भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जो आयनमंडल के माध्यम से रेडियो तरंग प्रसार के द्वारा अंतरिक्ष से मौसम के प्रभाव का अनुमान लगा सकता है। साथ ही उच्च आवृत्ति (एचएफ) रेडियो संचार की योजना और संचालन को सुविधाजनक बनाने में मदद कर सकता है। यह प्राकृतिक आपदाओं और सागर में निगरानी करने के दौरान संचार का एक महत्वपूर्ण साधन है।
आयनमंडल पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल का एक क्षेत्र है जिसकी सीमा लगभग 100 से 1000 किमी है और यह जमीन और अंतरिक्ष के बीच रेडियो संचार के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। कुछ आवृत्तियों (एचएफ बैंड) की रेडियो तरंगें आयनमंडल के माध्यम से जमीन पर वापस आ जाती हैं जो क्षितिज से दूर, लंबी दूरी की एचएफ संचार की सुविधा प्रदान करती हैं, जिसे आकाशीय तरंग या स्काईवेव संचार के रूप में जाना जाता है।
उपग्रह संचार के बढ़ते उपयोग के बावजूद, पारंपरिक लंबी दूरी की उच्च-आवृत्ति (एचएफ) रेडियो संचार, प्राकृतिक आपदाओं, समुद्र में निगरानी करने, क्षितिज के पार लक्ष्य का पता लगाने और इसी तरह की स्थितियों के दौरान संचार का एक महत्वपूर्ण साधन बना हुआ है।
सोलर फ्लेयर्स या सौर ज्वाला, कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) और भू-चुंबकीय तूफान जैसी अंतरिक्ष के मौसम की घटनाओं की एक श्रृंखला के कारण उत्पन्न होने वाली गंभीर आइनोस्फेरिक रुकावट (डिस्टर्बन्स) स्काईवेव संचार को बुरी तरह से प्रभावित करती है। अंतरिक्ष के मौसम में गड़बड़ी के कारण आयनमंडल का यह बदलाव स्काईवेव संचार के उपयोग को अच्छे-खासे रूप तक सीमित कर सकती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमैगनेटिज्म (आईआईजी) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में आयनमंडल के माध्यम से एचएफ रेडियो तरंग प्रसार के लिए एक मॉडल विकसित किया है। आयनमंडल और स्काईवेव संचार प्रणाली अंतरिक्ष मौसम के असर के प्रभावों का अध्ययन करने में मदद करता है।
स्पेस वेदर पत्रिका में प्रकाशित अपने हालिया अध्ययन में, आईआईजी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने 17 मार्च 2015 को हुई एक गंभीर भू-चुंबकीय तूफान के कारण भारतीय उप-महाद्वीप क्षेत्र के निचले अक्षांशों पर आयनमंडल में भारी कमी पाई।
एचएफ रेडियो आईआईजी वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तरंग प्रसार मॉडल इशारा करता है कि यह आयनमंडलीय कमी इस अशांत अवधि के दौरान स्काईवेव संचार के लिए प्रयोग करने योग्य एचएफ स्पेक्ट्रम को 50 फीसदी से अधिक तक सीमित कर सकती है।
इसके अलावा, स्किप-जोन जहां स्काईवेव सिग्नल को हासिल नहीं किया जा सकता है, बहुत बड़े क्षेत्रों में फैले होते हैं जिसके कारण संचार का नुकसान होता है या उसमें व्यवधान पड़ता है। स्काईवेव संचार प्रणालियों पर अंतरिक्ष प्रभावों को कम करने में मजबूत रणनीतियों को विकसित करने के लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है।
आईआईजी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एचएफ रेडियो प्रसार मॉडल की उपयोगिता, सक्रिय अंतरिक्ष मौसम अवधि के दौरान स्काईवेव संचार प्रणालियों के संचालन के लिए सही रणनीतियों की योजना बनाने में है। ऐसी रणनीतियों का विकास प्राकृतिक आपदाओं और अन्य आपात स्थितियों में भरोसेमंद स्काईवेव संचार प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।