इसी दिन बीते वर्ष का पखवाड़ा था, जब दुनिया कोविड-19 नाम के एक संक्रामक विषाणु से परिचित हुई थी। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस विषाणु के प्रसार को 11 मार्च, 2020 को महामारी घोषित किया था। तबसे यह विषाणु हमारे अस्तित्व के हर पहलू को प्रभावित करते हुए इस ग्रह पर एक व्यापक चरित्र के साथ उभरा है। 2020 पूरा साल गणना करने में ही बीत गया लेकिन अब 2021 एक बेहद अहम साल बनने जा रहा है।
इस बीच सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ की ओर से पर्यावरण की दशा बताने वाली सालाना स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2021 (एसओई-2021) रिपोर्ट 25 फरवरी, 2021 को भारत के 60 पर्यावरणविद मिलकर जारी कर रहे हैें। रिपोर्ट संबंधी जानकारी यहां उपलब्ध है।
एसओई 2021 की हर एक रिपोर्ट के पीछे की तस्वीर स्वाभाविक तौर पर महामारी ही है। दरअसल महामारी का हमारे जीवन पर बड़ा और गहरा प्रभाव पड़ा है। डाउन टू अर्थ की संपादक सुनीता नारायण इस रिपोर्ट की शुरुआत अपने पहले लेख से करती हैं जिसमें उन्होंने लिखा है "इस संकट की कोई मिसाल नहीं है लेकिन यह हमारे प्रकृति के साथ उत्तरोत्तर बिगड़े हुए रिश्ते का परिणाम है।" हमें प्रकृति के साथ रिश्तों की डोर दोबारा जोड़ने की जरूरत है। शायद यही एंथ्रोपोसीन एज यानी मानव युग में अपने पश्चाताप की स्वीकरोक्ति होगी।
एसओई 2021 में कुल 14 अध्याय हैं जो कि महामारी से लेकर सतत विकास लक्ष्यों और गरीबी व ऊर्जा और ग्रामीण विकास के बारे में गहराई से तथ्यों को सामने लाते हैं।
पूरी दुनिया में यह गौर किया जा रहा है कि महामारी अपने अंतिम चरण की ओर है। अथवा यह किसी निश्चित भौगोलिक भाग में सीमित अर्थों में जारी रह सकता है, लेकिन इस महामारी के गहरे निशान पूरी दुनिया पर पड़े हैं।
एसओई रिपोर्ट 2021 के अध्यायों में खास बातें ः
यह दुनिया इसी तरह की एक और महामारी को झेलने जा रही है। हम सिर्फ संभावित 0.1 उन जीवों के विषाणुओं के बारे में जानते हैं जो महामारी पैदा कर सकते है। दूसरे शब्दों में कहें तो 99.9 फीसदी जीवों से विषाणुओं के फैलने की जानकारी अब भी अंधेरे में है।
2040 की व्यस्क पीढ़ी निम्न मानव पूंजी के साथ अविकसित होगी। महामारी के प्रभाव के कारण पूरी दुनिया के लिए विकास की डगर बेहद कठिन चुनौती होगी।
महामारी एक और क्रूर सच्चाई प्रदर्शित करती है। इस संकट का प्रभाव गरीबों को बहुत तेज अपनी जद में लेगा। अनुमान है कि महामारी से उपजने वाले संकट के कारण रोजाना 12,000 से अधिक लोग भूख के कारण दम तोड़ देंगे।
एसओई के पर्यावास (हैबिटाट) अध्याय में शोधार्थियों ने यह सामने रखा है कि किस तरह से महामारी ने उस शहरी जीवन के पहलुओं को सामने लाया है, जिस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है "सरकार ने शहरी गरीबों के लिए 2022 तक 1.1 करोड़ घरों के निर्माण का लक्ष्य रखा है लेकनि अब सरकार को उनसे जुड़ी नई समस्याओं जैसे काम का न मिलना, स्वास्थ्य सुविधाएं और पहुंच से बाहर शिक्षा को भी दूर करने के लिए काम करना होगा।"
कोविड-19 प्रसार की रोकथाम के लिए लगाए गए लंबे लॉकडाउन के दौरान, "स्वच्छ हवा और नीले आकाश" ने हमें यह याद दिलाया है कि हमने प्रकृति का किस तरह दुरुपयोग किया है। लेकिन जैसा कि एसओई 2021 कहता है कि यह सिर्फ एक कोड़ा भर है जो हमें यह याद दिलाता है कि मानव-प्रेरित प्रदूषण के बिना प्रकृति में क्या अच्छे बदलाव हो सकते हैं।
एसओई रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि प्रदूषण का स्तर कैसे बढ़ा है और बीते वर्ष के दौरान सरकार ने एक के बाद एक ऐसे नीतिगत निर्णय लिए, जिसने भारत के पर्यावरण विनियमन नियमों को प्रभावी ढंग से कमजोर किया है।
एसओई 2021 के "उद्योग" अध्याय में एक आकलन कहता है "पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2020 का मसौदा पहले से मौजूद अधिसूचना का एक अत्यंत उदार संस्करण है।"
वहीं, एसओई रिपोर्ट भारतीय राज्यों की दशा पर एक विशेष खंड है जिसमें विशेष रूप से राज्यों के सतत विकास लक्ष्य (एसडीटी) पर उनके प्रदर्शन को लेकर विस्तार से तथ्य पेश किए गए हैं। इन वैश्विक स्तर पर प्रतिबद्ध विकास लक्ष्यों को पूरा करने से महज 10 साल दूर भारत एसडीजी की प्रगति के मामले में 192 देशों के बीच 117 वें स्थान पर है। वहीं, कोई भी राज्य एसडीजी मानकों को 2030 तक पूरा करने के रास्ते पर नहीं पाया गया।
भारत में सभी नागरिकों तक सुरक्षित पानी और स्वच्छता पहुंचाने की चुनौती पर एसओई रिपोर्ट में कुछ सावधानियां भी है। 2019 में भारत ने खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित किया। लेकिन रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है: "ग्रामीण भारत के हर घर में शौचालय उपलब्ध कराना दरअसल सुरक्षित स्वच्छता के लिए भारत की लंबी खोज का पहला कदम था।"
इसी तरह सभी घरों को सुरक्षित पानी मुहैया कराने के सरकार के वादे पर रिपोर्ट में कहा गया है कि: “इस योजना को 2019 में जारी किया गया, जिसमें रुपये का भारी भरकम बजट था। जल जीवन मिशन ने 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों को पीने का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा, यह 12 वीं बार है जब भारत ने ऐसी समय सीमा तय की है और देश अपने वादे को पूरा करने में बुरी तरह से विफल हो रहा है। ”
एसओई 2021 की रिपोर्ट में वैश्विक और राष्ट्रीय जैव विविधता पर भी तथ्य और आंकड़े मौजूद हैं। संयुक्त राष्ट्र की जैव विविधता का दशक 2020 में समाप्त हो गया। इस अध्याय ने मूल्यांकन किया है कि वनस्पतियों और जीवों के संदर्भ में हमने कितना खोया है और प्रकृति के संरक्षण के हमारे वादों को कितना रखा है।
छठवीं समूह विलुप्ति पर रिपोर्ट में कहा गया है कि विलुप्ति के चरण से पहले दो संकेत हैं। आबादी की क्षति और वितरण क्षेत्रों का संकुचन। यह दो संकेत वर्तमान के सभी प्रजातियों के लिए पर्याप्त सबूत हैं।