वैज्ञानिकों ने बनाई कम कार्बन वाली ईंटें, निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे से मिलेगी निजात

कम मात्रा में कार्बन अवशोषित करने वाली इन ईंटों में चिनाई की थर्मल विशेषता से लेकर संरचनात्मक और मजबूती से संबंधित कई खूबियां शामिल हैं।
 फोटो : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय
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भारतीय वैज्ञानिकों ने निर्माण और तोड़-फोड़ (सी एंड डी) कचरे का उपयोग करके ऊर्जा-कुशल दीवार बनाने वाली सामग्री का उत्पादन करने के लिए तकनीक विकसित की है। उन्होंने इसे कम कार्बन या 'लो-सी ईंट' नाम दिया है। इन ईंटों को अधिक तापमान तक पकाने की आवश्यकता नहीं होती है। पोर्टलैंड सीमेंट जैसी अधिक ऊर्जा खपत करने वाली सामग्री के उपयोग से भी बचा जा सकता है। यह तकनीक  निर्माण और विध्वंस (सी एंड डी) के कचरे से जुड़ी निपटान समस्याओं का भी समाधान करेगी।

भवन निर्माण में परंपरागत रूप से, अधिक तापमान पर पकी हुई मिट्टी की ईंटों, कंक्रीट ब्लॉकों, खोखले मिट्टी के ब्लॉकों, फ्लाई ऐश से बनी ईंटों, हल्के ब्लॉकों आदि का उपयोग किया जाता हैं। यह सभी उत्पादन के दौरान अत्यधिक ऊर्जा की खपत करते हैं, इस प्रकार कार्बन उत्सर्जन अधिक होता है। इसमें खनन वाले कच्चे माल की खपत होती है तथा इसके फलस्वरूप निर्माण कमजोर होता है।

निर्माण के दौरान चिनाई में अत्यधिक ऊर्जा की खपत से बनी ईंटों का या पोर्टलैंड सीमेंट अथवा कार्बन बाइंडरों का उपयोग करके किया जाता है। नतीजतन, भारत में ईंटों और ब्लॉकों की वार्षिक खपत लगभग 90 करोड़ टन है। इसके अलावा, निर्माण उद्योग निर्माण और विध्वंस से निकले कचरे (सीडीडब्ल्यू) की भारी मात्रा में 7 से 10 करोड़ टन प्रति वर्ष उत्पन्न होता है। टिकाऊ निर्माण को बढ़ावा देने के लिए, चिनाई वाली इकाइयों का निर्माण करते समय दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है जिनमें खनन किए जाने वाले कच्चे माल के संसाधनों का संरक्षण और उत्सर्जन में कमी लाना प्रमुख है।

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने फ्लाई ऐश और फर्नेस स्लैग का उपयोग करके क्षार-सक्रिय ईंटों या ब्लॉकों के उत्पादन के लिए एक तकनीक विकसित की है। शोधकर्ताओं की टीम ने फ्लाई ऐश और ग्राउंड स्लैग का उपयोग करके क्षार सक्रिय प्रक्रिया के माध्यम से निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे (सीडीडब्ल्यू) से कम मात्रा में कार्बन अवशोषित करने वाली ईंटों को विकसित किया है। इन कम मात्रा में कार्बन अवशोषित करने वाली इन ईंटों में चिनाई की थर्मल विशेषता से लेकर संरचनात्मक और मजबूती से संबंधित खूबियां शामिल हैं।

निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे (सीडीडब्ल्यू) की भौतिक-रासायनिक और इनकी विशेषताओं का पता लगाने के बाद, सामग्री का सही मिश्रण अनुपात का पता लगाया गया। फिर उत्पादन प्रक्रिया में कम कार्बन सोखने वाली ईंटों का उत्पादन किया गया। इनको बनाने के लिए जरूरत के हिसाब से सामान का उपयोग किया गया। इंजीनियरिंग से जुड़ी विशेषताओं तथा मजबूती के लिए ईंटों की जांच की गई।

इस परियोजना में बैंगलोर की भारतीय विज्ञान संस्थान की सहायता भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने की है। इस खोज का प्रमुख लाभ सामान्य रूप से निर्माण उद्योग और विशेष रूप से भवन बनाने वालों को होगा। यह तकनीक निर्माण और तोड़-फोड़ वाले कचरे से निजात पाने संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने में मदद करेगी।

आईआईएससी बैंगलोर के प्रो. बी वी वेंकटरामा रेड्डी का कहना है कि आईआईएससी की तकनीकी मदद से कम मात्रा में कार्बन वाली ईंटों और ब्लॉकों के निर्माण के लिए 6 से 9 महीनों के भीतर काम शुरू होगा। इससे संबंधित इकाईयों का प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण और देश भर में ऐसी व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने हेतु एक तकनीक को आगे बढ़ाने वाली इकाई के रूप में कार्य करेगी।

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