क्या मुफ्त इंटरनेट सेवा को मूलभूत अधिकारों में शामिल किया जाना चाहिए?

क्या इंटरनेट हमें फ्री में मिलना चाहिए, इस बहस को निर्णायक स्तर पर पहुंचाने के लिए बर्मिंघम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक व्यापक अध्ययन किया है, इसके रोचक परिणाम सामने आए हैं
Photo: Creative commons
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इंटरनेट की पहुंच ने वैश्विक रूप से लोगों के बीच एक ऐसी रेखा खींच दी है जिसने उन्हें दो वर्गों में बांट दिया है। एक ओर ऐसा वर्ग है जो पूरी तरह से इंटरनेट से जुड़ा हुआ है, जबकि दूसरा ऐसा जो आज भी इसके लिए संघर्ष कर रहा है| यह तबका आज भी बाकी समाज से काफी पिछड़ा हुआ है। इन सबके बीच सारे समाज के सामने एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या मुफ्त इंटरनेट भी मूलभूत अधिकार होना चाहिए या नहीं?

अभी हाल ही में जर्नल ऑफ एप्लाइड फिलोसॉफी में छपा अध्ययन इस पर तस्वीर साफ कर देता है । जिसके अनुसार मुफ्त इंटरनेट को मनुष्य के मूलभूत अधिकारों के अंतर्गत आना चाहिए, क्योंकि आज भी विकासशील देशों में जहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है वहां लोग सूचना के आभाव में उन तथ्यों और बातों से अनभिज्ञ है, जो उनके जीवन में बड़ा बदलाव ला सकती हैं । सूचना प्राप्त करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कैसे पूरा  माना जा सकता है, जब समाज के कुछ लोगों तक तो इंटरनेट के जरिये उसकी पहुंच है, जबकि अन्य अभी भी उससे कोसों दूर हैं । जबकि उन सभी का जरिया इंटरनेट ही है।

अध्ययन के अनुसार इंटरनेट अरबों लोगों के जीवन स्तर में सुधार ला सकता है। साथ ही अन्य मूलभूत अधिकारों जैसे जीवन, स्वतंत्रता और यातना से मुक्ति पाने का अधिकार दिलाने का एक महत्वपूर्ण साधन हो सकता है ।

बर्मिंघम विश्वविद्यालय में ग्लोबल एथिक्स के लेक्चरर डॉ मर्टेन रेगलिट्ज जो की इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता भी हैं, के अनुसार “आज इंटरनेट का उपयोग लक्जरी नहीं रह गया, यह तो नैतिक मानव अधिकार है । दुनिया में हर उस इंसान को इसको मुफ्त पाने का अधिकार है जो इसके खर्चे को वहां नहीं कर सकता । साथ ही यह भी जरुरी है कि उसपर अनैतिक रूप से निगरानी न रखी जाये।“ आज नीति निर्माता और प्रशासन इंटरनेट के माध्यम से आम जन से जुड़ा हुआ है । इसके आभाव में बहुत से लोग नीति निर्माण की प्रक्रिया से दूर हो जायेंगे जिसके चलते प्रशासन उनके हितों को नहीं जान पायेगा और वो अपने बहुत से अवसरों को गवां देंगे।

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि आज सूचना को पाना और अपनी बात को स्वतंत्रता से कहना बहुत हद तक इंटरनेट से जुड़ा हुआ है । साथ ही बहुत सारी राजनैतिक गतिविधियां और उनकी जानकारी भी इंटरनेट से ही जुडी हुई है, यदि आम जन तक इंटरनेट की पहुंच नहीं रहेगी तो वो इससे दूर हो जायेंगे ।“हालांकि वो स्वीकार करते हैं कि सिर्फ ऑनलाइन होना ही इन अधिकारों की गारंटी नहीं देता है, पर इंटरनेट उसको पाने का एक जरिया जरूर है । जिसके लिए #मीटू कैंपेन का हवाला देते हुए बताया कि किस तरह यह कैंपेन नारी सम्मान के लिए जन -जन की आवाज बन गया था और इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह इंटरनेट ही था । हमारे मौलिक अधिकार, सार्वभौमिक हितों के आधार पर सब के लिए एक ऐसे जीवन की वकालत करते हैं जिसमें उनके जीवन के मूलभूत अधिकारों का हनन न हो और वो सभ्य जीवन व्यतीत कर सकें । और यदि कोई देश या समाज ऐसा कर पाने में असमर्थ रहता है तो इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आगे आना पड़ेगा और यह तभी होगा जब हर कोई एक दूसरे से जुड़ा रहेगा और आज के समय में यह इंटरनेट के बिना संभव नहीं है।

भारत में क्या है इंटरनेट की स्थिति

भारतीय में केरल ने इस दिशा में बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है जिसमें सबके लिए इंटरनेट एक्सेस को एक मानव अधिकार घोषित किया है और इसका लक्ष्य 2019 तक अपने 3.5 करोड़ लोगों तक इसकी पहुंच को सुनिश्चित करना है। अन्य राज्यों और केंद्र को भी इस दिशा में सार्थक कदम उठाने चाहिए । अभी हाल ही में जिस तरह से नोटबंदी ने सारे देश को अपने ही पैसे प्राप्त करने के लिए एक कतार में खड़ा कर दिया था, और देश के करोड़ों लोगों और अर्थव्यवस्था को इससे जो हानि उठानी पड़ी थी वो नहीं होती यदि पहले ही सब लोग इंटरनेट के जरिये अपने बैंकों से जुड़े होते और मुद्रा सम्बन्धी कामकाज ऑनलाइन होता । आज भी यदि इंटरनेट का प्रसार घर-घर तक हो जाये तो सरदार पटेल का सारे राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का सपना सच हो सकता है । सभी को एक सूत्र में बांधने का कार्य सिर्फ रास्तो को जोड़ना ही नहीं है, इसके लिए जन-जन के मन को भी जोड़ना जरुरी है । जब दूर -दराज का एक आम किसान भी केंद्र के नीति निर्माताओं तक अपनी बात पहुंचा सकता है । जिसकी सहायता से स्वच्छ भारत जैसे मिशन सच में आम जन से जुड़ जायेंगे और देश में चल रहा भ्रष्टाचार का तंत्र पूरी तरह विफल हो जायेगा और यह तभी हो सकेगा जब देश में हर इंटरनेट के जरिये जुड़ा रहेगा । पर इसके लिए सावधानी भी जरुरी है, ऐसा नहीं है कि इसका दुरूपयोग शुरू हो जाये । उस पर भी नजर रखना जरुरी है। पर बहुत सारे मुद्दों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में इंटरनेट एक अहम् बदलाव ला सकता है ।

इंटरनेट के महत्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसे सतत विकास के लक्ष्यों का एक हिस्सा माना है, साथ ही वो इस दिशा में पिछड़े हुए देशों की मदद भी कर रहा है । इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन के अनुसार 2018 के अंत तक दुनिया की 700 करोड़ की आबादी का करीब 51 फीसदी हिस्सा इंटरनेट से जुड़ा है । लेकिन आज भी विकासशील देशों की एक बड़ी आबादी आज भी इससे दूर है भारत में करीब 56.6 करोड़ लोगों तक इंटरनेट की पहुंच है पर आज भी ग्रामीण आबादी इससे काफी दूर है। आईसीयूबइ 2018 के अनुसार आज भी ग्रामीण आबादी के केवल 25  फीसदी हिस्से तक इंटरनेट की पहुंच है। पर जैसे-जैसे तकनीक सस्ती होती जा रही है, आम लोगों तक इंटरनेट की पहुंच बढ़ती जा रही है। यदि मुफ्त इंटरनेट मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आ जाता है तो देश दुनिया के उस बहुत बड़े वर्ग तक भी उसकी पहुंच संभव हो पायेगी जो आज भी उससे वंचित है और इसकी सहायता से वो नीति और राजनीति और अन्य क्षेत्रों में अहम् योगदान दे सकते हैं । साथ ही उन तक अन्य सेवाओं की पहुंच भी संभव हो जाएगी और वो स्वतंत्र से अपनी बात वैश्विक मंच पर रख पाएंगे।

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