वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों के नीचे छिपी पिघली चट्टान की परत का लगाया पता

पिघली हुई परत सतह से लगभग 100 मील की दूरी पर स्थित है और एस्थेनोस्फीयर का हिस्सा है, जो ऊपरी आवरण में पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों के नीचे स्थित है
फोटो साभार: टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन, लियोनेलो कैल्वेट्टी / ड्रीमस्टाइम
फोटो साभार: टेक्सास विश्वविद्यालय, ऑस्टिन, लियोनेलो कैल्वेट्टी / ड्रीमस्टाइम
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वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के ऊपरी स्तर के नीचे आंशिक रूप से पिघली हुई चट्टान की एक नई परत की खोज की है। यह टेक्टोनिक प्लेटों की गति के बारे में लंबे समय से चली आ रही बहस को सुलझाने में मदद कर सकती है।

शोधकर्ताओं ने पहले समान गहराई पर पिघले हुए धब्बों की पहचान की थी। लेकिन ऑस्टिन में टेक्सास विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक नए अध्ययन ने पहली बार इस परत की वैश्विक सीमा और प्लेट टेक्टोनिक में इसके हिस्से का खुलासा किया है।

शोधकर्ता ने बताया कि, पिघली हुई परत सतह से लगभग 100 मील की दूरी पर स्थित है और एस्थेनोस्फीयर का हिस्सा है, जो ऊपरी आवरण में पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों के नीचे स्थित है। एस्थेनोस्फीयर प्लेट टेक्टोनिक्स के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक नरम सीमा को जन्म देता है जो टेक्टोनिक प्लेट को आवरण के माध्यम से आगे बढ़ने देता है।

यहां बताते चलें कि एस्थेनोस्फीयर पृथ्वी के सबसे अंदरूनी स्थलमण्डल के नीचे स्थित एक सघन और कमजोर परत है। यह पृथ्वी की सतह के नीचे लगभग 100 से 410 किलोमीटर के बीच स्थित है। एस्थेनोस्फीयर का तापमान और दबाव इतना अधिक होता है कि चट्टानें नरम हो जाती हैं और आंशिक रूप से पिघल जाती हैं।

हालांकि, अभी तक इसके नरम होने के कारणों को अच्छी तरह से नहीं समझा जा सका है। वैज्ञानिकों ने पहले सोचा था कि पिघली हुई चट्टानें एक वजह हो सकती हैं। लेकिन इस अध्ययन से पता चलता है कि पिघला हुआ, वास्तव में, धातु की चट्टानों के प्रवाह को विशेष रूप से प्रभावित नहीं करता है।

शोधकर्ता जुनलिन हुआ ने कहा, जब हम किसी चीज के पिघलने के बारे में सोचते हैं, तो हम सहज रूप से यह सोचते हैं कि पिघली सामग्री को चिपचिपाहट में एक बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। शोधकर्ताओं ने पाया कि वहां पिघला हुआ हिस्सा काफी अधिक था, वहीं धातु प्रवाह पर इसका बहुत कम असर पड़ता है। जुनलिन हुआ यूटी के जैक्सन स्कूल ऑफ जियोसाइंसेस के पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं।

शोध के अनुसार, प्लेटों की गति पर गर्मी और चट्टान के संवहन का प्रभाव पड़ता है। यद्यपि पृथ्वी का आंतरिक भाग काफी हद तक ठोस है, लंबे समय तक, चट्टानें शहद की तरह स्थानांतरित और प्रवाहित हो सकती हैं।

जैक्सन स्कूल के प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता थॉर्स्टन बेकर ने कहा कि पिघली हुई परत का प्लेट टेक्टोनिक्स पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जो कि पृथ्वी के कंप्यूटर मॉडल के लिए एक कम पेचीदा बदलाव है।

बेकर ने कहा, हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि स्थानीय रूप से पिघलने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन मुझे लगता है कि यह हमें पिघलने के इन अवलोकनों को पृथ्वी पर क्या चल रहा है और किसी भी चीज में सक्रिय योगदान के रूप में देखने के लिए प्रेरित करता है।

शोध के दौरान तुर्की की नीचे के धातु की भूकंपीय छवियों का अध्ययन करते समय शोधकर्ता हुआ को पृथ्वी के आंतरिक भाग में एक नई परत की तलाश करने का विचार आया।

पृथ्वी के ऊपरी स्तर के नीचे आंशिक रूप से पिघली हुई चट्टान के संकेतों को देखकर, हुआ ने अन्य भूकंपीय स्टेशनों से इसी तरह की छवियों को संकलित किया जब तक कि उनके पास एस्थेनोस्फीयर का वैश्विक मानचित्र नहीं बन गया था। जिसे उन्होंने और अन्य लोगों ने एक विसंगति के रूप में लिया था, वह वास्तव में दुनिया भर में सामान्य था, जहां भी एस्थेनोस्फीयर सबसे गर्म था, वह भूकंपीय रीडिंग पर दिखाई दे रहा था।

अगला आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने अपने पिघले हुए नक्शे की तुलना टेक्टोनिक गति के भूकंपीय मापन से की और पृथ्वी के लगभग आधे हिस्से में पिघली हुई परत के बावजूद इसका कोई संबंध नहीं पाया गया।

सह-शोधकर्ता करेन फिशर ने कहा, यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि एस्थेनोस्फीयर के गुणों को समझना और इसकी उत्पत्ति क्यों कमजोर है, टेक्टोनिक प्लेट को समझने के लिए अहम है। फिशर ब्राउन यूनिवर्सिटी के भूकंपविज्ञानी और प्रोफेसर हैं। यह शोध नेचर जियोसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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