वर्तमान में बैक्टीरिया, वायरस सहित कई बीमारी फैलाने वालों पर दवा का असर नहीं हो रहा है अर्थात ये दवा प्रतिरोधी हो गए हैं। इस बढ़ती समस्या से निजात पाने के लिए नई दवाओं की खोज और विकास बहुत जरूरी है। अब वैज्ञानिकों ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध का मुकाबला करने, जटिल बीमारियों का इलाज करने के लिए नए एंटीबायोटिक विकसित किए हैं। यह भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए बहुत जरूरी है। वैज्ञानिकों ने दवाओं के विकास का यह कारनामा जीन में सुधार करके किया है।
इसके लिए मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया के प्रमुख एंजाइमों में हेरफेर करने का एक नया तरीका खोजा है। यह खोज नई पीढ़ी के एंटीबायोटिक उपचार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
नया शोध बताता है कि कैसे क्रिस्पर-केस9 जीन में सुधार या एडिटिंग का उपयोग नए नॉन-रिबोसोमल पेप्टाइड सिंथेसिस (एनपीएस) एंजाइम बनाने के लिए किया जा सकता है। यह चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक प्रदान करते हैं। एनपीएस एंजाइम पेनिसिलिन जैसे प्राकृतिक एंटीबायोटिक दवाओं के बहुत बड़े उत्पादक हैं। हालांकि, अब तक, नए और अधिक प्रभावी एंटीबायोटिक बनाने के लिए इन जटिल एंजाइमों में हेरफेर करना एक बड़ी चुनौती रही है।
दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) संक्रमण के चलते हर साल लगभग 7 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इसके प्रभाव से 2050 तक दुनिया भर में मौतों के 1 करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं, वहीं इससे निपटने के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था को 100 ट्रिलियन डॉलर की लागत आएगी।
मैनचेस्टर टीम का कहना है कि जीन में सुधार करने की प्रक्रिया का उपयोग बेहतर एंटीबायोटिक दवाओं के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। यह तरीका भविष्य में दवा प्रतिरोधी रोगजनकों और बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में मदद करने वाले नए उपचारों का विकास कर सकता है। यूके के मैनचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (एमआईबी) में केमिकल बायोलॉजी के प्रोफेसर जेसन मिकलेफील्ड बताते हैं कि एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी रोगजनकों का उद्भव आज हमारे सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि हमने जो जीन में सुधार का दृष्टिकोण विकसित किया है। यह जटिल एंजाइमों में हेर-फेर करने का एक बहुत ही कुशल और तेज़ तरीका है। यह बेहतर गुणों के साथ नई एंटीबायोटिक संरचनाओं का उत्पादन कर सकता है।
हमारे पर्यावरण में सूक्ष्मजीवों, जैसे कि मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया ने नॉन-रिबोसोमल पेप्टाइड सिंथेसिस एंजाइम (एनआरपीएस) विकसित किया है। यह अमीनो एसिड नामक बिल्डिंग ब्लॉक्स को पेप्टाइड उत्पादों में इकट्ठा करते हैं, जिनमें अक्सर बहुत शक्तिशाली एंटीबायोटिक गतिविधि होती है। आज चिकित्सालय में उपयोग किए जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं में से कई इन एनआरपीएस एंजाइमों (जैसे पेनिसिलिन, वैंकोमाइसिन और डैप्टोमाइसिन) से प्राप्त होते हैं। यह शोध नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि आज के समय में दुर्भाग्य से घातक रोगजनक सामने आ रहे हैं जो इन सभी मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं। एक समाधान यह हो सकता है कि बेहतर गुणों के साथ नए एंटीबायोटिक का निर्माण किया जाए जिससे रोगजनकों के प्रतिरोध तंत्र से बचा जा सके।
हालांकि, नॉन-रिबोसोमल पेप्टाइड एंटीबायोटिक बहुत जटिल संरचनाएं हैं जिनका सामान्य रासायनिक तरीकों से उत्पादन करना मुश्किल और महंगा है। इससे निपटने के लिए, मैनचेस्टर टीम एनआरपीएस एंजाइमों में हेर-फेर करने के लिए जीन में बदलाव या एडिटिंग का उपयोग करती है, जो विभिन्न अमीनो एसिड बिल्डिंग ब्लॉक्स को पहचानती है, जिससे नई असेंबली लाइनें बनती हैं जो नए पेप्टाइड उत्पादों को फैला सकती हैं।
शोधकर्ता मिकलेफील्ड ने कहा कि अब हम जटिल एनआरपीएस एंजाइमों में बदलाव करने के लिए जीन में सुधार करने में सक्षम हैं, जिससे वैकल्पिक एमिनो एसिड को पेप्टाइड संरचनाओं में शामिल किया जा सके। शोधकर्ताओं ने कहा कि हम आशावादी हैं कि हमारे नए दृष्टिकोण से बेहतर एंटीबायोटिक बनाने के नए तरीके सामने आ सकते हैं। उभरते दवा प्रतिरोधी रोगजनकों का मुकाबला करने के लिए आज इनकी बहुत आवश्यकता है।