महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ा फेरबदल कर सकता है छोटे से छोटा परमाणु युद्ध

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस युद्ध के चलते ऐसी तबाही आएगी, जिससे उबरने में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को दशकों का समय लग जाएगा
महासागरीय पारिस्थितिकी तंत्र में बड़ा फेरबदल कर सकता है छोटे से छोटा परमाणु युद्ध
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क्या आपने कभी सोचा है कि यदि परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध होता है तो उसका क्या परिणाम होगा। शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो इसका खामियाजा न केवल मानव जाति को भुगतना होगा, बल्कि पर्यावरण को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।

परमाणु युद्ध के महासागरों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को समझने के लिए हाल ही में रटगर्स विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन किया है। इस अध्ययन से पता चला है कि छोटे से छोटे पैमाने पर हुआ परमाणु युद्ध भी समुद्री प्रणालियों को तबाह कर देगा। इसकी वजह से मछलियों में भारी कमी आ जाएगी।

इतना ही नहीं इसके साथ-साथ इस युद्ध के चलते बर्फ की चादरों का विस्तार तटीय आबादी तक हो जाएगा, जबकि समुद्री धाराओं में भी भारी बदलाव आ जाएगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे ऐसी तबाही होगी जिसकी बहाली दशकों का समय लग जाएगा। इस शोध के निष्कर्ष जर्नल एजीयू एडवांसेस में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन के मुताबिक अमेरिका, रूस, चीन, भारत और पाकिस्तान जैसे नौ देशों के पास 13,000 से ज्यादा परमाणु हथियार हैं। जो इसके विस्तार पर काम कर रहे हैं। वहीं उत्तरी कोरिया और ईरान भी परमाणु हथियारों को विकसित करने की होड़ में लगा हुआ है। ऐसे में यदि यह हथियार जानबूझकर या फिर गलती से या फिर हैकर्स, या कंप्यूटर विफलता के कारण लांच हो जाते हैं तो उसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। 

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इससे न केवल बड़े पैमाने पर मानव जीवन की क्षति होगी बल्कि साथ ही पर्यावरण को भी भारी नुकसान होगा। ऐसे में समुद्री इकोसिस्टम पर इस परमाणु युद्ध के पड़ने वाले प्रभावों को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने अमेरिका और रूस के साथ-साथ भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले परमाणु युद्ध के कारण पैदा हो सकने वाले प्रभावों का मॉडल अध्ययन क्या है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन चार देशों के पास मौजूद परमाणु हथियारों और उनके संभावित लक्ष्यों के आधार पर वैज्ञानिकों ने उस कालिख (सूट) की मात्रा का अध्ययन किया है जो इन हथियारों की वजह से वातावरण में फैल जाएगी और सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध कर देगी।

इसके साथ ही शोधकर्ताओं ने नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च द्वारा विकसित कम्युनिटी अर्थ सिस्टम मॉडल (सीईएसएम) का इस्तेमाल करके यह समझने का प्रयास किया है कि इस कालिख का समुद्री इकोसिस्टम पर कम और लम्बी अवधि में क्या प्रभाव होगा।

7 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाएगा सतह का तापमान

वैज्ञानिकों के मुताबिक अमेरिका-रूस के बीच यदि परमाणु युद्ध होता है तो इस परिदृश्य में सूर्य से आने वाला शॉर्टवेव विकिरण 70 फीसदी तक कम हो जाएगा। इसकी वजह से पहले महीने में ही सतह का वैश्विक औसत तापमान 7 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाएगा।

परिणामस्वरूप उत्तरी गोलार्ध में ठंड अपने चरम पर पहुंच जाएगी। नतीजन आर्कटिक सागर में जमा बर्फ का विस्तार एक करोड़ वर्ग किलोमीटर तक हो जाएगा। मतलब कि बर्फ का यह विस्तार 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ जाएगा। जो तटों, मछली पकड़ने के जलीय क्षेत्रों और शिपिंग के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों को ढंक लेगी।

शोध के मुताबिक चाहे 100 परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हो या 1000 का, सभी परिदृश्यों में धुंए और कालिख के छंटने के बाद भी समुद्र अपनी पहले की अवस्था में वापस नहीं आ पाएगा। इसके साथ ही वहां स्थिति सामान्य होने में दशकों का समय लग जाएगा, वहीं कुछ क्षेत्रों में तो नई परिस्थितियां आने वाले कई सौ वर्षों में भी  नहीं बदलेंगी।

समुद्री बर्फ के इस विस्तार से दुनिया के उस हिस्से में 'न्यूक्लियर लिटिल आइस एज' आ जाएगी। इसके साथ ही ठंड का यह प्रभाव समुद्री धाराओं को बदल देगा। नतीजन समुद्री मैक्रोन्यूट्रिएंट्स में वृद्धि हो जाएगी, जबकि युद्ध के बाद के पहले दशक में  फिश स्टॉक 20 फीसदी तक घट जाएगा।

इस बारे में शोध से जुड़े वैज्ञानिक एलन रोबॉक का कहना है कि ऐसा एक परमाणु युद्ध धरती के लिए एक टिप्पिंग पॉइंट होगा। यूक्रेन-रूस के बीच जारी संघर्ष में भी रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की धमकी दे चुके हैं। ऐसे में इस शोध के परिणाम पूरी दुनिया के लिए एक चेतावनी हैं कि दुनिया उस विनाश के रास्ते पर नहीं जा सकती।

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