वैज्ञानिकों ने खोजे नए वायरस, दुनिया भर में प्लैंकटन को कर सकते हैं संक्रमित

डुप्लोडीएनएवीरिया वायरस परिवार से सम्बन्ध रखने वाले इन विषाणुओं को वैज्ञानिकों ने माइरसवायरस नाम दिया है। इन वायरसों ने दुनिया के सभी महासागरों को संक्रमित कर दिया
माइक्रोस्कोप में समुद्री प्लैंकटन की छवि; फोटो: आईस्टॉक
माइक्रोस्कोप में समुद्री प्लैंकटन की छवि; फोटो: आईस्टॉक
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वैज्ञानिकों के दल ने ऐसे नए वायरसों की खोज की है जो दुनियभर के समुद्रों में पाए जाने वाले प्लैंकटन को संक्रमित कर सकते हैं। अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के इस दल में समुद्र विज्ञानी, केमिस्ट्स और माइक्रोबायोलॉजिस्ट्स शामिल थे।

शोधकर्ताओं ने यह भी जानकारी दी है कि यह विषाणु, डुप्लोडीएनएवीरिया वायरस परिवार से सम्बन्ध रखते हैं। इसका मतलब है कि यह उन वायरसों से सम्बंधित हैं जो इंसानों में दाद-खाज का कारण बनते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक हर्पीस वायरस और माइरसवायरस दोनों के बीच जेनेटिक रिश्ता है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ‘माइरस’ एक लेटिन शब्द है जिसका मतलब है, विचित्र या अनोखा।

लेकिन साथ ही यह भी जानकारी मिली है कि इनके और वैरीडीएनएवीरिया वायरस समूह के बीच भी रिश्ता है। ऐसे में लगता है कि यह डुप्लोडीएनएवीरिया और वैरीडीएनएवीरिया के बीच का हाइब्रिड वायरस है। ऐसे में वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कैमेरिक है।

वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस खोज के नतीजे जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। इन वायरसों के होने के सबूत तारा महासागर अभियान के दौरान एकत्र किए गए पानी के नमूनों में मिले हैं। गौरतलब है कि विषाणुओं को संक्रामक एजेंटों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो प्रोटीन कोट से ढके न्यूक्लिक एसिड से बने होते हैं।

इन वायरसों के बारे में फ्रेंच नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च (सीएनआरएस) के वैज्ञानिक टॉम ओ डेलमॉन्ट का कहना है कि ये बेहद अलग वायरस है, इससे पहले हमने कभी कोई ऐसा वायरस नहीं देखा है। उनके मुताबिक यह दो बड़े वायरस समूह का क्रॉसब्रीड है, जिसमें एक तरफ तो हर्पिस वायरस और दूसरी तरफ जायंट वायरस। उनके मुताबिक यह वायरस इंसानों के लिए खतरा नहीं हैं लेकिन प्लैंकटन के लिए काफी मायने रखते हैं।

होस्ट को संक्रमित कर अपनी आबादी बढ़ाते हैं वायरस

वायरसों के बारे में सबसे विशेष बात यह है कि वो तभी अपनी आबादी बढ़ा पाते हैं जब अपने होस्ट यानी मेजबान को संक्रमित करते हैं। देखा जाए तो वायरस दुनिया के कठोर से कठोर वातावरण में जिंदा रह सकते हैं। इनमें ठन्डे अंटार्कटिक से लेकर दुनिया के सुदूर द्वीप और घने जंगलों से लेकर विशाल महासागर तक सब कुछ शामिल हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने विषाणुओं के ऐसे नए समूह को खोजा है जो पहले दुनिया के लिए अज्ञात थे। पता चला है कि यह वायरस प्लैंकटन को संक्रमित कर दुनिया के सभी महासागरों में पाए गए हैं।

समुद्र में पाए जाने वाले इन विषाणुओं के बारे में अधिक जानने के लिए, शोध दल ने तारा महासागर अभियान के दौरान प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है। अपने इस अभियान में वैज्ञानिकों ने 2009 से 2013 के बीच दुनिया भर में पानी के करीब 35,000 नमूने एकत्र किए थे। इन नमूनों में समुद्री जल के अलावा, शैवाल, प्लैंकटन और पहले से अज्ञात वायरसों का भी पता चला है।

इन विषाणुओं की जांच से पता चला है कि यह डबल-स्ट्रैंडेड डीएनए युक्त वायरस हैं जो प्लैंकटन की कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। इस तरह यह उन्हें महासागरों में कार्बन और अन्य पोषक तत्वों के प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद करता है। वैज्ञानिकों ने इन विषाणुओं को ‘माइरसवायरस’ नाम दिया है। उनका मत है कि यह वायरस प्लवक और समुद्र की सतह के वातावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। जो वहां पाए जाने वाले जीवों के लिए आहार उपलब्ध कराते हैं।

शोधकर्ता का कहना है कि यह खोज न केवल महासागरों की जैवविविधता के बारे में हमारे ज्ञान में इजाफा करती है और यह बताती है कि प्लैंकटन कैसे काम करते हैं। साथ ही यह खोज हर्पिस संक्रमण के पीछे जिम्मेवार वायरस की जड़ों को भी बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती है।

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