वैज्ञानिकों ने पानी में पीएफएएस नामक विषाक्त पदार्थों का पता लगाने के लिए बनाई तकनीक

यह नई और किफायती तकनीक पीएफओए और पीएफओएस नामक खतरनाक रसायनों का पानी में आसानी से पता लगा सकती है, साथ ही दूषित क्षेत्रों में जाकर भी इनका पता लगाने के लिए उपयुक्त है।
फोटो: आईस्टॉक
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पानी में कई तरह के रसायन हो सकते हैं जो किसी भी जीव के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जिनमें से प्रति- और पॉलीफ्लोरोएल्काइल पदार्थ (पीएफएएस), अत्यधिक फ्लोराइड युक्त पदार्थों का एक वर्ग है, जो लोगों और पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करता है।

इस वर्ग के विशेष रूप से खतरनाक केमिकल, जैसे कि पेरफ्लूरूक्टेन सल्फोनेट (पीएफओएस) और पेरफ्लूरूक्टैनोइक एसिड (पीएफओए) से अंगों को नुकसान और कैंसर की बीमारी हो सकती हैं, साथ ही ये अंतःस्रावी तंत्र के काम को रोक सकते हैं।

जर्नल एंजवेन्टे केमी में, शोधकर्ताओं ने अब पानी के नमूनों में पीएफएएस के परीक्षण के लिए एक किफायती, उपयोग में आसान सेंसर विकसित किया है।

प्रति- और पॉलीफ्लोरोएल्काइल पदार्थ (पीएफएएस) शब्द कार्बनिक यौगिकों का एक समूह है जिसमें कार्बन परमाणुओं से जुड़े अधिकांश या सभी हाइड्रोजन परमाणुओं को फ्लोरीन परमाणुओं से बदल दिया गया है। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार के उत्पादों, जैसे नॉनस्टिक पैन, कपड़े और पैकेजिंग, तेल प्रतिरोध प्रदान करने के लिए किया जाता है।

वे आग को बुझाने वाले फोम, पेंट और कार पॉलिश में भी पाए जा सकते हैं। ये यौगिक अत्यधिक उपयोगी होते हैं साथ ही अत्यधिक खतरनाक भी होते हैं। जब वे पर्यावरण में अपना रास्ता खोज लेते हैं, वे टूटते नहीं हैं और इस प्रकार पौधों, जानवरों और लोगों में पहुंच जाते हैं।

यूरोपीय संघ में पीने के पानी के लिए विशेष पीएफएएस पदार्थों के लिए 100 एनजी प्रति लीटर और सभी पीएफएएस के कुल के लिए 500 एनजी प्रति लीटर की सीमा निर्धारित की गई है। शोध में कहा गया है कि, जर्मनी में, पानी की आपूर्ति संबंधी सेवाए देने वालों को 2026 में पीएफएएस के लिए पीने के पानी का परीक्षण शुरू करना होगा।

अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी ने इसके लिए सख्त सीमाएं निर्धारित की हैं, सबसे व्यापक पीएफएएस (पीएफओएस और पीएफओए) के लिए, प्रत्येक पदार्थ के लिए ऊपरी सीमा चार एनएम प्रति लीटर निर्धारित की गई है।

ऐसी मात्रा का पता लगाने के लिए उपयोग की जाने वाली सामान्य विधि में क्रोमैटोग्राफी और मास स्पेक्ट्रोमेट्री शामिल है, जो कि समय लेने वाली और महंगी है। इसके लिए जटिल उपकरण और अनुभवी कर्मियों की आवश्यकता होती है।

अमेरिका के कैम्ब्रिज में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में टिमोथी एम. स्वैगर और अल्बर्टो कॉन्सेलोन ने अब एक पोर्टेबल, किफायती परीक्षण बनाने की तकनीक पेश की है जो पानी के नमूनों में आसानी से और चुनिंदा रूप से पीएफएएस का पता लगाने के लिए उसकी माप का उपयोग करता है।

यह परीक्षण एक पॉलिमर पर आधारित है, जिसमें  एक पतली फिल्म या नैनोकणों के रूप में फ्लोरिनेटेड साइडचेन के साथ जिसमें फ्लोरिनेटेड डाई अणु (स्क्वारेन डेरिवेटिव) जुड़े होते हैं। विशेष पॉलिमर बैकबोन (पॉली-फेनिलीन एथिनिलीन) बैंगनी प्रकाश को अवशोषित करता है और इलेक्ट्रॉन विनिमय (डेक्सटर तंत्र) द्वारा प्रकाश ऊर्जा को डाई में स्थानांतरित करता है।

फिर डाई से टकराकर यह लाल हो जाती है। यदि पीएफएएस नमूने में मौजूद हैं, तो वे पॉलिमर में प्रवेश करते हैं और डाई अणुओं को नैनोमीटर के एक अंश द्वारा दूसरी जगह भेज देते हैं। यह इलेक्ट्रॉन विनिमय और इस प्रकार ऊर्जा हस्तांतरण को रोकने के लिए पर्याप्त है। जब डाई की लाल प्रतिदीप्ति "बंद" होती है, तब पॉलिमर की नीली प्रतिदीप्ति "चालू" होती है। प्रतिदीप्ति में बदलाव की हर डिग्री पीएफएएस की मात्रा के समानुपाती होती है।

यह नई तकनीक, जिसमें पीएफओए और पीएफओएस के लिए माइक्रोग्राम प्रति लीटर की श्रेणी में पता लगाने की सीमा है, अत्यधिक दूषित क्षेत्रों में ऑन-साइट पता लगाने के लिए उपयुक्त है। पीने के पानी में इन खतरनाक रसायनों की बहुत छोटी मात्रा का पता ठोस-चरण द्वारा नमूनों की पूर्व-मात्रा के बाद सटीकता के साथ हासिल किया जा सकता है।

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