वैज्ञानिकों ने खोजा जवान रहने का तरीका, उम्र से ढाई साल कम दिखेंगे आप

हालांकि यह अध्ययन बड़े छोटे स्तर पर किया गया है, इसलिए वैज्ञानिकों ने अभी इससे दूर रहने की सलाह दी है, हालांकि शुरुआती परिणाम सफल रहे हैं
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एजिंग सेल नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि दवाओं और ग्रोथ हार्मोन के मेल से किसी व्यक्ति की जैविक उम्र को कम किया जा सकता है। स्टीव होर्वाथ, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में एक आनुवंशिकीविद् है, जो लोगों के जैविक या एपिजेनेटिक क्लॉक को औसतन दो-ढाई साल तक कम करने में सक्षम हैं। उन्होंने बताया कि ग्रोथ हार्मोन और मधुमेह दवाओं के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दो सामान्य दवाओं के संयोजन का उपयोग करके ऐसा कर सकते हैं। यह अध्ययन नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

होर्वाथ ने नेचर को बताया कि मुझे घड़ी के धीमे होने की उम्मीद है, लेकिन उसे पीछे करने की उम्मीद नहीं। जैविक उम्र या एपिजेनेटिक क्लॉक को समय के साथ जीव के डीएनए में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों को ट्रैक करके मापा जाता है। जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ती है, उनके डीएनए में रासायनिक परिवर्तन या टैग जुड़ जाते हैं और ये परिवर्तन जीवन भर होते रहते हैं। इसलिए इन टैगों को देखकर किसी व्यक्ति की जैविक आयु को मापा जा सकता है।

एपिजेनेटिक-क्लॉक (जैविक उम्र) रिसर्च में अग्रणी होर्वथ ने सबसे सटीक चीजें विकसित की हैं। यह एक छोटा सा अध्ययन था जो सन 2015 और 2017 के बीच 51 से 65 साल की उम्र के नौ पुरुषों पर किया गया था। यह अध्ययन टीआरआईआईएम (थाइमस पुनर्जनन, प्रतिरक्षण और इंसुलिन शमन) के रूप में जाना जाता है। परीक्षण के रूप में जाना जाने वाला यह पहला क्लीनिकल ट्रायल है, जिसे मानव उम्र बढ़ने के विपरीत पहलुओं के लिए डिजाइन किया गया है।

शुरू में अध्ययन का मुख्य उद्देश्य थाइमस ग्रंथि में ऊतक के पुनर्निर्माण के लिए ग्रोथ हार्मोन आरएचजीएच के उपयोग के प्रभाव का निरीक्षण करना था। इसमें मधुमेह की दो दवाईयां शामिल थी, जिनमें से एक डीहाइड्रोएपिअंड्रोस्टेरोन (डीएचईए) और दूसरी मेटफोर्मिन थी। उम्र बढ़ाने वाली दवाओं के संयोजन के प्रभाव का बाद में परीक्षण किया गया। शोध में उपयोग किए जाने वाले मेटफॉर्मिन को पहले ही उम्र से संबंधित बीमारियों से लड़ने के तरीकों के रूप में खोजा गया है। यह मधुमेह के इलाज के लिए स्वीकृत दवा है, लेकिन उम्र बढ़ने से संबंधित चीजों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

क्लीनिकल ट्रायल छोटे स्तर का होने के कारण अभी ये शुरुआती परिणाम हैं और शोधकर्ताओं ने बड़े अध्ययन किए जाने तक सावधानी बरतने का आग्रह किया है। जर्मनी में आचेन विश्वविद्यालय के सेल जीवविज्ञानी, वोल्फगैंग वैगनर ने कहा कि अध्ययन बहुत छोटे स्तर पर किया गया है, जिससे ठोस निष्कर्ष निकालना मुश्किल हो जाता है। हेरियट-वॉट विश्वविद्यालय में कैंसर इम्यूनोलॉजिस्ट, सैम पालमर ने नेचर को बताया कि "यह अध्ययन के न केवल संक्रामक रोग के लिए, बल्कि कैंसर और सामान्य रूप से उम्र बढ़ने के भी प्रभावशाली है"।

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