वैज्ञानिकों का दावा, 14 करोड़ साल पहले कीटों द्वारा किया गया था शुरुआती फूलों का परागण

आज हम फूलों की जितनी भी विविधता देखते हैं, यह इन्हीं शुरूआती फूलों और उनके परागण की देन है
फोटो: पिक्साबे
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ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों का दावा है कि 14 करोड़ वर्षों से भी ज्यादा समय पहले जब धरती पर पहले फूल खिले थे तो उनका परागण कीटों ने किया था। आज हम फूलों की जितनी भी विविधता देखते हैं, यह इन्हीं शुरूआती फूलों और उनके परागण की देन है। हालांकि शोधकर्ताओं ने साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि धरती पर इन फूलों के खिलने के करोड़ों साल पहले भी पौधे अस्तित्व में थे। ऐसे में फूलों का खिलना इन इन पौधों के विकास की दिशा में एक बड़ी घटना थी।

तो इन फूलों को किसने परागित किया, यह समझना रोचक है। क्या कीट इन फूलों के बीच पराग ले जा रहे थे। या किसी अन्य जीव, हवा या पानी की वजह से इनमें परागण हुआ था। इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। लेकिन हाल ही ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने इस पहेली को सुलझा लिया है। जर्नल न्यू फाइटोलॉजिस्ट में प्रकाशित उनके शोध के नतीजे दर्शाते हैं कि इन फूलों में सबसे पहले परागण करने वाले जीव कीट थे।

यदि कुछ मामलों को छोड़ दें तो इतिहास में फूलों वाले पौधों की 86 फीसदी प्रजातियां अपने परागण के लिए कीटों पर निर्भर करती हैं। मौजूदा समय में भी देखें तो पौधों की करीब 90 फीसदी किस्में यानी तीन से चार लाख प्रजातियां फूलों वाले पौधों की हैं जिन्हें वैज्ञानिक ‘एंजियोस्पर्म’ के नाम से जानते हैं। अपने पुनरुत्पादन के लिए यह पौधे अपने फूलों में पराग बनाते हैं।

इन पौधों में बीजों के बनने के लिए इस पराग को दूसरे फूलों तक पहुंचाने की जरूरत होती है। देखा जाए तो आज के अधिकांश फूलों वाले पौधे अपने इस परागण के लिए कीटों पर निर्भर करते हैं। यह पौधे फूलों के रंग, गंध आदि के माध्यम से कीटों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वहीं फूलों से मिलने वाला पराग, मधु इन कीटों को भोजन प्रदान करता है। इस तरह इन दोनों के बीच मौजूद यह रिश्ता दोनों के लिए फायदेमंद होता है।

हालांकि, कुछ फूल अपने परागों के लिए अन्य साधनों जैसे कशेरुकी जीवों, हवा या पानी पर भरोसा करते हैं। रिसर्च के अनुसार छोटे कीट पराग को ले जाने का सबसे प्रभावी साधन हैं। कीड़ों के जीवाश्म पर किए हालिया शोध से पता चला है कि कुछ कीड़े शुरूआती फूलों के विकसित होने से पहले भी परागण कर रहे होंगे।

इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पौधों की 1,160 प्रजातियों के परागण प्रणाली सम्बन्धी आंकड़ों को एकत्र किया है, जिनके बारे में माना जा रहा है कि वो क्रिटेशियस काल से पहले के 14.5 करोड़ से 6.6 करोड़ साल पहले के हो सकते हैं।

अपने इस अध्ययन में उन्होंने "वंश वृक्ष" का उपयोग करके समय के साथ परागण के चार अलग-अलग तरीकों के विकास की बड़ी तस्वीर प्रस्तुत की है। जो न केवल यह बताता है कि वर्तमान में इन पौधों का परागण कौन कर रहा है बल्कि अतीत में इन पौधों के पूर्वजों का परागण किसके द्वारा किया गया था।

क्या कुछ निकलकर आया एंजियोस्पर्म पौधों के बारे में सामने

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक एंजियोस्पर्म पौधों के इतिहास में फूलों को 86 फीसदी समय में कीटों ने ही परागित किया था। वहीं पक्षी, चमगादड़ और हवा के द्वारा होने वाले परागण के बारे में भी जानकारी अध्ययन में सामने आई है।  

रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक एंजियोस्पर्म पौधों के इतिहास में फूलों को 86 फीसदी समय में कीटों ने ही परागित किया था। वहीं पक्षी, चमगादड़ और हवा के द्वारा होने वाले परागण के बारे में भी जानकारी अध्ययन में सामने आई है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक पक्षियों, चमगादड़ों, छोटे स्तनधारियों और छिपकलियों जैसे जीवों द्वारा परागण कम से कम 39 बार स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ है, और इनमें से 26 फीसदी मामलों में यह अंततः कीट परागण में बदल गया था। वहीं हवा द्वारा किया जा रहा परागण और भी ज्यादा बार विकसित हुआ है। इसके 42 उदाहरण मिले हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक हवा से होने वाला परागण उच्च अक्षांशों और खुले क्षेत्रों में अधिक बार विकसित हुआ था। वहीं हमने भूमध्य रेखा के पास, घने वर्षावनों में पशु परागण सबसे ज्यादा आम था।

हालांकि फूलों का सबसे पहले परागण करने वाले किस तरह के कीट थे। इस बारे में अभी भी पुख्ता जानकरी उपलब्ध नहीं है, लेकिन शोधकर्ताओं ने इस बात की सम्भावना को खारिज कर दिया है कि वो कीट मधुमखियां थी, क्योंकि अधिकांश सबूतों ने सुझाव दिया है कि मधुमक्खियां इन सबसे शुरूआती फूलों के बाद तक विकसित नहीं हुई थीं।

शोधकर्ताओं के अनुसार यह देखते हुए कि अधिकांश शुरुआती फूलों को जीवाश्म के रूप में संरक्षित किया गया है और वो बहुत छोटे हैं, विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि परागणकर्ता छोटी मक्खी या भृंग हो सकते हैं, या फिर यह मिज या ऐसे कीड़े भी हो सकते हैं जो अब विलुप्त हो चुके हैं।

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