वैज्ञानिकों ने बनाई तकनीक, भूकंप-सुनामी आने से कई दिन पहले पता चल जाएगा

इस तकनीक को मैक्सिको की खाड़ी के एग्मोंट की में स्थापित किया गया था। यह तब से समुद्र तल में होने वाली हलचल के तीन आयामी (थ्री-डायमेंशनल) आंकड़ो को इकट्ठा कर रही है
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अमेरिका स्थित दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक का सफलतापूर्वक विकास और परीक्षण किया है। जिसेशैलो वाटर बुओय’ तकनीक कहते है। यह पृथ्वी और समुद्र-क्षेत्र में होने वाले छोटे हलचलो और परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं।  इनसे अक्सर भूकंप, ज्वालामुखी और सुनामी जैसे घातक प्राकृतिक खतरों के बारे में पता लगाया जा सकता है।

नेशनल साइंस फॉउण्डेशन्स ओसियन टेक्नोलॉजी एंड इंटरडिसिप्लिनरी कोआर्डिनेशन प्रोग्राम की सहायता से बनाई गईबुओय’ तकनीक को पिछले साल मैक्सिको की खाड़ी केएग्मोंट की’ में स्थापित किया गया था। यह तब से समुद्र तल में होने वाली हलचल के तीन आयामी (थ्री-डायमेंशनल) आंकड़ो को इकट्ठा कर रही है। यूएसएफ स्कूल ऑफ जियोसाइंसेज डिस्टि्रक्टेड प्रोफेसर टिम डिक्सन ने कहा कि, यह सिस्टम पृथ्वी की सतह में होने वाले छोटे बदलावों का पता लगा सकता है।

डिक्सन ने कहाबुओय’ प्रणाली को एक डिजिटल कम्पास का उपयोग करके मापा जाता है। यह पृथ्वी के अगल-बगल की गति (साइड-टू साइड मोशन) को मापने में मदद करता है, जिससे सुनामी-उत्पन्न करने वाली हलचलो का पहले से ही पता किया जा सकता है। इसके निष्कर्षो को जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च-सॉलिड अर्थ में प्रकाशित किया गया है।

हालांकि वर्तमान में उपलब्ध समुद्रतल की निगरानी के लिए कई तकनीकें हैं। लेकिन ये सभी तकनीकें आम तौर पर गहरे समुद्र में सबसे अच्छा काम करती है, जहां शोर कम होता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि समुद्र के कुछ सौ मीटर की गहराई पर अधिक चुनौतीपूर्ण वातावरण होता है। लेकिन इस नई तकनीक का उपयोग कई प्रकार के विनाशकारी भूकंपों की पूर्व जानकारी के लिए महत्वपूर्ण है। 

परीक्षण के लिए उपयोग की जा रहीबुओय’ को भारी कंक्रीट के मदद से समुद्र के तल पर लगाया गया है। बुओय मैक्सिको की खाड़ी में आने वाले कई तूफानों का सामना करने में सक्षम है। प्राकृतिक खतरों के विशेषज्ञ, डिक्सन ने कहा कि यह प्रणाली एक से दो सेंटीमीटर तक छोटे हलचलो का पता लगाने में सक्षम है।

डिक्सन ने कहा कि इस तकनीक का उपयोग ऑफशोर तेल और गैस उद्योग और कुछ स्थानों पर ज्वालामुखी की निगरानी के लिए किया जा सकता हैं। लेकिन इसका सबसे अधिक उपयोग भूकंप और सुनामी के बेहतर पूर्वानुमान के लिए है। यदि पहले इस तरह की तकनीक होती तो, 2004 में सुमात्रा में आई सुनामी तथा 2011 में जापान में आए भयंकर भूकंप को समझा और पूर्वानुमान लगाया जा सकता था।

डिक्सन ने कहा कि इस प्रणाली को प्रशांत महासागर के "रिंग ऑफ फायर" क्षेत्र के लिए डिज़ाइन किया गया है, जहां इसका ऑफशोर में होने वाले हलचलों की प्रक्रियाओं की सही ढ़ग से निगरानी करने में उपयोग किया जा सकता है।

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