेते है जिसकी वजह से उनमें कम पत्तियां, और फल पैदा होते हैं।
देखा जाए तो यह प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया इन पौधों को चरम मौसम का सामना करने में मदद करती है। लेकिन यह सब कुछ एक सीमा तक ही संभव होता है। यदि लम्बे समय तक स्थिति में सुधार नहीं आता तो अंततः यह पौधे मर जाते हैं।
लेकिन कुछ ऐसे जीवट पौधे भी होते हैं जो न केवल इन विषम परिस्थितियों का सामना कर पाते हैं साथ ही इसमें अच्छी तरह फलते-फूलते भी हैं। इन पौधों को एक्स्ट्रीमोफाइट्स, या एक्सट्रीम प्लांट्स भी कहते हैं। हाल ही में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पौधे की एक ऐसी किस्म की खोज की है जो इस तरह की विषम परिस्थितियों में फल-फूल सकता है। इससे जुड़ा अध्ययन जर्नल नेचर प्लांट में प्रकाशित हुआ है।
साथ ही उन्होंने यह भी जानने का प्रयास किया है कि क्या इस तरह के पौधों की मदद से जलवायु में आते बदलावों और उनसे पैदा होने वाले खतरों का सामना किया जा सकता है और क्या यह पौधे इस विषम स्थिति में भी हमारी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने 'श्रेंकिएला परवुला' नामक जिस पौधे की खोज की है, वो सरसों परिवार का एक खुरदरी शाखाओं वाला पौधा है। यह पौधा न केवल उन परिस्थितियों में जीवित रहने के काबिल है जिसमें अन्य पौधे जीवित नहीं रह सकते। साथ ही यह इस माहौल में तेजी से फल-फूल भी सकता है। आमतौर पर यह पौधा तुर्की में तुज झील के किनारे उगता है। जहां पानी में नमक की मात्रा समुद्र की तुलना में छह गुना अधिक होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह पौधा ऐसी विषम परिस्थितियों में भी तेजी से बढ़ता है।
कैसे विषम परिस्थितयों में भी तेजी से बढ़ता है यह पौधा 'श्रेंकिएला परवुला'
ऐसा कैसे हो पता है इस बारे में स्टैनफोर्ड में जीव विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर जोस डिनेनी का कहना है कि “जब विषम परिस्थितियों में अधिकांश पौधे एक एक तनाव हार्मोन का उत्पादन करते हैं, जो उनके लिए स्टॉप सिग्नल का काम करता है, लेकिन उसके विपरीत इस विषम माहौल में यह पौधा एक ग्रीन सिग्नल देता है जो इस तनाव हार्मोन की प्रतिक्रिया में अपने विकास की गति को तेज कर देता है।“
अभी भी वैज्ञानिक यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि कैसे कुछ पौधे चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए डिनेनी और उनके सहयोगी 'श्रेंकिएला परवुला' का अध्ययन कर रहे हैं। जिससे उन फसलों के विकास में मदद मिल सके जो कम गुणवत्ता वाली मिट्टी में उगने के काबिल हो। साथ ही जलवायु में आते बदलावों के कारण पैदा हो रहे तनाव का भी सामना करने में सक्षम हों।
शोधकर्ताओं के मुताबिक जब जब पौधे शुष्क, नमकीन या ठंडे मौसम का सामना करते हैं, तो इन सभी में जल संबंधित तनाव पैदा होते हैं। ऐसी स्थिति में यह पौधे एब्सिसिक एसिड या एबीए नामक एक हार्मोन का उत्पादन करते हैं। यह हार्मोन पौधों में एक विशिष्ट जीन को सक्रिय करता है, और पौधे को अनिवार्य रूप से यह बताता है कि उसे कैसे प्रतिक्रिया करनी है।
शोधकर्ताओं ने इस बात की जांच की है कि 'श्रेंकिएला परवुला' समेत 'ब्रैसिसेकी' परिवार में कितने पौधों ने एबीए के विपरीत प्रतिक्रिया की थी, जबकि अन्य पौधों की वृद्धि धीमी हो गई या रुक गई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दौरान 'श्रेंकिएला परवुला' की जड़ें काफी तेजी से बढ़ीं थी।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह पौधा काफी हद तक अन्य पौधों जैसा ही है, इनमें एक समान आकार के जीनोम हैं, लेकिन इसमें एबीए के बर्ताव को प्रभावित करने के लिए यह पौधा अपने आनुवंशिक कोड के विभिन्न वर्गों को सक्रिय कर रहा है।
इस बारे में साल्क इंस्टीट्यूट के पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता और इस शोध से जुड़े लेखक यिंग सन का कहना है कि जलवायु में बदलावों के साथ हम इस बात की उम्मीद नहीं कर सकते की पर्यावरण में बदलाव नहीं आएगा। ऐसे में हमारी फसलों को उन तेजी से बदलती हुई परिस्थितियों के अनुकूल होना होगा। अगर हम उन तंत्रों को समझ सकते हैं जिसका उपयोग पौधे तनाव सहन के लिए उपयोग करते हैं, तो हम उन्हें इसे बेहतर और तेजी से करने में मदद कर सकते हैं।
देखा जाए तो श्रेंकिएला परवुला, ब्रैसिसेकी परिवार का सदस्य है, जिसमें गोभी, ब्रॉकोली, शलजम और कई अन्य महत्वपूर्ण खाद्य फसलें शामिल हैं। ऐसे में जब हम जानते हैं कि यह फसलें उन क्षेत्रों में उगने और बढ़ने के काबिल हैं जहां जलवायु परिवर्तन के चलते सूखे की अवधि और तीव्रता में वृद्धि होने की आशंका है। वहां इन फसलों की पैदावार की जा सकती है।