शोधकर्ताओं ने अपशिष्ट पदार्थों को महंगे रसायनों में बदलने की प्रक्रिया को सरल बनाया है। इंग्लैंड और ब्राजील के शोधकर्ताओं ने एक दूसरे के सहयोग से यह कारनामा कर दिखाया है। उन्होंने कृषि प्रक्रियाओं में बेकार पड़े गन्ना और गेहूं के भूसे को कीमती रसायनों में बदल दिया है।
इन रसायनों का उपयोग खाद्य उद्योग के साथ-साथ दवाओं के लिए भी किया जा सकता है। रसायनों को 'वन-पॉट' प्रक्रिया के जरीए सीधे अपशिष्ट बायोमास से उत्पादित किया जा सकता है। कृषि में उपयोग के बाद बचे अपशिष्ट को वर्तमान में पुन: उपयोग के बजाय जला दिया जाता है। विशेष रूप से गन्ने और गेहूं के भूसे में जैव ईंधन (बायोफ्यूल्स) बनाने की क्षमता है। ब्राजील और यूके में इनसे जैव ईंधन बनाया जा रहा है।
अपशिष्ट बायोमास से बने रसायनों (केमिकल बिल्डिंग ब्लॉक्स) का उपयोग एयर फ्रेशनर, फैब्रिक सॉफ्टनर, खाद्य सामग्री को स्वादिष्ट बनाने और जीवनरक्षक दवाओं और क्लिनिकल विकास के तहत नई दवाओं को बनाने के लिए किया जाता है।
शोध को ग्रीन केमिस्ट्री नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। इंग्लैंड स्थित मैनचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी (एमआईबी) के डॉ. नील डिक्सन ने इस अध्ययन की अगुवाई की है। डॉ. डिक्सन ने कहा कि बायोमास से रसायनों और जैव ईंधन का लगातार उत्पादन किया जा सकता है।
यह सीमित तेल भंडार के निरंतर उपयोग के लिए एक संभावित विकल्प है। हालांकि, वर्तमान पेट्रोकेमिकल रिफाइनरी प्रक्रियाओं के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए, वैकल्पिक जैव-ईंधन प्रक्रियाओं मे लगने वाली लागतों और उत्पादन में आने वाली बाधाओं को दूर करना होगा।
यह नई प्रणाली अपशिष्ट बायोमास से महंगे रसायनों के उत्पादन के लिए एक संयुक्त बायोडिग्रेडेशन-बायोट्रांसफॉर्मेशन रणनीति बनाती है, जो पर्यावरणीय कचरे को कम करने और कृषि-औद्योगिक अवशेषों को मूल्यवान बनाती है।
वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने पहली बार सीधे सूखे हुए पौधे, कृषि अपशिष्ट से बने रसायनों (केमिकल बिल्डिंग ब्लॉक्स) के उत्पादन का प्रदर्शन किया है। जिसमें अपशिष्ट संयंत्र के जैव-रासायनिक ट्रीटमेंट के बाद फेरिफिक एसिड को कॉनिफ़रॉल में परिवर्तित किया गया।
भारत में फसल के अवशेषों को जला दिया जाता है, जिससे देश के कुछ हिस्सों में गंभीर रूप से वायु प्रदूषण बढ़ गया है। यह शोध भारत के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। अब भारत में भी फसलों के अवशेषों को जलाने के बजाय इन्हें महंगे रसायनों और जैव ईंधन में बदला जा सकता है।